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अजमेर दरगाह विवाद: पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने PM मोदी को लिखा पत्र

अजमेर दरगाह विवाद: पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने PM मोदी को लिखा पत्र

मनीषा शर्मा,अजमेर । अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को लेकर देशभर में विवाद गहराता जा रहा है। इस मुद्दे पर सियासी बयानबाजी के बीच देश के प्रमुख पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने देश में बढ़ती सांप्रदायिक घटनाओं पर चिंता जताई है और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की है।

क्या है विवाद का पूरा मामला?

अजमेर की प्रसिद्ध दरगाह शरीफ, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि स्थल के रूप में जानी जाती है, पर शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक याचिका दायर की गई है। इस दावे के बाद अदालत ने सर्वे का आदेश दिया, जिसके बाद विवाद और गहराया। पूर्व ब्यूरोक्रेट्स का कहना है कि यह दावा “प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991” के खिलाफ है, जो धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात करता है।

पूर्व ब्यूरोक्रेट्स का पत्र: मुख्य बिंदु

  1. सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा:
    पत्र में लिखा गया है कि इस तरह के दावों से देश की एकता और अखंडता को खतरा है।
    सांप्रदायिक घटनाओं से अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा का माहौल पैदा हुआ है।
  2. पीएम मोदी से अपील:
    पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने पीएम मोदी से मामले में हस्तक्षेप करने और सांप्रदायिक ताकतों को रोकने की अपील की है।
  3. अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर:
    पत्र में कहा गया है कि इस तरह की घटनाएं देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं।
  4. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991:
    कानून के बावजूद इस तरह की याचिकाओं को अदालत में स्थान मिलने पर सवाल उठाए गए हैं।

सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की आवश्यकता

पूर्व ब्यूरोक्रेट्स और डिप्लोमैट्स ने प्रधानमंत्री को यह भी याद दिलाया कि उन्होंने उर्स के मौके पर अजमेर शरीफ में चादर पेश की थी, जो सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
पत्र में उन्होंने कहा कि इस विवाद से न केवल देश के भीतर तनाव बढ़ेगा, बल्कि यह भारत की बहुसांस्कृतिक विरासत पर वैचारिक हमला है।

कौन-कौन हैं पत्र पर हस्ताक्षरकर्ता?

इस पत्र पर कई प्रतिष्ठित नामों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग।
  • भारत के पूर्व उच्चायुक्त शिव मुखर्जी।
  • पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी।
  • पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह।
  • भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर रवि वीर गुप्ता।

इन हस्ताक्षरकर्ताओं ने धार्मिक स्थलों पर विवादों को “गंभीर खतरा” बताया है।

मुस्लिम समुदाय में चिंता और असुरक्षा का माहौल

पत्र में उल्लेख किया गया है कि इस विवाद के चलते मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। इस तरह की घटनाओं ने सांप्रदायिक रिश्तों को खराब किया है। पत्र में गोमांस ले जाने के नाम पर हिंसा, मुसलमानों के घर गिराए जाने और उनके सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं का जिक्र किया गया।

सरकार से मांग: सर्व धर्म बैठक का आयोजन

पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि वे एक सर्व धर्म बैठक आयोजित करें। इस बैठक के माध्यम से यह संदेश दिया जाए कि भारत सभी धर्मों का देश है और सांप्रदायिक ताकतों को देश की एकता पर हमला करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

राजनीतिक बयानबाजी जारी

राजेंद्र राठौड़ (पूर्व नेता प्रतिपक्ष):

उन्होंने कहा कि मामला अभी अदालत में है और केवल नोटिस जारी किए गए हैं। संविधान हर व्यक्ति को याचिका दायर करने का अधिकार देता है।

भागीरथ चौधरी (केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री):

उन्होंने कहा कि कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वह सबको मान्य होगा। उन्होंने संविधान और कानून पर भरोसा रखने की अपील की।

यह मामला न केवल एक धार्मिक स्थल के दावे तक सीमित है, बल्कि यह भारत की सांप्रदायिक एकता और विविधता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की परीक्षा भी है। पूर्व ब्यूरोक्रेट्स का यह पत्र भारतीय समाज के मूलभूत मूल्यों को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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