शोभना शर्मा। हाल ही में जयपुर और जोधपुर फैमिली कोर्ट में गुजारा भत्ता से संबंधित दो मामलों पर फैसले दिए गए, जिनमें कोर्ट ने रजनीश वर्सेस नेहा केस में जारी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला दिया। इन दोनों मामलों में अदालतों ने भरण पोषण के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाया, जिससे गुजारा भत्ता से जुड़े नियम और उनकी व्याख्या को लेकर चर्चा बढ़ गई है।
जयपुर फैमिली कोर्ट का फैसला
जयपुर फैमिली कोर्ट ने एक महिला की गुजारा भत्ता याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसकी सैलरी उसके पति के बराबर थी। पत्नी एक बैंक में मैनेजर थी और पति एक डॉक्टर, जिनकी आय में अंतर केवल मामूली था। पति की सैलरी ₹2.50 लाख प्रतिमाह थी और पत्नी की सैलरी ₹70 हजार के करीब थी। कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी भी आर्थिक रूप से सक्षम है और पति के समान कमाती है, तो उसे भरण पोषण का अधिकार नहीं है। इस निर्णय में रजनीश वर्सेस नेहा केस का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि सिर्फ लग्जरी लाइफ जीने के लिए भरण पोषण का दावा करना अनुचित है।
जोधपुर फैमिली कोर्ट का अलग दृष्टिकोण
इसके विपरीत, जोधपुर फैमिली कोर्ट ने एक अन्य मामले में पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया, भले ही वह पढ़ी-लिखी और जॉब करती हो। इस मामले में कोर्ट ने यह ध्यान में रखा कि पत्नी के साथ बच्चे रह रहे हैं और उनका भरण पोषण भी जरूरी है। इस फैसले में भी रजनीश वर्सेस नेहा केस का हवाला दिया गया, लेकिन कोर्ट ने परिस्थितियों के आधार पर अलग परिणाम निकाला।
रजनीश वर्सेस नेहा केस का विवरण
रजनीश वर्सेस नेहा केस महाराष्ट्र का एक हाई-प्रोफाइल मामला है, जिसमें पत्नी ने 2013 में भरण पोषण के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने 2015 में पत्नी को ₹15 हजार और बच्चे को ₹5000 प्रतिमाह देने का आदेश सुनाया था। रजनीश ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने भी फैसले में कोई बदलाव नहीं किया। इसके बाद रजनीश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगस्त 2020 में अंतिम फैसला सुनाया, जिसमें अपीलकर्ता रजनीश को अपनी पत्नी और बच्चे के लिए तय की गई राशि देने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने फैमिली कोर्ट में लंबित भरण पोषण मामलों में देरी के मद्देनजर एक गाइडलाइन भी जारी की।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन में स्पष्ट किया कि भरण पोषण के लिए याचिका दाखिल करते समय पति और पत्नी दोनों को अपनी आय, खर्च और संपत्ति से जुड़ी जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से देनी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि हर मामले में परिस्थितियों के आधार पर गुजारा भत्ता तय किया जाएगा और इसमें कोई निश्चित राशि निर्धारित नहीं की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों में गुजारा भत्ता नहीं देने की स्थितियों का भी जिक्र किया, जैसे:
अगर महिला का चरित्र खराब है और इसके प्रमाण पति द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं।
अगर महिला पढ़ी-लिखी है और जानबूझकर नौकरी नहीं कर रही है।
अगर महिला की आय पति से ज्यादा है, तो गुजारा भत्ता की याचिका अस्वीकार हो सकती है।
किन स्थितियों में पति को गुजारा भत्ता मिल सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार, अगर पति आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, दिव्यांग है, या किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, तो वह भी गुजारा भत्ता का दावा कर सकता है। हालांकि, इसके लिए पत्नी का आर्थिक रूप से सक्षम होना आवश्यक है।
गुजारा भत्ता देने का समय और नतीजे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता याचिका दायर करने की तारीख से मान्य होगा। यदि निर्धारित समय पर गुजारा भत्ता नहीं दिया जाता है, तो संबंधित पक्ष पर मनी डिक्री और कुर्की की कार्रवाई की जा सकती है, और जरूरत पड़ने पर उसे जेल भी भेजा जा सकता है।
जयपुर और जोधपुर फैमिली कोर्ट के फैसले यह दर्शाते हैं कि गुजारा भत्ता से जुड़े मामलों में कोर्ट का दृष्टिकोण स्थिति-विशेष पर आधारित होता है। रजनीश वर्सेस नेहा केस की गाइडलाइन का हवाला देते हुए, कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि भरण पोषण की याचिकाओं का निर्णय सिर्फ आर्थिक स्थिति ही नहीं, बल्कि अन्य कारकों पर भी आधारित होगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन ने स्पष्ट कर दिया है कि हर केस अलग होता है और उसमें परिस्थितियों के आधार पर न्यायिक विवेक का प्रयोग किया जाना चाहिए।