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राजस्थान में धर्मांतरण रोकने के लिए सरकार का बड़ा कदम

राजस्थान में धर्मांतरण रोकने के लिए सरकार का बड़ा कदम

मनीषा शर्मा। राजस्थान सरकार जल्द ही जबरन और लालच देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सख्त कानून लाने की योजना बना रही है। प्रदेश के कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने इस कानून के लिए तैयारियों की जानकारी देते हुए बताया कि आगामी विधानसभा सत्र में एक विधेयक पेश किया जाएगा। विधि विभाग वर्तमान में इस बिल के ड्राफ्ट पर कार्य कर रहा है, जिसमें उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के धर्म परिवर्तन विरोधी कानूनों का अध्ययन किया जा रहा है ताकि राजस्थान में भी कड़े प्रावधान लागू किए जा सकें।

इस प्रस्तावित कानून के तहत धर्म परिवर्तन कराने या इस प्रक्रिया में सहयोग करने वालों को जेल और भारी जुर्माना हो सकता है। ऐसे मामलों में शामिल एनजीओ और संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन भी रद्द किया जा सकता है। वहीं, बिना शादी किए साथ रहने वाले जोड़ों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्यता का प्रावधान भी विचाराधीन है। सरकार का मानना है कि यह कानून प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में जबरन धर्म परिवर्तन की बढ़ती शिकायतों को रोकने में सहायक होगा।

जबरन धर्म परिवर्तन पर कठोर दंड और जुर्माना का प्रावधान

राजस्थान सरकार के प्रस्तावित कानून में जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर 5 साल तक की सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान शामिल हो सकता है। 2008 में भी वसुंधरा राजे सरकार के समय इस तरह के कानून का प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन केंद्र सरकार से मंजूरी न मिलने के कारण यह बिल अटका रह गया। अब उसी कानून के प्रावधानों का अनुसरण करते हुए नया विधेयक तैयार किया जा रहा है, जिसमें कठोर सजा और अन्य प्रावधान जोड़े गए हैं।

पुराने बिल के अनुसार, धमकाकर, पैसे या लालच देकर धर्म परिवर्तन करने पर 3 साल तक की सजा का प्रावधान था, जिसे नए बिल में भी बरकरार रखा जा सकता है। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों, महिलाओं और एससी-एसटी वर्ग के व्यक्तियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर 2 से 5 साल की सजा और 50,000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

कलेक्टर की मंजूरी के बिना धर्म परिवर्तन पर रोक

2008 के धर्मांतरण विरोधी बिल में बिना कलेक्टर की मंजूरी के धर्म परिवर्तन पर रोक का प्रावधान था। इसमें यह अनिवार्य था कि धर्म परिवर्तन की जानकारी 30 दिनों के भीतर कलेक्टर को दी जाए। इस प्रावधान का कड़ा विरोध हुआ था, जिसके कारण केंद्र सरकार ने इसे रोक दिया था। नए बिल में इस प्रावधान को फिर से शामिल करने की संभावना है।

इसमें धर्म परिवर्तन का घोषणा पत्र कलेक्टर या मजिस्ट्रेट को देने, उसकी एक कॉपी सूचना बोर्ड पर लगाने और धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति की जानकारी जिला प्रशासन को देने जैसी शर्तें शामिल हो सकती हैं। सरकार यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाए ताकि किसी भी प्रकार का दबाव या लालच देकर धर्म परिवर्तन करने पर रोक लगाई जा सके।

लिव-इन में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर विचार

प्रस्तावित धर्मांतरण विरोधी कानून के ड्राफ्ट में लिव-इन में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता का प्रावधान भी विचाराधीन है। सरकार चाहती है कि ऐसे जोड़ों का रजिस्ट्रेशन हो ताकि उनकी पहचान और कानूनी अधिकारों का संरक्षण किया जा सके। इसके साथ ही, दूसरे धर्म में शादी करने वालों के लिए भी डिक्लेरेशन फॉर्म भरने की अनिवार्यता हो सकती है। इसमें विवाह का उद्देश्य स्पष्ट किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शादी का उद्देश्य केवल धर्म परिवर्तन नहीं है।

आदिवासी क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन पर विशेष ध्यान

राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जबरन धर्म परिवर्तन की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। यहां गरीब और अशिक्षित लोगों को झूठे प्रलोभन दिखाकर धर्म परिवर्तन के लिए उकसाने के मामले अक्सर सामने आते हैं। सरकार का मानना है कि इस नए बिल के प्रावधानों से आदिवासी क्षेत्रों में इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी।

कानून मंत्री जोगाराम पटेल के अनुसार, कुछ एनजीओ और संस्थाएं आदिवासी क्षेत्रों में गलत तरीके से धर्म परिवर्तन का कार्य कर रही हैं, जिन पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान इस बिल में रखा गया है। इस नए कानून का उद्देश्य न केवल राज्य के आदिवासी इलाकों बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी जबरन और लालच देकर धर्म परिवर्तन की घटनाओं को रोकना है।

पुराने विधेयक की असफलता और नए बिल की तैयारी

वसुंधरा राजे सरकार के समय 2006 और 2008 में धर्मांतरण विरोधी बिल पारित हुआ था। लेकिन केंद्र सरकार की मंजूरी न मिलने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार इस विधेयक को दोबारा लाने की योजना बना रही है और इसे अधिक सख्त प्रावधानों के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।

सूत्रों के अनुसार, इस बार उत्तराखंड के धर्म स्वतंत्रता कानून 2018 का अनुसरण करते हुए प्रावधान किए जा रहे हैं, जिनमें सामूहिक धर्म परिवर्तन पर 3 से 10 साल तक की सजा, 50,000 रुपये तक का जुर्माना और पीड़ित को मुआवजा देने जैसे नियम शामिल हो सकते हैं। उत्तराखंड में 2022 में इस कानून को और सख्त बनाते हुए जबरन धर्म परिवर्तन पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है।

नए विधेयक में प्रस्तावित प्रावधान

नए विधेयक में निम्नलिखित प्रमुख प्रावधान प्रस्तावित किए जा रहे हैं:

  1. जबरन और लालच देकर धर्म परिवर्तन पर सख्त सजा: जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने पर 3 से 5 साल तक की सजा का प्रावधान।
  2. संस्थाओं पर कार्रवाई: धर्म परिवर्तन में शामिल एनजीओ और संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है।
  3. कलेक्टर की मंजूरी अनिवार्य: धर्म परिवर्तन के लिए कलेक्टर की मंजूरी अनिवार्य होगी और इसकी जानकारी 30 दिनों के भीतर जिला प्रशासन को देनी होगी।
  4. लिव-इन और अंतरधार्मिक विवाह: लिव-इन में रहने वाले जोड़ों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा, और अंतरधार्मिक विवाह के मामलों में एक डिक्लेरेशन फॉर्म भरना होगा।
  5. आदिवासी क्षेत्रों में विशेष प्रावधान: आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों, महिलाओं और एससी-एसटी वर्ग के लोगों के धर्म परिवर्तन पर 5 साल तक की सजा और 50,000 रुपये तक का जुर्माना।

राजस्थान सरकार का प्रस्तावित धर्मांतरण विरोधी कानून राज्य में धर्म परिवर्तन के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से लाया जा रहा है। विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में जबरन धर्मांतरण की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए सरकार सख्त प्रावधानों पर विचार कर रही है। यदि यह बिल विधानसभा में पारित होता है, तो राजस्थान उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कठोर कानून बनाए हैं।

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