शोभना शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में बहुमंजिला फ्लैट्स के निर्माण पर सवाल उठाते हुए राज्य सरकार से उनके निर्माण के लिए पॉलिसी का विवरण मांगा है। गांधी नगर स्थित जजों के आवास के पास पुराने एमआरईसी कैंपस की भूमि पर बहुमंजिला इमारतों के निर्माण को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी किया है। जस्टिस इंद्रजीत सिंह और आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने यह निर्देश बादल वर्मा द्वारा दायर की गई याचिका पर दिए हैं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने अदालत में प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार ने गांधी नगर में पुनर्विकास परियोजना के अंतर्गत 18-19 मंजिला छह टॉवर्स बनाने का निर्णय लिया है, जिनमें से दो टॉवर पूरी तरह से व्यावसायिक उपयोग के लिए आरक्षित किए गए हैं। इस परियोजना के अंतर्गत इन दो टॉवर्स में लगभग सभी यूनिट्स को बेचा जाएगा और इसके अतिरिक्त इस रोड पर दो मंजिलों में व्यावसायिक गतिविधियाँ जैसे जिम, दुकानें आदि भी प्रस्तावित की गई हैं। इस परियोजना के कारण सरकार को 1400 करोड़ रुपये के संभावित नुकसान की आशंका है, जिसे याचिकाकर्ता ने चुनौती दी है।
अदालत में उठाए गए मुद्दे
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि बहुमंजिला फ्लैट्स के निर्माण के संबंध में सरकार की नीति क्या है। अदालत ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि किस प्रकार से पुराने शहरों में पुरानी कॉलोनियों में बिना योजना के बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जा रहा है और इसका असर क्षेत्र की संरचना और वहां की जनसंख्या पर क्या पड़ेगा।
सरकारी संपत्ति के उपयोग पर सवाल
याचिकाकर्ता के अनुसार, गांधी नगर स्थित जजों के आवास के पास 17,000 वर्गमीटर क्षेत्र में सरकार की ओर से बहुमंजिला इमारतें बनाई जा रही हैं, जिसमें अधिकांश यूनिट्स को बिक्री के लिए प्रस्तावित किया गया है। इस भूमि का उपयोग सरकारी अफसरों के पुनर्वास के नाम पर किया जा रहा है, लेकिन इसके चलते सरकार को बड़ा नुकसान हो सकता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, इस योजना के तहत पुनर्विकास के नाम पर सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है।
पुनर्विकास परियोजना के तहत निर्माण
राज्य सरकार की ओर से यह पुनर्विकास परियोजना विशेष रूप से सरकारी अफसरों के आवास के लिए शुरू की गई है। इस परियोजना के प्रथम चरण में 18-19 मंजिला छह टॉवर बनाए जाएंगे, जिनमें से दो टॉवर में पूरी तरह से आवासीय सुविधाएँ दी जाएंगी और इसमें सरकारी अफसरों को 15% की छूट भी दी जाएगी। परियोजना में 8,000 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से आवासीय यूनिट्स की बिक्री प्रस्तावित है। हालांकि, टोंक रोड पर इसी स्थान पर न्यूनतम आरक्षित दर 73,000 रुपये है, जिसके आधार पर सरकारी अधिकारियों को यह दर अपेक्षाकृत काफी कम दी जा रही है।
पहले भी उठे सवाल
इससे पहले भी, इस परियोजना को लेकर हाईकोर्ट में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान के तहत सुनवाई हुई थी, लेकिन उस समय एजी ने अदालत को बताया था कि अभी तक इस परियोजना का कोई निर्माण नहीं हुआ है। लेकिन अब याचिकाकर्ता ने इस परियोजना से जुड़ी डीपीआर रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत किए हैं, जिसमें मुख्यमंत्री के अनुमोदन की भी जानकारी शामिल है। अदालत ने इन तथ्यों पर ध्यान देते हुए सरकार से स्पष्ट उत्तर मांगा है।
अदालत का निर्देश और आगामी सुनवाई
अदालत ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब देने के लिए कहा है। राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि शहरों में बिना योजनाबद्ध तरीके से किए जा रहे बहुमंजिला भवनों के निर्माण को लेकर उनकी नीति क्या है। अदालत ने सरकार से इस बात का भी जवाब मांगा है कि किस आधार पर इन परियोजनाओं को स्वीकृति दी जा रही है और इनका नियमन कैसे किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि इस तरह की निर्माण परियोजनाओं से क्षेत्र की संरचना और वहां के पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
बहुमंजिला फ्लैट्स नीति की आवश्यकता
यह मामला हाईकोर्ट में इसलिए उठा है क्योंकि प्रदेश के कई शहरों में अनियंत्रित तरीके से बहुमंजिला इमारतों का निर्माण हो रहा है, जिससे शहरों की पारंपरिक संरचना को नुकसान हो रहा है और वहाँ रहने वाले लोगों की सुरक्षा और सुविधा को भी खतरा हो सकता है। इस प्रकार की परियोजनाओं के लिए एक मजबूत नीति की आवश्यकता है, जो शहरों के नियमन में मदद करे और उन्हें व्यवस्थित तरीके से विकसित कर सके।