मनीषा शर्मा। राजस्थान के रणथंभौर टाइगर रिजर्व (Ranthambore Tiger Reserve) से बाघों के गायब होने की खबर ने वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणवादियों को चिंतित कर दिया है। हाल ही में टाइगर वॉच नामक संस्था ने रणथंभौर से 15 बाघ-बाघिन और शावकों के गायब होने के कारणों का खुलासा किया है। टाइगर वॉच के अनुसार, गायब होने का मुख्य कारण उनकी बढ़ती उम्र, स्वास्थ्य समस्याएं, टेरिटोरियल फाइट (क्षेत्रीय संघर्ष) और अन्य मानव जनित कारण हैं।
यह खबर जंगल संरक्षण के लिए काम कर रहे संगठनों के लिए एक चेतावनी के रूप में भी है, जो वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में उनके प्रयासों में और अधिक जागरूकता की आवश्यकता को दिखाता है। टाइगर वॉच का यह दावा वन विभाग के साथ इस मुद्दे को लेकर हो रही बहस के बीच आया है, जिसमें वन विभाग गायब हुए बाघों के बारे में स्पष्ट उत्तर नहीं दे पा रहा है।
गायब बाघों की पहचान और वन विभाग का मौन
इस गंभीर मामले को देखते हुए, राजस्थान के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन (CWLW) पवन कुमार उपाध्याय ने 4 नवंबर को एक विशेष कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का उद्देश्य गायब हुए बाघ-बाघिन और शावकों का रिकॉर्ड खंगालना और उनके गायब होने के पीछे की संभावित वजहों को खोजना है।
वन विभाग ने 6 नवंबर को रणथंभौर टाइगर रिजर्व में मौजूद 10 बाघों की उपस्थिति के बारे में जानकारी दी, लेकिन बाकी 15 बाघ-बाघिन और शावकों के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाया। यह मौन वन विभाग के लिए गंभीर सवाल खड़े कर रहा है, और इस पर वन्यजीव संरक्षण संगठनों और अन्य संबंधित पक्षों का दबाव भी बढ़ रहा है।
टाइगर वॉच का बड़ा खुलासा: गायब बाघों के संभावित कारण
टाइगर वॉच संस्था ने रणथंभौर टाइगर रिजर्व से गायब हुए बाघ-बाघिन और शावकों पर गहन अध्ययन किया और इसके आधार पर कुछ मुख्य कारण प्रस्तुत किए हैं।
- बाघों की बढ़ती उम्र और प्राकृतिक मौतें: टाइगर वॉच के फील्ड बॉयोलॉजिस्ट, डॉ. धर्मेंद्र खांडल के अनुसार, गायब हुए 15 बाघों में से 5 बाघ, जैसे T-3, T-13, T-38, T-41, और T-48 की उम्र 15 साल से ऊपर की है। इन बाघों की उम्र के चलते ये अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हैं। अक्सर, बढ़ती उम्र के साथ बाघों का स्वास्थ्य खराब होता है और वे अपने क्षेत्रीय संघर्षों में भी कमजोर साबित होते हैं।
बाघों के लिए 15 साल की उम्र को जीवन का अंतिम चरण माना जाता है, जहां वे किसी भी संघर्ष या बीमारी के सामने ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाते। इनमें से कुछ बाघ तो 19-20 साल की उम्र के हैं, जो कि प्राकृतिक कारणों से भी गायब हो सकते हैं।
- क्षेत्रीय संघर्ष और टेरिटोरियल फाइट्स: रणथंभौर के बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट एक सामान्य प्रक्रिया है। यह लड़ाई मुख्य रूप से क्षेत्र पर कब्जा जमाने के लिए होती है। रणथंभौर जैसे क्षेत्रों में एक बाघ अपना खास इलाका बनाता है और अन्य बाघों को वहां से दूर रखता है।
गायब हुए युवा नर बाघों में T-128, T-131, T-139, और T-2401 जैसे बाघ शामिल हैं, जो टेरेटरी की तलाश में बड़े बाघों के क्षेत्रों में प्रवेश करते थे। ऐसी स्थिति में, ताकतवर बाघ कमजोर बाघ को अपने क्षेत्र से बाहर कर देते हैं। इन संघर्षों के दौरान कई बार बाघों की मौत हो जाती है।
