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आसाराम को इलाज के लिए मिली 30 दिन की पैरोल, समर्थकों की उमड़ी भीड़

आसाराम को इलाज के लिए मिली 30 दिन की पैरोल, समर्थकों की उमड़ी भीड़

शोभना शर्मा।  रेप केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम (Asaram) को एक बार फिर इलाज के लिए 30 दिन की पैरोल पर रिहा किया गया है। यह पैरोल जोधपुर हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता और न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ द्वारा दी गई है। इससे पहले अगस्त में भी उसे 7 दिन की पैरोल दी गई थी। आसाराम अब जोधपुर के भगत की कोठी स्थित एक निजी आयुर्वेदिक अस्पताल में इलाज करवाएगा। रविवार रात उसे एम्बुलेंस के जरिए अस्पताल लाया गया, जहाँ उसके समर्थकों की भारी भीड़ जमा हो गई थी।

आसाराम को इलाज के लिए पैरोल की अनुमति उसके वकीलों आरएस सलूजा और यशपाल राजपुरोहित द्वारा किए गए आवेदन के बाद दी गई। इस आवेदन में उन्होंने यह निवेदन किया था कि जब तक अस्पताल के डॉक्टर उसे डिस्चार्ज नहीं कर देते, तब तक इलाज की अनुमति मिलनी चाहिए। सरकारी वकील अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक चौधरी ने 30 दिन की पैरोल की मांग का समर्थन किया। अंत में, दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने 30 दिन के लिए पैरोल को मंजूरी दी।

आसाराम को पिछले 11 वर्षों में यह दूसरी बार इलाज के लिए पैरोल दी गई है। इससे पहले उसे अगस्त में 7 दिन की पैरोल पर रिहा किया गया था। तब आसाराम ने महाराष्ट्र के माधोबाग आयुर्वेदिक अस्पताल में इलाज करवाया था और उसके बाद उसे वापस जोधपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया था। वर्तमान पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद भी अगर उसे अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जाती है, तो उसके वकील उसके इलाज की अवधि को बढ़ाने के लिए पुनः आवेदन कर सकते हैं।

आसाराम के पैरोल पर विवाद और समर्थकों का उत्साह

जैसे ही आसाराम को इलाज के लिए पैरोल पर रिहा किया गया, उसके समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ गई। रविवार रात उसे अस्पताल लाए जाने के दौरान उसके समर्थकों का हुजूम अस्पताल के बाहर देखने को मिला। कई समर्थक उसकी झलक पाने और उसके स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए अस्पताल पहुंचे। समर्थकों का दावा है कि आसाराम का स्वास्थ्य लंबे समय से बिगड़ा हुआ है और वह बेहतर इलाज का हकदार है।

हालांकि, इस पैरोल को लेकर विवाद भी हुआ है। आसाराम के पैरोल मिलने पर कई लोगों ने इस फैसले की आलोचना की है, क्योंकि वह एक गंभीर अपराध का दोषी है और इस तरह की राहत को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे गंभीर मामलों में पैरोल नहीं दी जानी चाहिए, जबकि अन्य लोगों का मानना है कि एक कैदी के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, भले ही वह कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो।

पैरोल की शर्तें और नियम

आसाराम को पैरोल पर मिलने के बावजूद कुछ शर्तें लगाई गई हैं। यह पैरोल सिर्फ इलाज के उद्देश्य से दी गई है, और उसे अस्पताल के अलावा किसी अन्य स्थान पर जाने की अनुमति नहीं है। अगर अस्पताल में इलाज के दौरान डॉक्टर द्वारा आसाराम को डिस्चार्ज कर दिया जाता है, तो उसे तुरंत जेल में लौटना होगा। इसके अलावा, उसे किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा या अपने समर्थकों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई है। उसे सिर्फ अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के निदान और उपचार के लिए यह सुविधा मिली है।

आसाराम के वकील उसकी सेहत को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने अदालत से उसकी चिकित्सा स्थिति को देखते हुए और भी अधिक लचीले रुख की उम्मीद जताई है। वहीं, सरकारी वकीलों ने 30 दिन की पैरोल को पर्याप्त बताया है, जिससे कि उसके इलाज के दौरान उसकी स्वास्थ्य जांच पूरी हो सके।

आसाराम के परिवार के संपर्क में आने की कोशिशें

आसाराम का परिवार भी इस दौरान उससे मिलने की कोशिशों में जुटा है। 18 अक्टूबर को उसके बेटे नारायण साईं ने अपने पिता से मिलने के लिए गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। सूरत की लाजपोर सेंट्रल जेल में बंद नारायण साईं को गुजरात हाईकोर्ट ने मानवीय आधार पर अपने पिता से मिलने की अनुमति दी थी। इसके लिए नारायण साईं को 5 लाख रुपये की सुरक्षा राशि जमा करने का आदेश दिया गया था। उसे अपने पिता से 4 घंटे मिलने का समय दिया गया था। इस मुलाकात के दौरान नारायण साईं ने अपने पिता के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली और उनकी चिकित्सा स्थिति पर चर्चा की।

आसाराम के स्वास्थ्य और न्यायिक प्रक्रिया पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया

आसाराम को पैरोल पर मिलने के बाद कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस निर्णय पर प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। कुछ लोगों का मानना है कि आसाराम को इतनी बार पैरोल देना सही नहीं है, क्योंकि वह एक गंभीर अपराध का दोषी है। वहीं, उसके समर्थकों का कहना है कि हर इंसान को स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार है और आसाराम का स्वास्थ्य गंभीर स्थिति में है, जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि पैरोल का निर्णय अदालत के विवेकाधिकार के तहत आता है और यदि किसी दोषी की सेहत बिगड़ती है, तो उसे पैरोल मिलना उचित है।

भविष्य की संभावनाएँ और करुणा पर विचार

आसाराम के लिए यह पैरोल का समय उसके स्वास्थ्य को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उसके समर्थकों की उम्मीद है कि इस समय का उपयोग कर वह अपने स्वास्थ्य को कुछ हद तक बेहतर कर सकेगा। हालांकि, अदालत द्वारा दी गई पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद, उसे पुनः जेल में लौटना होगा।

अधिवक्ताओं का मानना है कि अगर आसाराम की हालत में सुधार नहीं होता है, तो उसके वकील पुनः अदालत में पैरोल की अवधि बढ़ाने का अनुरोध कर सकते हैं। अदालतों में करुणा पर आधारित पैरोल एक आम प्रथा है, खासकर गंभीर बीमारियों से जूझ रहे कैदियों के मामलों में। हालांकि, करुणा पर आधारित पैरोल का फैसला अदालतों पर निर्भर करता है और यह प्रत्येक मामले की गंभीरता पर आधारित होता है।

आसाराम को जोधपुर हाईकोर्ट द्वारा दी गई 30 दिन की पैरोल को लेकर समाज में अलग-अलग राय है। एक ओर, उसके समर्थकों का मानना है कि उसे इलाज का अधिकार है और उसकी सेहत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। दूसरी ओर, कई लोग इस पैरोल पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि वह एक गंभीर अपराध का दोषी है।

फिलहाल, आसाराम जोधपुर के निजी आयुर्वेदिक अस्पताल में भर्ती है, जहाँ उसका इलाज चल रहा है। पैरोल की यह अवधि उसके स्वास्थ्य के लिए सुधार का समय हो सकती है, लेकिन इस दौरान अदालत की नजर उस पर टिकी रहेगी।

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