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गुरु पूर्णिमा: इतिहास, कथा और गुरु पूजन का महत्व

गुरु पूर्णिमा: इतिहास, कथा और गुरु पूजन का महत्व

मनीषा शर्मा । गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा के साथ-साथ व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। सनातन धर्म में गुरु का पद भगवान के समान माना गया है और इस दिन गुरु का पूजन और उनके आशीर्वाद का विशेष महत्व होता है।

गुरु पूर्णिमा की शुरुआत और पौराणिक कथा

महाभारत के रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था। वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी और उन्हें वेदों का विभाजन करने के लिए भी जाना जाता है। वेदव्यास जी के शिष्यों ने उनकी जन्म तिथि पर उनके पूजन की शुरुआत की थी और उन्हें गुरु दक्षिणा दी थी। इसी परंपरा के बाद से यह दिन गुरु पूजन के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के चरण पूजन करते हैं, उन्हें पुष्पमाला पहनाते हैं और गुरु दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

गुरु पूजन का महत्व

गुरु पूर्णिमा का पर्व उन सभी के जीवन में महत्वपूर्ण होता है जो अपने गुरु के मार्गदर्शन में आगे बढ़े हैं और उन्नति पाई है। इस दिन शिष्य अपने गुरु को सम्मान देते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। गुरु पूर्णिमा पर व्रत रखने और दान करने का भी विशेष महत्व है। जिन्होंने अपने गुरु से दीक्षा ली है, वे इस दिन मंत्र का जाप करते हैं। मंदिरों और जरूरतमंदों को दान देने से भी गुरु की कृपा प्राप्त होती है।

यह दिन केवल आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि जीवन में मार्गदर्शन करने वाले सभी गुरुओं का सम्मान करने का अवसर है। इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा का पर्व हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व दर्शाता है और हमें अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।

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