मनीषा शर्मा। 25 नवंबर को मेवाड़ राजघराने के नाथद्वारा विधायक और स्व. महेंद्र सिंह मेवाड़ के पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राजगद्दी पर बैठाने का आयोजन होने जा रहा है। यह राजतिलक कार्यक्रम ऐतिहासिक फतह प्रकाश महल में सुबह 10 बजे से होगा।
इस आयोजन को लेकर प्रदेश और देशभर में बहस छिड़ गई है। एक ओर आयोजन को राजपूत समाज और मेवाड़ की परंपराओं का हिस्सा बताया जा रहा है, तो दूसरी ओर कई लोग इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ मानते हुए विरोध कर रहे हैं।
विरोध: “देश संविधान से चलता है, राजतंत्र खत्म हो चुका है”
इस कार्यक्रम पर भारत आदिवासी पार्टी के नेशनल स्पोकपर्सन डॉ. जितेन्द्र मीणा ने आपत्ति जताते हुए ट्वीट किया, “रजवाड़े खत्म हो चुके हैं। अब देश संविधान से चलेगा। इस तरह के आयोजनों पर रोक लगनी चाहिए।”
इसी तरह मंडल आर्मी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. विवेक भाटी ने सवाल किया, “यह किस बात का राजतिलक है? इस राजा का शासन कहां चलता है और इनके नाम के सिक्के कहां छपते हैं?”
कुछ संगठनों ने इस आयोजन को संविधान के अनुच्छेद 13 का उल्लंघन बताया। उनका कहना है कि राजतिलक जैसी गतिविधियां लोकतंत्र और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
डॉ. अंबेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी-कर्मचारी एसोसिएशन ने इस संबंध में मुख्यमंत्री के नाम पत्र लिखकर राजतिलक को रोकने की मांग की।
समर्थन: “यह परंपरा है, सत्ता का दावा नहीं”
दूसरी ओर, राजपूत समाज और मेवाड़ राजघराने के समर्थकों ने आयोजन को पारिवारिक परंपरा का हिस्सा बताते हुए इसे जायज ठहराया। भरतपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य अनिरुद्ध डी. भरतपुर ने ट्वीट किया, “गढ़ ठाकुर का, पंडित ठाकुर का, मेहमान ठाकुर के, सारा खर्चा ठाकुर का। ऐसे में इस पर आपत्ति क्यों?”
राजपूत समाज से जुड़े सोशल मीडिया पेज जैसे ‘राजपूत ऑफ इंडिया’ और ‘क्षत्रिय मीडिया ग्रुप’ ने भी आयोजन का समर्थन किया। उनका कहना है कि मेवाड़ राजघराना अपनी परंपराओं को निभाने के लिए स्वतंत्र है।
कुछ समर्थकों ने दावा किया कि संविधान के अनुच्छेद 363 और 372 के तहत इस प्रकार के पारंपरिक आयोजन की अनुमति है। उन्होंने कहा, “यह आयोजन सत्ता का दावा करने के लिए नहीं है, बल्कि यह परिवार और समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने के लिए है।”
इतिहास और योगदान: मेवाड़ की गौरवशाली विरासत
समर्थकों ने मेवाड़ राजघराने के ऐतिहासिक योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह आयोजन उनकी परंपराओं का हिस्सा है। मेवाड़ राजघराना भारत के स्वतंत्रता संग्राम और देश की रक्षा में अग्रणी रहा है।
उन्होंने कहा, “चित्तौड़गढ़ और उदयपुर के किलों के साथ मेवाड़ ने दिल्ली से लेकर अफगानिस्तान तक के युद्धों में भाग लिया। राजवंश ने अपनी प्रजा और क्षेत्र की रक्षा के लिए खुद को न्योछावर कर दिया।”
मेवाड़ राजवंश के वर्तमान सदस्य इस आयोजन को अपनी ऐतिहासिक धरोहर और संस्कृति का प्रतीक मानते हैं।