- मानव जनित कारण और अवैध गतिविधियाँ: रणथंभौर टाइगर रिजर्व के आसपास के क्षेत्रों में मानव-बाघ संघर्ष भी बाघों के गायब होने का एक बड़ा कारण है। कई बार स्थानीय लोग अपने मवेशियों की रक्षा के लिए बाघों को जहर दे देते हैं या उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। रणथंभौर में भी पहले कई बार इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी हैं।
T-114 और उसकी शावक T-57 की मौत इसी प्रकार की घटना का परिणाम थी, जिसमें उन्हें जहर दिया गया था। इस प्रकार के मानव जनित खतरों के चलते युवा बाघों के गायब होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य समस्याएं और जटिलताएं: मादा बाघ T-99, जिसे फरवरी 2024 में गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं आईं, को लेकर भी चिंता का विषय बना हुआ है। गर्भपात के बाद उसे स्वास्थ्य समस्याएं होने लगीं और उसे चिकित्सा देखभाल भी दी गई थी। हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि वह फिर से गर्भवती हो सकती है, लेकिन इसके बारे में पुष्टि नहीं हो पाई है। संभवतः उसकी मौजूदा स्थिति इसी प्रकार की किसी जटिलता का परिणाम हो सकती है।
- अन्य प्राकृतिक कारण और गुप्त मौतें: उम्रदराज बाघ, जैसे T-3, T-13, T-38, T-41, और T-48 का गायब होना प्राकृतिक मौतों के कारण हो सकता है। यह वन विभाग के लिए एक गंभीर स्थिति है क्योंकि इन बाघों के शव नहीं मिले हैं। इसके बावजूद, बाघों की औसत आयु को देखते हुए ऐसा मानना अनुचित नहीं होगा कि उनकी मौत स्वाभाविक कारणों से हुई हो।
वन्यजीव संरक्षण के लिए रणथंभौर में टाइगर वॉच का प्रयास
टाइगर वॉच संस्था पिछले 27 साल से रणथंभौर टाइगर रिजर्व में वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रही है। यह संस्था न केवल बाघों को बचाने के लिए बल्कि उनके पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए भी कार्यरत है। टाइगर वॉच की टीम बाघों के प्राकृतिक आवास, उनके क्षेत्रीय संघर्षों और मानव जनित खतरों से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम करती है।
रणथंभौर में टाइगर वॉच के प्रयासों की वजह से कई महत्वपूर्ण बाघ संरक्षण परियोजनाएं सफल हुई हैं। यह संस्था बाघों की स्वास्थ्य समस्याओं को भी ध्यान में रखती है और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें चिकित्सा सहायता भी उपलब्ध कराती है। रणथंभौर से बाघों के गायब होने का खुलासा टाइगर वॉच द्वारा किया गया यह अध्ययन इस बात को दर्शाता है कि टाइगर वॉच संस्था किस कदर वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति समर्पित है।
गायब बाघों के मामलों में वन विभाग की भूमिका और जवाबदेही
इस मामले में वन विभाग की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। कई संगठनों का मानना है कि वन विभाग को गायब हुए बाघों के बारे में स्पष्ट और विस्तृत जानकारी देनी चाहिए। बाघ जैसे वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार वन विभाग को इन गायब हुए बाघों की तलाश में और अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए।
वन्यजीव संरक्षण के विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे मामलों में वन विभाग की जवाबदेही महत्वपूर्ण है। अगर समय पर इन घटनाओं पर नियंत्रण नहीं किया गया तो बाघों की संख्या में और भी गिरावट हो सकती है।
रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बाघों का गायब होना एक चिंताजनक स्थिति है। टाइगर वॉच द्वारा किए गए इस खुलासे ने बाघों के संरक्षण के प्रयासों में जागरूकता और सक्रियता की आवश्यकता को रेखांकित किया है।