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IAS-IPS समेत 12 आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट

IAS-IPS समेत 12 आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट

मनीषा शर्मा। अजमेर की अदालत ने 11 जून 2023 की रात, जयपुर रोड पर स्थित मकराना राज होटल में हुई भयंकर मारपीट-तोड़फोड़ की घटना के संदर्भ में मामला दर्ज करते हुए IAS, IPS समेत कुल 12 आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया है। इस घटना में शामिल हैं तत्कालीन ADA आयुक्त एवं वर्तमान में सीईओ माडा, गिरधर कुमार; तत्कालीन ASP एवं वर्तमान में जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के डिप्टी कमिश्नर, IPS सुशील कुमार बिश्नोई; टोंक जिले के तहसीलदार रामधन गुर्जर; पटवारी नरेंद्र सिंह; साथ ही गेगल थाना से संबंधित कई पुलिसकर्मी जैसे कि ASI रुपाराम, SHO सुनील, कॉन्स्टेबल गौतम व मुकेश यादव, एवं अन्य अधिकारी।

घटना के अनुसार, 11 जून 2023 की रात लगभग 2 बजे होटल मकराना राज में एक भयंकर मारपीट की घटना घटी। यह होटल जयपुर-अजमेर हाईवे के किनारे स्थित था, जहाँ उस समय अधिकांश होटल स्टाफ सोने की तैयारी में लीन थे। उसी समय, एक विदाई पार्टी के बाद, कई उच्चस्तरीय अधिकारी – जिनमें IAS, IPS, तहसीलदार, पटवारी एवं अन्य सरकारी कर्मचारी शामिल थे – नशे की स्थिति में होटल पहुंच गए। उनकी उपस्थिति होटल स्टाफ के लिए अचानक डर का कारण बन गई।

घटना का आरंभ तब हुआ जब अधिकारी होटल में प्रवेश कर टॉयलेट व स्टाफ क्वार्टर के बारे में जानकारी माँगने लगे। होटल स्टाफ ने उचित जानकारी देने पर भी अधिकारियों का व्यवहार असंयमित रहा। नशे में धुत्त इन अधिकारियों ने होटल के कर्मचारियों से कड़ाई से प्रश्न पूछे और उनसे इस बात की शिकायत की कि होटल के टॉयलेट साफ नहीं हैं। कुछ मिनटों बाद बात बिगड़ गई और एक कर्मचारी को थप्पड़ मारते हुए IPS सुशील कुमार बिश्नोई ने प्रत्यक्ष हमला किया। इस एक थप्पड़ से स्थिति और भी बिगड़ गई।

आक्रमण के क्रम में, इन उच्च पदस्थ अधिकारियों ने होटल के कर्मचारियों पर डंडों और रॉड से तोड़फोड़ शुरू कर दी। CCTV फुटेज में भी इनकी हिंसात्मक हरकतों की पुष्टि होती है। होटल स्टाफ के अनुसार, घटना दो चरणों में हुई। पहले दौर में, अधिकारियों ने होटल के कुछ कर्मचारियों पर बिना किसी पूर्व सूचना के हमला किया। इस दौरान, होटल के कुछ जागते हुए कर्मचारी और थोड़े बहुत सुरक्षा कर्मी उपस्थित थे, परन्तु उन्होंने उचित कार्रवाई करने का अवसर ही नहीं पा सके। होटल स्टाफ के मुताबिक, पहले दौर में मारपीट इतनी भयंकर हुई कि कई कर्मचारियों के हाथ-पैर सूज गए।

घटना के बाद होटल स्टाफ ने तुरंत ही अपने मालिक महेंद्र सिंह को सूचित किया। महेंद्र सिंह ने 3:15 बजे गेगल थाना पहुंचकर शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में बताया गया कि होटल में हुई मारपीट केवल एक बार नहीं हुई, बल्कि दो चरणों में कर्मचारियों पर हमला किया गया। पहले दौर में अधिकारी और उनके साथ उपस्थित कुछ कर्मचारी खुद होटल के कर्मचारियों को पीटते हुए दिखाई दिए। फिर, कुछ समय बाद, पुलिस बल के कुछ सदस्य भी उन पर हमला करने लगे। इस बीच, होटल स्टाफ ने कई बार बचने की कोशिश की, परन्तु जोरदार डंडे और थप्पड़ों की बारिश में उन्हें कोई राहत नहीं मिल सकी।

घटना के दौरान, होटल के कुछ कर्मचारियों ने बताया कि उन्होंने महसूस किया कि यह हमला केवल एक असामान्य घटना नहीं थी, बल्कि इसमें उच्चस्तरीय अधिकारियों की भागीदारी थी। उन्होंने बताया कि जैसे ही वे पुलिस स्टेशन के बाहर पहुँचे, उन्हें यह समझ आया कि प्रशासनिक दबाव और राजनीतिक स्वार्थ की वजह से मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है। घटना की जानकारी प्राप्त होते ही, गेगल थाना में अज्ञात के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया गया, जिसके तहत पांच लोगों की गिरफ्तारी दिखाई गई।

