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राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा

राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा

राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है, क्योंकि राज्य की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा हो गई है। ये उपचुनाव 13 नवंबर 2024 को होंगे और 23 नवंबर 2024 को इनके नतीजे सामने आएंगे। इस चुनावी प्रक्रिया को लेकर प्रदेश की सियासी पार्टियों में सरगर्मी बढ़ गई है। इन उपचुनावों के परिणाम न केवल इन सीटों पर होने वाली राजनीतिक धारा को प्रभावित करेंगे, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा भी तय करेंगे।

किन कारणों से हो रहे हैं उपचुनाव?

साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के महज 11 महीने बाद ही इन 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इनमें से 5 सीटें इसलिए खाली हुई हैं क्योंकि यहां के विधायक सांसद बन गए हैं, जबकि 2 सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं। खाली हुई सीटों में झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर चौरासी, सलूंबर, और रामगढ़ शामिल हैं।

इन सीटों में से पांच सीटें विधायकों के सांसद बनने के कारण खाली हुई हैं, जबकि दो सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं। झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, और रामगढ़ सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे, वहीं खींवसर और चौरासी सीट पर क्रमशः भारतीय आदिवासी पार्टी और आरएलपी का कब्जा था। भाजपा के पास केवल सलूंबर सीट थी, जहां से अमृतलाल मीणा विधायक थे।

उपचुनाव की सियासी अहमियत

राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के परिणाम से प्रदेश की सियासी दिशा तय होगी। इन चुनावों में प्रदेश की भाजपा सरकार और विपक्षी दल कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यह चुनाव सरकार के कामकाज की पहली बड़ी परीक्षा मानी जा रही है। इन उपचुनावों के परिणाम आने के बाद यह भी तय होगा कि प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की पकड़ कितनी मजबूत है या विपक्षी कांग्रेस को जनता का समर्थन मिल रहा है।

अगर भाजपा इन उपचुनावों में बढ़त हासिल करती है, तो इसे मुख्यमंत्री की नीतियों और उनके नेतृत्व की सफलता के तौर पर देखा जाएगा। दूसरी ओर, अगर नतीजे विपक्षी कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं, तो यह भाजपा सरकार के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। चुनाव परिणाम से भविष्य की राजनीतिक दिशा तय होगी, क्योंकि यह चुनाव प्रदेश की राजनीति में आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

उपचुनाव की घोषणा से पहले तबादलों पर विवाद

उपचुनाव की घोषणा से पहले शिक्षा विभाग में किए गए तबादलों को लेकर भी विवाद पैदा हो गया। शिक्षा विभाग ने 40 स्कूल प्रिंसिपल्स के ट्रांसफर किए थे, जिनमें से 39 तबादले केवल दौसा जिले के थे। इन तबादलों को बाद में सरकार ने रद्द कर दिया, क्योंकि चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ये तबादले किए गए थे। इस फैसले को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है, क्योंकि इसे चुनाव से पहले वोटर्स को प्रभावित करने का प्रयास माना जा रहा था। इसी तरह, सरकार ने पहले 78 नगरीय निकायों में की गई राजनीतिक नियुक्तियों पर भी रोक लगा दी थी।

उपचुनाव की सीटों पर भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन

राजस्थान की 7 विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट पर भाजपा का कब्जा था। यह सीट सलूंबर की थी, जहां से अमृतलाल मीणा विधायक थे। बाकी 6 सीटों में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि एक सीट भारतीय आदिवासी पार्टी के पास थी और एक सीट आरएलपी के पास थी।

कांग्रेस के झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, और रामगढ़ सीट पर विधायक थे, जबकि खींवसर सीट भारतीय आदिवासी पार्टी के विधायक के पास थी। अब इन सीटों पर फिर से चुनाव होने जा रहे हैं, और नतीजे यह बताएंगे कि किस पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहेगा।

उपचुनावों के नतीजे तय करेंगे भविष्य की राजनीति

इन सात सीटों पर होने वाले उपचुनावों के नतीजे न केवल प्रदेश की राजनीति बल्कि केंद्र की राजनीति पर भी असर डाल सकते हैं। उपचुनावों के नतीजे राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के कामकाज की पहली परीक्षा के तौर पर देखे जाएंगे। भाजपा सरकार इन चुनावों को जीतकर अपनी साख को और मजबूत करना चाहेगी, वहीं विपक्षी कांग्रेस भी इस मौके को भुनाने की पूरी कोशिश करेगी।

अगर भाजपा इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करती है, तो इसे राज्य में उनकी सरकार के कामकाज और नीतियों पर जनता की मुहर के तौर पर देखा जाएगा। हालांकि, अगर कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल जीतते हैं, तो यह संकेत होगा कि भाजपा सरकार को जनता का उतना समर्थन नहीं मिल रहा जितना वह उम्मीद कर रही थी।

आचार संहिता लागू

उपचुनाव की घोषणा के साथ ही इन सात विधानसभा सीटों पर आचार संहिता लागू हो गई है। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में अब कोई नई सरकारी योजना, उद्घाटन, या लोकार्पण नहीं किया जा सकेगा। सरकार के मंत्री और अधिकारी भी इन इलाकों में सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाएंगे। यह कदम चुनावों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराने के लिए उठाया गया है।

आचार संहिता लागू होने के साथ ही इन क्षेत्रों में सरकारी कामकाज पर भी रोक लग गई है, ताकि कोई भी पार्टी वोटरों को प्रभावित न कर सके। अब सरकार इन सीटों पर कोई नई घोषणा या सरकारी योजना लागू नहीं कर पाएगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।

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