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बांसवाड़ा संभाग निरस्त, सांसद राजकुमार रोत नाराज

बांसवाड़ा संभाग निरस्त, सांसद राजकुमार रोत नाराज

शोभना शर्मा।  राजस्थान में प्रशासनिक बदलाव के तहत भजनलाल सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए बांसवाड़ा संभाग समेत तीन संभाग और 9 जिलों को समाप्त कर दिया है। यह फैसला हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया, जिसके बाद राज्य में जिलों की संख्या घटकर 41 रह गई है और संभागों की संख्या सात हो गई है। इस फैसले ने राजस्थान की राजनीति में हलचल मचा दी है, खासकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में।

क्या है बांसवाड़ा संभाग का महत्व?

बांसवाड़ा संभाग, जो आदिवासी बहुल इलाकों बांसवाड़ा और डूंगरपुर को जोड़ता है, राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह क्षेत्र मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमाओं से सटा हुआ है। यहां रहने वाली जनता का मुख्य आधार खेती और मजदूरी है, जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रही है। संभाग का गठन इस उद्देश्य से किया गया था कि आदिवासी क्षेत्रों की जनता को प्रशासनिक सेवाएं नज़दीक मिलें।

सांसद राजकुमार रोत का आक्रोश

बांसवाड़ा संभाग को समाप्त करने पर सांसद राजकुमार रोत ने इसे जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए लिखा, “बांसवाड़ा संभाग को निरस्त करके राज्य सरकार ने बांसवाड़ा-डूंगरपुर की जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है। मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमा पर रहने वाला एक गरीब आदिवासी लगभग 240 किलोमीटर की दूरी तय करके उदयपुर आना तो सोच भी नहीं सकता।”  उन्होंने राज्य सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है। सांसद का कहना है कि यह निर्णय आदिवासी जनता के अधिकारों और उनकी सुविधा के खिलाफ है।

कौन-कौन से जिले समाप्त किए गए?

गहलोत सरकार के समय बनाए गए 17 नए जिलों में से 9 जिलों को समाप्त करने का फैसला किया गया है। समाप्त किए गए जिलों में शामिल हैं:

  1. दूदू
  2. केकड़ी
  3. शाहपुरा
  4. नीमकाथाना
  5. गंगापुरसिटी
  6. जयपुर ग्रामीण
  7. जोधपुर ग्रामीण
  8. अनूपगढ़
  9. सांचौर

हालांकि, बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, फलौदी और सलूम्बर जिले को यथावत रखा गया है।

सरकार के इस फैसले के कारण

भजनलाल सरकार का कहना है कि इन जिलों और संभागों का गठन संसाधनों और प्रशासनिक लागत को देखते हुए तर्कसंगत नहीं था। सरकार का मानना है कि सीमित संसाधनों के कारण प्रशासनिक इकाइयों की संख्या कम करना ही उचित है। हालांकि, इस फैसले से जनता को होने वाली असुविधाओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

जनता के लिए बढ़ी मुश्किलें

बांसवाड़ा संभाग को समाप्त करने के बाद यहां की जनता को प्रशासनिक कार्यों के लिए उदयपुर का रुख करना होगा, जो लगभग 240 किलोमीटर दूर है। यह दूरी आदिवासी क्षेत्रों की गरीब जनता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। खासतौर पर उन लोगों के लिए, जो पहले ही आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।

विपक्ष का रुख

विपक्षी नेताओं ने भी इस फैसले को लेकर सरकार की आलोचना की है। उनका कहना है कि यह फैसला राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित है और इससे जनता को कोई लाभ नहीं होगा। राजस्थान में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले गहलोत सरकार द्वारा बनाए गए जिलों को समाप्त करना बीजेपी सरकार के मंशा पर सवाल खड़े करता है।

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