शोभना शर्मा। राजस्थान में उपचुनाव के सात सीटों पर भले ही बागी उम्मीदवारों की संख्या कम हो, लेकिन भितरघात और अंदरूनी मतभेदों का असर खासा हावी नजर आ रहा है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जहाँ प्रभावी डैमेज कंट्रोल करते हुए अधिकांश नाराज नेताओं को मना लिया है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों में अंदरूनी असंतोष और समीकरणों का प्रभाव चुनावी नतीजों पर असर डाल सकता है।
बीजेपी ने बागियों को मनाया, मगर समर्थकों की नाराजगी बरकरार
बीजेपी ने सत्ता में रहते हुए उपचुनाव में बागियों को मनाने के लिए पूरा प्रयास किया है। टिकट कटने वाले नेताओं को आश्वासन और सम्मान देने के साथ ही मंत्रियों को डैमेज कंट्रोल में लगाया। इसके बावजूद पार्टी में प्रभावी नेताओं के समर्थकों की नाराजगी पार्टी को नुकसान पहुँचा सकती है। उदाहरण के तौर पर झुंझुनू सीट पर टिकट कटने से नाराज बबलू चौधरी को मना तो लिया गया है, लेकिन उनके समर्थक अब भी बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में दिख नहीं रहे हैं।
देवली उनियारा: कांग्रेस में बागी, बीजेपी में स्थिरता
देवली उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस ने नरेश मीणा को मनाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। दूसरी ओर, बीजेपी में विजय बैंसला टिकट न मिलने से नाराज हैं। भले ही बीजेपी में बगावत नहीं है, मगर समर्थकों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान हो सकता है।
चौरासी सीट: बीएपी बागी का प्रभाव और भितरघात का खतरा
चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल ने चुनावी समीकरणों को रोचक बना दिया है। इस सीट पर आदिवासियों के मुद्दे प्रभावी हैं, और बीएपी के बागी उम्मीदवार बादमी लाल के मैदान में उतरने से कांग्रेस और बीजेपी दोनों के सामने चुनौती खड़ी हो गई है। कांग्रेस और बीजेपी को भितरघात का डर सता रहा है।
सलूंबर: कांग्रेस के भीतर असंतोष
सलूंबर सीट पर कांग्रेस में बगावत नहीं हुई है, लेकिन अंदरूनी असंतोष अभी भी बरकरार है। पिछले चुनाव के उम्मीदवार रघुवीर मीणा टिकट कटने के कारण नाराज हैं और उनके समर्थक भी सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार रेशमा मीणा को अपने ही दल से समर्थन न मिलने का खतरा है। वहीं, बीजेपी ने सहानुभूति कार्ड खेलते हुए दिवंगत विधायक की पत्नी को टिकट दिया है, जिससे सहानुभूति लहर बनने की उम्मीद की जा रही है।
दौसा: पर्दे के पीछे की चालें बदल सकती हैं समीकरण
दौसा सीट पर पर्दे के पीछे चल रही सियासी चालें नतीजों को प्रभावित कर सकती हैं। बीजेपी और कांग्रेस में बागी नहीं हैं, मगर बीजेपी के अंदर एक वर्ग नाराज है। इस सीट पर मंत्री किरोड़ी लाल मीणा का प्रभाव भी चुनावी समीकरणों को बदलने में अहम भूमिका निभा सकता है।
झुंझुनू: गुपचुप समर्थन की चुनौती
झुंझुनू सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिल रहा है। बीजेपी ने बबलू चौधरी को मना लिया है, लेकिन उनके समर्थक अभी भी पार्टी उम्मीदवार का समर्थन करने से कतरा रहे हैं। बीजेपी का मानना है कि निर्दलीय उम्मीदवार राजेंद्र गुढ़ा के मैदान में होने से उन्हें लाभ मिल सकता है, क्योंकि वे मुस्लिम और दलित वोटों को आकर्षित कर रहे हैं।
रामगढ़: धार्मिक गोलबंदी और सहानुभूति का फैक्टर
रामगढ़ सीट पर कांग्रेस ने दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबेर को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड खेला है। बीजेपी ने भी अपने पिछले उम्मीदवार जय आहूजा को मना लिया है। इस सीट पर धार्मिक गोलबंदी का मुद्दा मुख्य चुनावी फैक्टर बनता जा रहा है, जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों को प्रभावित कर सकता है।
खींवसर: त्रिकोणीय मुकाबला, अंदरूनी मतभेद का डर
खींवसर सीट पर आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, कांग्रेस के रतन चौधरी और बीजेपी के रेवंत राम डांगा के बीच मुकाबला है। तीनों ही दलों में कोई बागी नहीं है, लेकिन स्थानीय समीकरण और अंदरूनी असंतोष पार्टी के प्रदर्शन पर असर डाल सकते हैं।
राजस्थान के इन उपचुनावों में भितरघात का फैक्टर प्रमुख भूमिका निभा सकता है। भले ही दलों ने बागियों को शांत करने का प्रयास किया है, पर समर्थकों और स्थानीय समीकरणों की भूमिका से अंतिम नतीजों पर गहरा असर पड़ सकता है।