मनीषा शर्मा। राजस्थान उपचुनाव 2024 के लिए भाजपा ने छह विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की, जिसके तुरंत बाद चार सीटों पर असंतोष की लहर दौड़ गई। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में रोष फैल गया है, खासकर उन नेताओं के बीच जो पिछले विधानसभा चुनावों में टिकट की दौड़ में थे। अब पार्टी के वरिष्ठ नेता बागियों को मनाने में जुटे हैं ताकि पार्टी के भीतर के इस बवंडर को शांत किया जा सके।
झुंझुनूं: बबलू चौधरी का विरोध
झुंझुनूं विधानसभा सीट से भाजपा ने राजेंद्र भांबू को प्रत्याशी बनाया है, जिन्होंने पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इस फैसले से पार्टी के पूर्व उम्मीदवार बबलू चौधरी नाराज हो गए हैं। उन्होंने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। बबलू चौधरी, जो पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे, ने खुलेआम चेतावनी दी है कि झुंझुनूं में कमल उनके बिना नहीं खिलेगा। पार्टी के लिए यह एक बड़ा सिरदर्द बन सकता है, क्योंकि बबलू चौधरी की स्थानीय पकड़ मजबूत मानी जाती है।
रामगढ़: जय आहूजा का असंतोष
अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा ने सुखवंत सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जिन्होंने पिछले चुनाव में आजाद समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस निर्णय से भाजपा के पूर्व प्रत्याशी जय आहूजा नाराज हो गए हैं। जय आहूजा ने खुद को चुनाव लड़ने की घोषणा की है। जय आहूजा, जो पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्ञानदेव आहूजा के भतीजे हैं, का पार्टी के अंदर प्रभाव है। उनके विरोध के कारण भाजपा को यहां चुनावी रणनीति में मुश्किलें हो सकती हैं। जय आहूजा के समर्थकों ने भी उनके समर्थन में पदों से इस्तीफा देना शुरू कर दिया है, जिससे पार्टी के लिए स्थिति और भी जटिल हो गई है।
देवली उनियारा: विजय बैंसला के समर्थकों का विरोध
टोंक जिले की देवली उनियारा विधानसभा सीट पर भाजपा ने राजेंद्र गुर्जर को उम्मीदवार बनाया है, जिससे पिछले चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार रहे विजय बैंसला के समर्थकों में भारी नाराजगी है। बैंसला, जो पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे, को टिकट न दिए जाने से उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं। कुछ समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन के तहत पानी की टंकियों पर चढ़कर विरोध जताया है और बैंसला को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। इस प्रकार के विरोध से भाजपा के लिए इस सीट पर चुनाव लड़ना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि बैंसला का स्थानीय जनाधार मजबूत है।
सलूंबर: नरेंद्र मीणा की भावनात्मक प्रतिक्रिया
सलूंबर सीट पर भाजपा ने दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी मीणा को सहानुभूति कार्ड खेलते हुए प्रत्याशी बनाया है। इस फैसले से टिकट के दावेदार नरेंद्र मीणा बेहद नाराज हो गए हैं। उनके समर्थकों ने उनके आवास पर इकट्ठा होकर प्रदर्शन किया, जिसके बीच भावनात्मक होते हुए नरेंद्र मीणा फूट-फूटकर रो पड़े। उन्होंने कहा कि पार्टी को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और अगर कार्यकर्ता चाहेंगे तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। भाजपा के लिए यह स्थिति संवेदनशील है, क्योंकि नरेंद्र मीणा भी यहां के लोकप्रिय नेता माने जाते हैं।
भाजपा की चुनौती: कैसे मनाएगी बागी नेताओं को?
भाजपा के लिए यह स्थिति नाजुक है। जिन चार सीटों पर बगावत की स्थिति बनी है, वहां के नेता पिछले चुनावों में भी पार्टी के अहम चेहरे थे। अगर पार्टी इन बागी नेताओं को मनाने में सफल नहीं होती, तो इसका सीधा असर उपचुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है। यह स्थिति पार्टी के आंतरिक मतभेदों और टिकट वितरण में असंतोष की ओर भी इशारा करती है।
वरिष्ठ नेताओं की भूमिका
भाजपा के वरिष्ठ नेता अब इस स्थिति को संभालने में जुटे हैं। वे नाराज नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और उन्हें समझाने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी का प्रयास है कि किसी भी तरह से इन सीटों पर एकजुट होकर चुनाव लड़ा जाए ताकि विरोधी दल इसका फायदा न उठा सके।
उपचुनाव में पार्टी की रणनीति
भाजपा ने इस बार उपचुनाव में कई उम्मीदवारों को बदलने का फैसला लिया, जिससे पुराने दावेदारों में असंतोष फैल गया है। पार्टी ने जिन नेताओं को उम्मीदवार बनाया है, उनका पिछला रिकॉर्ड भी मिश्रित रहा है। कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने पहले बगावत कर पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि वरिष्ठ नेतृत्व और सशक्त रणनीति के माध्यम से वह इन मतभेदों को सुलझा सकेगी।