मनीषा शर्मा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहिबजादों की शहादत को सम्मानित करते हुए हर साल 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की। यह दिन उनके बलिदान को श्रद्धांजलि देता है और आने वाली पीढ़ियों को धर्म, सत्य और साहस की शिक्षा देता है।
बीजेपी का आयोजन और घोषणा
राजस्थान के जयपुर में बीजेपी कार्यालय में वीर बाल दिवस के उपलक्ष्य में शब्द-कीर्तन का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने साहिबजादों की स्मृति में एक छात्रावास बनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इसके लिए राज्य सरकार सिख समाज को जमीन उपलब्ध कराएगी। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा, “नेहरू के जन्मदिन पर बाल दिवस मनाने की परंपरा थी, लेकिन पीएम मोदी द्वारा साहिबजादों की शहादत के उपलक्ष्य में वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत ऐतिहासिक है।”
धर्म और राष्ट्र के प्रति साहिबजादों की प्रेरणा
साहिबजादों की शहादत न केवल धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित करती है, बल्कि यह बताती है कि सत्य और साहस के लिए हर बलिदान छोटा है। उनके बलिदान ने सिख धर्म और भारतीय समाज में अमिट छाप छोड़ी है।
मुगलों द्वारा आतंक का सत्य
मुगलों द्वारा किए गए अत्याचार, विशेष रूप से बच्चों और निर्दोष लोगों पर, भारतीय इतिहास का वह अध्याय है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। साहिबजादों पर किए गए अत्याचार उनकी अदम्य वीरता और अडिग विश्वास का परिचायक हैं। मदन राठौड़ ने कहा, “हमें मुगलों द्वारा किए गए आतंक को समाज तक पहुंचाने और संगठित होने की आवश्यकता है। यह जागरूकता हमें अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद करेगी।”
साहिबजादों की शहादत का इतिहास
सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे पुत्र, बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष), भारतीय इतिहास के सबसे वीर और प्रेरणादायक पात्रों में से एक हैं। उनकी शहादत, सत्य और धर्म की रक्षा के लिए, आज भी प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
1705 ई. में जब अत्याचारी मुगल शासक औरंगजेब ने सिख धर्म को समाप्त करने और धर्म परिवर्तन के लिए आक्रमण किया, तब साहिबजादों ने अदम्य साहस दिखाते हुए मुगलों के आगे झुकने से इनकार कर दिया। इन मासूम बच्चों को क्रूर यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
साहिबजादों की वीरता का प्रमाण
साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान ने कैद किया। उनके समक्ष इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे दोनों बालकों ने दृढ़ता के साथ ठुकरा दिया। इसके बाद, उन्हें जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया। इस अद्भुत बलिदान ने भारतीय इतिहास में उन्हें अमर कर दिया।