घटना की जांच में पता चला कि संबंधित अधिकारियों ने पुलिस जांच में सहयोग करने से इनकार कर दिया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट मनमोहन चंदेल ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जांच में स्पष्ट रूप से दिखता है कि आरोपियों ने पुलिस जांच में सहयोग नहीं किया। इसी आधार पर उन्होंने गेगल थाना पुलिस के एफआर को नामंजूर कर दिया और निर्देश दिया कि पुलिस अधीक्षक (एसपी) स्वयं इन आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट तामील कराएँ। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि एसपी से हर सोमवार मामले से जुड़ी रिपोर्ट लिखित में प्रस्तुत की जाए और वारंट तामील न होने पर प्रयासों की जानकारी भी दी जाए।

इस आदेश के चलते, मामले में शामिल उच्चस्तरीय अधिकारियों पर पहले से ही नशे में होने का आरोप लगाया गया था। रिपोर्टों के अनुसार, उस रात होटल में आयोजित विदाई पार्टी में शामिल अधिकारी पार्टी के बाद नशे में होकर होटल पहुंचे। अधिकारी समूह में IAS गिरधर कुमार, IPS सुशील कुमार, तहसीलदार रामधन गुर्जर, पटवारी नरेंद्र सिंह, LDC हनुमान प्रसाद तथा अन्य सरकारी कर्मचारी शामिल थे। इनके नशे की स्थिति ने उन्हें सामान्य नागरिक समझकर होटल स्टाफ के बीच घुसने का अवसर प्रदान किया। होटल में मौजूद कुछ कर्मचारी जिन्होंने साक्ष्य के तौर पर बयान दिया, उन्होंने बताया कि अधिकारी पहले होटल के टॉयलेट व स्टाफ क्वार्टर की स्थिति पर चर्चा करने लगे, लेकिन जब उन्हें साफ-सुथरे टॉयलेट की मांग की गई तो उनके व्यवहार में अचानक क्रोध और आक्रोश प्रकट हो गया।

घटना की सीसीटीवी फुटेज में स्पष्ट रूप से यह रिकॉर्ड किया गया है कि अधिकारी, जिनमें IAS और IPS के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, ने होटल स्टाफ पर हमला किया। इस फुटेज ने पुलिस जांच में एक महत्वपूर्ण सबूत के रूप में कार्य किया। पुलिस द्वारा यह भी दावा किया गया कि एसपी ने केवल ASI सहित तीन पुलिसकर्मियों को लाइन भेजा था, परन्तु बाद में घटना की गंभीरता को देखते हुए 13 जून 2023 को IAS गिरधर कुमार और IPS सुशील कुमार को नशे में होने तथा मारपीट में शामिल होने के आरोप में सस्पेंड भी कर दिया गया था। हालांकि, बाद में इन्हें बहाल कर लिया गया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और पुलिसकर्मी शामिल हों, प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय प्रशासन ने इस गंभीर घटना की सूचना सरकार को नहीं दी, जिसके चलते चीफ सेक्रेटरी निवर्तमान ऊषा शर्मा की नाराजगी का कारण बना। अदालत के इस आदेश के अनुसार, एसपी को स्वयं वारंट तामील कराना होगा और यदि वारंट तामील कराने में देरी होती है तो एसपी को हर सोमवार मामले से जुड़ी लिखित रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करनी होगी।

मामले में दर्ज चार एफआईआर के आधार पर मामला दर्ज किया गया है। पहली एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि नशे में होकर अधिकारियों ने होटल स्टाफ के साथ ईमानदारी से काम न करते हुए मारपीट की। दूसरी एफआईआर में आगजनी के आरोप लगाए गए, जबकि तीसरी एफआईआर में हाईवे जाम करने के मामले में मामला दर्ज किया गया है। चौथी एफआईआर में रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा ईवीएम से छेड़छाड़ करने के आरोप शामिल हैं। इन मामलों में से पहली दो में आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, परन्तु तीसरी और चौथी एफआईआर में अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई है।

होटल के कर्मचारियों और मालिक महेंद्र सिंह के बयान से यह स्पष्ट होता है कि मारपीट की घटना कितनी निर्दयी और असंवैधानिक रही। होटल स्टाफ ने बताया कि जैसे ही अधिकारी होटल में आए, उन्होंने बिना किसी चेतावनी के जोरदार हमला कर दिया। अधिकारियों ने डंडों और रॉड के साथ कर्मचारियों पर हमला करते हुए उन्हें घायल कर दिया। घटना के दौरान, जब होटल स्टाफ ने अपने आप को बचाने की कोशिश की, तो पुलिस ने भी उन्हें अंदर धकेल कर मारपीट जारी रखी। इस हिंसात्मक माहौल में होटल स्टाफ की हालत इतनी गंभीर हो गई कि कई कर्मचारियों के हाथ-पैर सूज गए और उन्हें तुरंत चिकित्सा सुविधा की आवश्यकता पड़ी।

