शोभना शर्मा। राजस्थान के सीकर जिले के दिवराला गांव में 36 साल पहले 4 सितंबर 1987 को घटित रूप कंवर सती महिमामंडन कांड में बुधवार को जयपुर महानगर द्वितीय की सती निवारण स्पेशल कोर्ट ने 8 आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले के साथ ही सती प्रथा के आखिरी दर्ज मामले की कानूनी प्रक्रिया समाप्त हो गई। कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया।
मामले का संक्षिप्त विवरण
यह मामला तब शुरू हुआ जब 18 वर्षीय रूप कंवर ने अपने पति माल सिंह की मृत्यु के बाद दिवराला गांव में उनकी चिता पर जलकर सती हो गई थीं। यह घटना न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई थी, क्योंकि भारत में 1829 में ब्रिटिश शासन के दौरान सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया जा चुका था। रूप कंवर के सती होने को लेकर स्थानीय ग्रामीणों और राजपूत समाज ने इस घटना को महिमामंडित किया, जिससे इसे लेकर विवाद और बढ़ गया। घटना के बाद 22 सितंबर 1988 को रूप कंवर की पहली बरसी पर राजपूत समाज द्वारा दिवराला से अजीतगढ़ तक जुलूस निकाला गया, जिसमें सती प्रथा का महिमामंडन किया गया था। इस दौरान पुलिस ने 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने सती प्रथा का समर्थन करते हुए सती महिमामंडन किया।
आरोपियों का कोर्ट में बचाव
सती निवारण कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान आरोपियों के वकील अमनचैन सिंह शेखावत और संजीत सिंह चौहान ने कहा कि पुलिस ने सती निवारण अधिनियम की धारा-5 के तहत सभी को आरोपी बनाया था, लेकिन पुलिसकर्मी और गवाह आरोपियों की पहचान करने में असफल रहे। इसके चलते कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इससे पहले, 31 जनवरी 2004 को भी इसी मामले में 25 आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया था, जिनमें राजस्थान के कई प्रमुख राजनेता और सामाजिक हस्तियां शामिल थीं। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा था कि इन आरोपियों ने सती का महिमामंडन किया था।
रूप कंवर की सती होने की घटना
रूप कंवर का जन्म जयपुर के एक ट्रांसपोर्ट व्यवसायी बाल सिंह राठौड़ के घर हुआ था। उनकी शादी 17 जनवरी 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव के माल सिंह से हुई थी। 3 सितंबर 1987 को माल सिंह की अचानक तबीयत खराब हुई और अगले दिन उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद रूप कंवर ने अपने पति की चिता पर जलकर सती हो गई थीं। इस घटना ने समाज में बड़े पैमाने पर बहस छेड़ दी थी, जिसमें कई लोग सती प्रथा का समर्थन कर रहे थे, जबकि सामाजिक कार्यकर्ता इसके खिलाफ थे।
चुनरी महोत्सव और विरोध
रूप कंवर के सती होने के बाद दिवराला गांव में 16 सितंबर 1987 को चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए। हालांकि, राजस्थान हाईकोर्ट ने इस समारोह को सती प्रथा का महिमामंडन मानते हुए इसे रोकने का आदेश दिया था। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और समारोह का आयोजन किया गया। इसके बाद, 22 सितंबर 1988 को रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर एक बार फिर जुलूस निकाला गया, जिसमें सती प्रथा का समर्थन किया गया। इसी जुलूस के चलते 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
सती निवारण अधिनियम और सती महिमामंडन के आरोप
भारत सरकार ने सती प्रथा को रोकने के लिए 1987 में सती निवारण अधिनियम लागू किया था, जिसके तहत सती होने या उसके महिमामंडन को दंडनीय अपराध माना गया। इसी अधिनियम के तहत दिवराला गांव में सती प्रथा के महिमामंडन के आरोपियों पर कार्रवाई की गई थी। हालांकि, अभियोजन पक्ष के गवाहों और सबूतों की कमी के चलते अधिकांश आरोपी बरी हो गए।
कोर्ट का अंतिम फैसला
बुधवार को कोर्ट ने महेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, दशरथ सिंह, लक्ष्मण सिंह और भंवर सिंह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इस फैसले के साथ ही 36 साल से चल रहे इस मामले का कानूनी निष्कर्ष निकला।