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अजमेर दरगाह को लेकर AIMIM का कांग्रेस पर निशाना

अजमेर दरगाह को लेकर AIMIM का कांग्रेस पर निशाना

शोभना शर्मा, अजमेर।  अजमेर स्थित प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर विवाद खड़ा हो गया है। दरगाह को मंदिर बताने वाली याचिका पर राजस्थान की लोकल कोर्ट द्वारा सुनवाई के आदेश ने देश भर में हंगामा मचा दिया है। यह मामला अब राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चर्चाओं का केंद्र बन गया है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित है, लेकिन इसके पहले ही सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। AIMIM राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष जमील खान ने इस मुद्दे को लेकर राज्य की कांग्रेस पार्टी और उनके मुस्लिम विधायकों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने इन विधायकों की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह चुप्पी मुस्लिम समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचा सकती है।

AIMIM प्रदेशाध्यक्ष का बयान

AIMIM के प्रदेशाध्यक्ष जमील खान ने कड़े शब्दों में कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि पूरे देश में धार्मिक एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि दरगाह को लेकर ऐसी याचिकाएं दायर करना माहौल खराब करने और राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास है। जमील खान ने कहा  “1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदला नहीं जा सकता। यह कानून धार्मिक स्थलों की पवित्रता और देश की एकता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था।” उन्होंने कांग्रेस के पांच मुस्लिम विधायकों पर निशाना साधते हुए कहा “आप सब कहां हो? क्या आपको सिर्फ चुनाव के समय क़ौम की याद आती है? आज जब समुदाय को आपकी ज़रूरत है, तो आप खामोश क्यों हैं?”

कांग्रेस के मुस्लिम विधायकों की चुप्पी पर सवाल

राजस्थान विधानसभा में वर्तमान में पांच मुस्लिम विधायक हैं, जिनमें चार कांग्रेस पार्टी से और एक निर्दलीय विधायक हैं। जमील खान ने इन विधायकों की चुप्पी को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि इनकी खामोशी से समुदाय के लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह: सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक

अजमेर की दरगाह न केवल मुस्लिमों के लिए बल्कि सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थान है। इस दरगाह को “ग़रीब नवाज़” के नाम से जाना जाता है और यह स्थान सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं और यह स्थान धार्मिक और सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण है।

1991 का प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट

1991 में पारित प्लेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न्स) एक्ट के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसे वैसा ही बनाए रखना अनिवार्य है। इस कानून के अनुसार:

  1. किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप बदला नहीं जा सकता।
  2. इस कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
  3. इसका उद्देश्य देश में सांप्रदायिक सौहार्द और शांति बनाए रखना है।

AIMIM ने कोर्ट से इस कानून का पालन करते हुए याचिका को खारिज करने की अपील की है।

राजनीतिक विवाद

इस मामले ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। AIMIM और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। AIMIM का कहना है कि कांग्रेस के मुस्लिम विधायक अपने समुदाय के अधिकारों और मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं। AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने पहले भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताई थी।

AIMIM की मांग

  1. याचिका को तुरंत खारिज किया जाए।
  2. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का पालन किया जाए।
  3. सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
  4. कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों से इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने को कहे।

अजमेर दरगाह को लेकर विवाद ने धार्मिक और राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है।  राजस्थान सरकार और स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रिया आने वाले दिनों में इस विवाद की दिशा तय करेगी।

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