मनीषा शर्मा। भारत में ‘एक देश, एक चुनाव’ के एजेंडे को लेकर केंद्र सरकार के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया है। पार्टी राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक जन जागरूकता अभियान चलाने जा रही है, जिसके तहत विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक और नागरिक समूहों के बीच इस विषय पर जनमत संग्रह किया जाएगा।
प्रदेश में इस अभियान को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बीजेपी नेता सुनील भार्गव को संयोजक नियुक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भारत के लिए नई नहीं है। संविधान लागू होने के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। लेकिन बाद में यह व्यवस्था टूट गई और अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे।
जनमत संग्रह के बाद प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजे जाएंगे
बीजेपी इस अभियान के तहत ‘एक देश, एक चुनाव’ के पक्ष में प्रस्ताव पारित कराएगी। प्रदेश संयोजक सुनील भार्गव ने बताया कि इन पारित प्रस्तावों को राष्ट्रपति को भेजा जाएगा, ताकि देश में इस व्यवस्था को मजबूती से लागू किया जा सके।
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि राज्य सरकार ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ के मॉडल पर भी आगे बढ़ने की योजना बना रही है। भविष्य में इसे भी अभियान का हिस्सा बनाया जा सकता है, लेकिन फिलहाल अभियान सिर्फ ‘एक देश, एक चुनाव’ पर केंद्रित रहेगा।
वित्तीय बोझ में होगी भारी कमी
एक देश, एक चुनाव प्रणाली से देश में बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़ी वित्तीय और प्रशासनिक लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
हर चुनाव में बड़े पैमाने पर सरकारी संसाधनों का उपयोग होता है, जिससे खर्च बढ़ता है।
चुनावों में पुलिस, सुरक्षाबलों, सरकारी मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) जैसी सुविधाओं पर भारी निवेश करना पड़ता है।
यदि एक साथ चुनाव होते हैं, तो बार-बार चुनाव कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे सरकार की वित्तीय बचत होगी।
इसके अलावा, चुनावी आचार संहिता लागू होने के कारण नीति-निर्माण में जो बाधाएं आती हैं, वे भी खत्म हो जाएंगी।
देश की चुनाव प्रणाली में बड़ा बदलाव
भारतीय लोकतंत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ एक बड़े बदलाव की दिशा में कदम हो सकता है। इससे सरकार को सुचारू रूप से काम करने का अवसर मिलेगा, प्रशासनिक प्रक्रियाओं में तेजी आएगी और नीति निर्माण में निरंतरता बनी रहेगी।
इसके अलावा, एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए भी चुनाव खर्च कम होगा, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा सुधार देखा जा सकता है।
समाज के हर वर्ग को जोड़ा जाएगा
बीजेपी ने इस जनमत संग्रह अभियान को सफल बनाने के लिए इसे विभिन्न सामाजिक और व्यावसायिक समूहों तक पहुंचाने की योजना बनाई है।
कॉरपोरेट सेक्टर, व्यापारी संघों, छात्र संगठनों, किसान समूहों और नागरिक संगठनों से इस विषय पर चर्चा की जाएगी।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए भी लोगों को जागरूक किया जाएगा।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी अभियान चलाकर लोगों से राय ली जाएगी।
क्या होगा आगे का कदम?
अगर इस अभियान के तहत पर्याप्त समर्थन मिलता है, तो सरकार इसे कानूनी रूप से लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है।
संसद में विधेयक लाने की संभावना
संविधान में आवश्यक संशोधन करने की जरूरत
राज्यों की सहमति और आम सहमति बनाने की प्रक्रिया