घटना के बाद, होटल मालिक महेंद्र सिंह ने तुरंत पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई। महेंद्र सिंह के अनुसार, घटना के दौरान पुलिस के कुछ अधिकारी भी होटल में मौजूद थे, जिन्होंने स्थिति को और बिगाड़ दिया। होटल स्टाफ का कहना है कि उन्हें बार-बार धमकाया गया कि “अब अच्छे से ठोक लो साहब” – इस तरह की बात सुनकर स्थिति और भी भयावह हो गई। पुलिस द्वारा किए गए प्राथमिक कार्रवाई के बावजूद, मामला जल्द ही सुर्खियों में आ गया और न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो गई।

अब कोर्ट ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा है कि संबंधित अधिकारियों में शामिल वरिष्ठ पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण, उनकी गिरफ्तारी वारंट तामील कराने की जिम्मेदारी एसपी की है। कोर्ट ने एसपी से आग्रह किया कि यदि वारंट तामील कराने में कोई देरी होती है, तो हर सोमवार वारंट तामील कराने के प्रयासों की विस्तृत रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की जाए। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि मामले की केस डायरी पुलिस से प्राप्त की जाए, ताकि आगे की जांच में किसी भी प्रकार की चूक न रहे।

इस पूरे मामले में न केवल होटल स्टाफ की पीड़ा सामने आई है, बल्कि यह भी उजागर हुआ है कि जब उच्च स्तरीय अधिकारी नशे में हों और जनता के बीच घुस जाएँ, तो प्रशासनिक जवाबदेही कैसे प्रभावित होती है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ऐसी घटनाएं केवल एक असामान्य घटना हैं या फिर यह प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक दबाव का प्रतिफल हैं। अदालत का यह कठोर आदेश न केवल आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कानून के सामने कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, असंवेदनशील व्यवहार करने से बच नहीं सकता।

घटना की जांच में पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज समेत कई सबूत प्रस्तुत किए हैं, जिनसे स्पष्ट हो गया कि इस मारपीट में IAS गिरधर कुमार, IPS सुशील कुमार समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। पुलिस के मुताबिक, घटना के दौरान आरोपियों ने पुलिस जांच में सहयोग करने से इंकार कर दिया, जिसके कारण जांच में बाधा उत्पन्न हुई। इसलिए, न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप करना न्यायोचित है और एसपी को खुद वारंट तामील कराने का आदेश दिया।

संबंधित अधिकारियों की सस्पेंशन और बाद में बहाली, प्रशासनिक दबाव और पुलिस जांच में आई चुप्पी, इन सभी पहलुओं को सामने लाते हैं कि किस प्रकार की राजनीतिक और प्रशासनिक जटिलताएँ इस घटना के पीछे छिपी हैं। होटल में हुई मारपीट-तोड़फोड़ की यह घटना अब एक प्रतीक बन चुकी है, जहाँ न केवल सरकारी अधिकारियों ने अपमानजनक आचरण किया, बल्कि कानून व्यवस्था के मौलिक सिद्धांतों का भी उल्लंघन हुआ।

होटल स्टाफ के बयान और प्राप्त सबूत यह स्पष्ट करते हैं कि इस हिंसक घटना में शामिल अधिकारी नशे में थे और उन्होंने बिना किसी स्पष्ट कारण के अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हुए निर्दोष कर्मचारियों को मारपीट किया। इस घटना के परिणामस्वरूप, होटल में काम करने वाले कर्मचारियों को न केवल शारीरिक चोटें आईं, बल्कि मानसिक आघात भी हुआ। घटना के बाद, प्रभावित होटल स्टाफ ने प्रशासनिक दबाव के बावजूद पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई और न्याय की मांग की।

अदालत का आदेश कि एसपी को हर सोमवार मामले की प्रगति की रिपोर्ट लिखित रूप में प्रस्तुत करनी होगी, यह सुनिश्चित करता है कि इस मामले में किसी भी प्रकार की देरी या प्रशासनिक चूक को रोका जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वारंट तामील नहीं होता है, तो वारंट तामील कराने के प्रयासों की विस्तृत जानकारी अदालत में प्रस्तुत की जाए। इस आदेश से यह संदेश जाता है कि उच्च पदस्थ अधिकारी चाहे हों या न हों, कानून के सामने समान जवाबदेह होंगे।

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