शोभना शर्मा। अजमेर स्थित हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हर साल आयोजित होने वाला पारंपरिक बसंत उत्सव मंगलवार को पूरी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर दरगाह के शाही चौकी के कव्वाल असरार हुसैन के परिवार के सदस्यों ने परंपरा के अनुसार बसंत की विशेष पेशकश की।
बसंत की इस ऐतिहासिक रस्म का आयोजन दरगाह दीवान की सदारत में हुआ, जहां बड़ी संख्या में जायरीन और सूफी श्रद्धालु उपस्थित रहे। इस उत्सव की शुरुआत निज़ाम गेट से हुई, जहां से बसंत जुलूस निकाला गया। इस दौरान शाही कव्वालों ने अमीर खुसरो के सूफियाना कलाम गाते हुए बसंत का गुलदस्ता लेकर दरगाह की ओर कूच किया। गुलदस्ते को ख्वाजा गरीब नवाज की मजार शरीफ पर चढ़ाकर सदियों पुरानी इस आध्यात्मिक परंपरा का निर्वहन किया गया।
बसंत उत्सव और सूफी परंपरा का अनूठा संगम
बसंत उत्सव सूफी परंपरा का एक अहम हिस्सा है, जिसकी जड़ें महान सूफी संत अमीर खुसरो की विरासत से जुड़ी हुई हैं। यह उत्सव दरगाह में हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसे प्रेम, श्रद्धा, संगीत और आध्यात्मिकता का संगम माना जाता है।
इस अवसर पर दरगाह परिसर में विशेष कव्वाली कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहां शाही कव्वालों ने अमीर खुसरो के प्रसिद्ध सूफियाना कलाम पेश किए। जैसे ही कव्वालों की आवाज गूंजी, पूरा परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया और जायरीन इस सूफी संगीत में डूब गए।
गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक
दरगाह शरीफ में बसंत उत्सव सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द्र का भी प्रतीक है। यह उत्सव दर्शाता है कि भारत में विभिन्न धर्मों और परंपराओं के बीच कितनी गहरी आत्मीयता और प्रेम है।
दरगाह के खादिमों और श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर कहा कि बसंत उत्सव सूफी प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस आयोजन से समाज में आपसी भाईचारे और प्रेम की भावना को बल मिलता है। यह न सिर्फ दरगाह के अनुयायियों बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए एकता, प्रेम और आध्यात्मिक समर्पण का संदेश देता है।