शोभना शर्मा। राजस्थान विधानसभा उपचुनावों के लिए बीजेपी नए चेहरे के बजाय फिर से पुराने हारे हुए प्रत्याशियों पर दांव लगाने की तैयारी कर रही है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने इस बात के संकेत दिए कि पार्टी इस बार “जिताऊ उम्मीदवार” पर ध्यान केंद्रित करेगी और इसके लिए पार्टी के पुराने सिद्धांतों जैसे “एक परिवार, एक टिकट” के नियम को भी दरकिनार कर सकती है।
मदन राठौड़ ने कहा कि पिछली बार हार के पीछे कांग्रेस द्वारा फैलाए गए भ्रम का बड़ा हाथ था, जिसमें कांग्रेस ने समाज में यह भ्रम पैदा किया था कि बीजेपी आरक्षण खत्म कर देगी और संविधान को समाप्त कर देगी। लेकिन अब ऐसा कोई भ्रम नहीं है, और जनता भी सच समझ चुकी है। इसी वजह से हारे हुए चेहरों को दोबारा मौका दिया जा सकता है।
हारे हुए प्रत्याशियों को फिर मौका
बीजेपी इस बार उपचुनावों में कुछ पुराने हारे हुए प्रत्याशियों को फिर से मौका देने की तैयारी में है। इनमें प्रमुख नाम हैं:
- शंकरलाल शर्मा (दौसा सीट):
शंकरलाल शर्मा 2013 में दौसा सीट से विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2018 और 2023 के चुनावों में हार गए थे। मौजूदा परिस्थितियों में, जब पार्टी ने प्रदेश में ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाया है, ऐसे में शंकरलाल शर्मा को एक बार फिर टिकट मिल सकता है।- सुखवंत सिंह (रामगढ़, अलवर सीट):
सुखवंत सिंह को पार्टी दो चुनाव हारने के बाद फिर से मौका दे सकती है। 2018 में टिकट मिलने के बावजूद वे हार गए थे। पिछले चुनावों में पार्टी ने जय आहूजा को उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे तीसरे स्थान पर रहे। सुखवंत सिंह ने आजाद समाज पार्टी से चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे थे, जिससे उनकी पकड़ को देखते हुए उन्हें फिर से टिकट मिल सकता है।- सुशील कटारा (चौरासी विधानसभा सीट):
सुशील कटारा लगातार दो बार 2018 और 2023 के चुनाव हार चुके हैं, लेकिन पार्टी मौजूदा परिस्थितियों में उन्हें फिर से दांव पर लगा सकती है। यह क्षेत्र में पार्टी के लिए महत्वपूर्ण सीट है, और कटारा का अनुभव पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।परिवारवाद से परहेज नहीं
बीजेपी ने इस बार अपने परिवारवाद के सिद्धांत से भी समझौता करने के संकेत दिए हैं। कुछ प्रमुख नाम जो इस श्रेणी में आ सकते हैं, वे हैं:
- अविनाश मीणा (सलूंबर सीट):
सलूंबर सीट बीजेपी विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के बाद खाली हुई है। पार्टी इस सीट पर परिवारवाद के नियम को नजरअंदाज कर अमृतलाल मीणा के बेटे अविनाश मीणा को टिकट देने पर विचार कर रही है।- जगमोहन मीणा (दौसा सीट):
मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा दौसा सीट से प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। अगर उन्हें टिकट मिलता है, तो यह पार्टी के एक परिवार से एक टिकट के नियम के विपरीत होगा। किरोड़ी पहले से ही विधायक हैं और उनके भतीजे राजेन्द्र महुआ से विधायक हैं।- धनंजय सिंह (खींवसर सीट):
खींवसर सीट से मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह भी टिकट के दावेदार हैं। पार्टी ने उनका नाम पैनल में भेजा है। अगर उन्हें टिकट मिलता है, तो यह भी परिवारवाद के तहत आएगा।कांग्रेस पर हमला और परिवारवाद का जिक्र
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रियंका गांधी को वायनाड से टिकट दे रही है, सोनिया गांधी राज्यसभा से सांसद हैं, और राहुल गांधी भी संसद में हैं। ऐसे में कांग्रेस को परिवारवाद के बारे में हमसे सवाल नहीं करना चाहिए।
बीजेपी ने खुद भी इस सिद्धांत को लोकसभा चुनावों के दौरान तोड़ा था जब उन्होंने विश्वराज सिंह मेवाड़ की पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ को राजसमंद से टिकट दिया था। विश्वराज सिंह विधानसभा चुनाव में जीतकर विधायक बने थे, और बाद में उनकी पत्नी को भी लोकसभा चुनावों में टिकट दिया गया, जिससे वे सांसद बनीं।
चुनावी गणित और रणनीति
बीजेपी का यह निर्णय कि हारे हुए प्रत्याशियों और परिवारवाद से जुड़े चेहरों को टिकट देने पर विचार किया जाएगा, पार्टी की मौजूदा चुनावी रणनीति को दर्शाता है। पार्टी का मुख्य फोकस जीतने वाले उम्मीदवारों को खड़ा करना है, चाहे वे पहले हारे हों या परिवारवाद के नियमों का उल्लंघन करते हों।
राजस्थान में बीजेपी के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में कांग्रेस सरकार का अंत होने के बाद पार्टी की पकड़ मजबूत करने का मौका है। उपचुनावों में जीतकर बीजेपी अपनी ताकत को फिर से मजबूत कर सकती है और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक ठोस आधार तैयार कर सकती है।
राजस्थान विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी ने इस बार “जिताऊ उम्मीदवार” पर जोर दिया है, चाहे वे पहले हारे हुए प्रत्याशी हों या परिवारवाद से जुड़े हुए। पार्टी ने चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए हारे हुए चेहरों और परिवारवाद के सिद्धांत से जुड़े उम्मीदवारों को टिकट देने का इरादा जताया है।