शोभना शर्मा। जैसलमेर, राजस्थान— विजयादशमी के अवसर पर सीमा सुरक्षा बल (BSF) की 1022 तोपखाना रेजिमेंट ने परंपरागत रूप से शस्त्र पूजन किया। यह कार्यक्रम सम रोड स्थित रेजिमेंट के परिसर में विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ, जहां सभी अधिकारी और जवान उपस्थित रहे। हर साल की तरह इस बार भी रामायण और महाभारत काल से चली आ रही इस परंपरा का पालन किया गया, जिसमें शस्त्रों की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
विजयादशमी या दशहरा भारतीय संस्कृति में असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है, और इसे मुख्य रूप से भगवान राम की रावण पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सैन्य दृष्टिकोण से भी है। विजयादशमी के दिन देश के विभिन्न सैन्य बल और पैरा-मिलिट्री फोर्सेस अपने-अपने कैंपस में शस्त्र पूजन का आयोजन करते हैं।
शस्त्र पूजन की प्राचीन परंपरा
शस्त्र पूजन की परंपरा को रामायण और महाभारत के युग से जोड़ा जाता है, जहां योद्धा अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए युद्ध से पहले अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते थे। यह एक विश्वास था कि शस्त्रों की पूजा से उन्हें दिव्य शक्ति प्राप्त होगी और युद्ध में विजय हासिल होगी। आज भी भारतीय सेनाओं और सुरक्षा बलों में यह परंपरा जीवित है।
सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने बताया कि शस्त्र पूजन करते समय सबसे पहले मां दुर्गा की दो योगनियों, जया और विजया की पूजा की जाती है। यह पूजा विजय का प्रतीक है, जिसके बाद शस्त्रों का पूजन किया जाता है। BSF के जवान अपने मुख्य हथियारों— खासकर आर्टिलरी— को सामने रखकर पूजा करते हैं। शस्त्रों की यह पूजा उन्हें युद्ध और सुरक्षा अभियानों में विजय दिलाने का प्रतीक मानी जाती है।
सीमा सुरक्षा बल की 1022 तोपखाना रेजिमेंट
जैसलमेर की 1022 तोपखाना रेजिमेंट एक महत्वपूर्ण इकाई है, जो भारतीय सीमा की सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। हर साल, विजयादशमी के दिन इस रेजिमेंट के परिसर में शस्त्र पूजन के आयोजन का विशेष महत्व होता है। इस आयोजन में रेजिमेंट के सभी अधिकारी, जवान और अन्य कर्मचारी शामिल होते हैं। शस्त्र पूजन के दौरान शस्त्रों को विधि-विधान से साफ करके उनकी पूजा की जाती है, ताकि उनके उपयोग में दिव्य शक्ति और सफलता प्राप्त हो सके।
रेजिमेंट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह आयोजन न केवल परंपरा का पालन करता है, बल्कि यह जवानों के मनोबल को भी बढ़ाता है। विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजन करने से जवानों में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है, जिससे वे देश की सुरक्षा के प्रति और भी प्रतिबद्ध होते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजन केवल सैन्य दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। विजयादशमी भारतीय पौराणिक कथाओं में असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है, और इसे शक्ति की देवी मां दुर्गा की आराधना के साथ जोड़ा जाता है। शस्त्र पूजन में मां दुर्गा की जया और विजया योगिनियों की पूजा विशेष रूप से होती है, जो योद्धाओं की विजय की कामना करती हैं। विजयादशमी का यह पर्व न केवल सैन्यबलों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का दिन होता है। शस्त्र पूजन के दौरान जवान यह संकल्प लेते हैं कि वे अपने शस्त्रों का सही उपयोग करेंगे और देश की रक्षा के लिए समर्पित रहेंगे।
समर्पण और कर्तव्य का प्रतीक
सीमा सुरक्षा बल के जवानों के लिए विजयादशमी का यह दिन खास महत्व रखता है, क्योंकि यह दिन उनके लिए न केवल धार्मिक आस्था का, बल्कि कर्तव्य और समर्पण का भी प्रतीक है। शस्त्र पूजन के माध्यम से जवान यह संदेश देते हैं कि वे अपने देश की रक्षा के लिए हर समय तत्पर हैं, और उनके शस्त्र न केवल एक युद्ध का उपकरण हैं, बल्कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा के प्रतीक भी हैं। हर साल यह आयोजन सीमा सुरक्षा बल के लिए गर्व और सम्मान का अवसर होता है, जिसमें वे अपने शस्त्रों को देवीय आशीर्वाद से अभिसिंचित करते हैं।