मनीषा शर्मा। राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण (रेट) ने शिक्षा विभाग के संयुक्त शासन सचिव एवं निदेशक, माध्यमिक शिक्षा विभाग को तलब किया है। अधिकरण ने आदेशों की अवहेलना करने पर कड़ा रुख अपनाते हुए निर्देश दिए हैं कि दोनों अधिकारी 25 मार्च को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर स्पष्ट करें कि अदालती आदेश की पालना क्यों नहीं की गई।
अदालत की अवमानना पर कार्रवाई के संकेत
यह मामला भगवान सिंह जाट द्वारा दायर अवमानना याचिका से जुड़ा हुआ है। मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी पक्ष के अधिवक्ता संदीप कलवानिया ने बताया कि भगवान सिंह जाट पीटीआई (शारीरिक शिक्षक) पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने 2006 में राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण में अपील दायर कर अपने वेतनमान को अपने कनिष्ठ कर्मचारियों के समान करने की गुहार लगाई थी।
वेतनमान स्थिरीकरण के आदेश, लेकिन तीन साल तक अनुपालन नहीं
सुनवाई के बाद, 9 फरवरी 2022 को अधिकरण ने आदेश दिया था कि माध्यमिक शिक्षा विभाग प्रार्थी का वेतन पुनः स्थिर करे और उसे कनिष्ठ कर्मचारियों के समान वेतनमान का लाभ दिया जाए। अधिकरण ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह कार्य छह माह के भीतर पूरा कर लिया जाए।
लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी विभाग ने इस आदेश का पालन नहीं किया, जिससे प्रार्थी को काफी मानसिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। आदेश की अवहेलना से नाराज होकर भगवान सिंह जाट ने अधिकरण में अवमानना याचिका दायर की, जिसमें अदालत से अनुरोध किया कि वह अपने पूर्व के निर्णय को लागू करवाने के लिए विभाग पर कार्रवाई करे।
25 मार्च को उपस्थित होने के निर्देश
प्रार्थी की याचिका पर सुनवाई करते हुए रेट ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा विभाग के संयुक्त शासन सचिव और निदेशक को 25 मार्च तक व्यक्तिगत रूप से पेश होकर स्पष्टीकरण देना होगा कि आखिरकार तीन साल बाद भी आदेश की पालना क्यों नहीं की गई। अधिकरण के इस कदम से सरकारी विभागों में अनुशासनहीनता और लापरवाही को लेकर कड़ा संदेश गया है।
विभागीय लापरवाही से पीड़ित सरकारी कर्मचारी
यह मामला उन कई सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पीड़ा को दर्शाता है, जिन्हें अपनी वाजिब मांगों के लिए वर्षों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। भगवान सिंह जाट का मामला केवल एक उदाहरण है, लेकिन इस तरह की घटनाएं शिक्षा विभाग सहित अन्य सरकारी महकमों में भी आम हैं, जहां कर्मचारियों को अपने अधिकारों के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
यदि 25 मार्च को अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते हैं, तो अधिकरण उन्हें कठोर दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दे सकता है। इसमें विभागीय अधिकारियों पर व्यक्तिगत जुर्माना लगाना या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करना शामिल हो सकता है।