मनीषा शर्मा। जयपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। एसोसिएशन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को शिकायती पत्र भेजा है। इसमें मुख्य न्यायाधीश की कार्यशैली, वकीलों की समस्याओं को नज़रअंदाज करने और शिकायत निवारण समिति की अनियमितताओं पर ध्यान आकर्षित किया गया है।
इस असंतोष के चलते बार एसोसिएशन ने हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा आयोजित दीपावली स्नेह मिलन समारोह का बहिष्कार किया। परंपरागत रूप से दीपावली से पहले अंतिम कार्यदिवस पर हाईकोर्ट के बार और बेंच के सदस्य एकजुट होकर इस समारोह में भाग लेते हैं। लेकिन इस बार वकीलों ने अपनी समस्याओं की अनदेखी के चलते इस आयोजन से दूरी बना ली और स्वयं के लिए अलग से स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया।
वकीलों की मांगें:
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रह्लाद शर्मा ने बताया कि वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 अप्रैल 2023 को दिए गए एक आदेश की पालन न होने पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन देहरादून बनाम ईश्वर शांडिल्य’ मामले में कहा था कि वकीलों की समस्याओं के समाधान के लिए हर हाईकोर्ट में एक शिकायत निवारण समिति (ग्रिवेन्सेस रिड्रेसल कमेटी) का गठन किया जाए। इस समिति में मुख्य न्यायाधीश, दो वरिष्ठ न्यायाधीश, बार काउंसिल के चेयरमैन, बार के अध्यक्ष, और महाधिवक्ता को शामिल किया गया था।
NIA के निर्देशों पर 16 जनवरी 2024 को राजस्थान हाईकोर्ट में इस समिति का गठन भी किया गया। लेकिन अब तक इसकी एक भी बैठक आयोजित नहीं हुई है। वकील समुदाय ने मुख्य न्यायाधीश को अलग-अलग समस्याओं पर 9 बार रिप्रेजेंटेशन भी दिया है, लेकिन उनकी ओर से कोई सुनवाई नहीं हुई।
अधिवक्ता प्रह्लाद शर्मा के अनुसार वकीलों की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
शिकायत निवारण समिति की नियमित बैठकें – वकीलों की समस्याओं के समाधान के लिए इस समिति की नियमित बैठकें आयोजित हों ताकि उनकी समस्याओं का शीघ्र निवारण हो सके।
हाईकोर्ट की रोस्टर प्रणाली में सुधार – रोस्टर प्रणाली में सुधार कर मामलों के आवंटन में पारदर्शिता लाई जाए।
कोजलिस्ट को नियमित करना – अर्जेंट मामलों को प्राथमिकता दी जाए और कोजलिस्ट में बार के सुझावों को शामिल किया जाए।
हाईब्रिड मोड में सुनवाई – हाईकोर्ट में भौतिक और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के जरिए हाइब्रिड मोड में सुनवाई की जाए ताकि सभी वकील सुगमता से भाग ले सकें।
वीसी इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास – अधिकतर अदालतों में अभी भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। इसके साथ ही जिन अदालतों में वीसी की सुविधा है, वहां कनेक्टिविटी के मुद्दों को दूर किया जाए।
जमानत याचिकाओं के लिए विशेष बेंच – हाईकोर्ट में करीब 3000 से अधिक जमानत याचिकाएं पेंडिंग हैं। दीपावली की छुट्टियों के कारण लगभग 9 दिनों तक न्यायिक कार्य बंद रहेगा, ऐसे में इन याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक विशेष बेंच का गठन किया जाए।
विशेष बेंच की मांग और मुख्य न्यायाधीश का निर्णय:
वर्तमान में हाईकोर्ट में लंबित जमानत याचिकाओं का मामला गंभीर है। इन याचिकाओं की लंबी पेंडेंसी के कारण हजारों आरोपी जेलों में बंद हैं और उनकी सुनवाई में देरी हो रही है। इस समस्या के समाधान के लिए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश से विशेष बेंच गठित करने की मांग की थी, ताकि इन मामलों की सुनवाई जल्द से जल्द हो सके। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने बार की इस मांग को स्वीकार नहीं किया।
बार एसोसिएशन ने इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि लंबित याचिकाओं की बढ़ती संख्या न्यायिक प्रणाली के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रही है। इसके बाद हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा आयोजित स्नेह मिलन समारोह के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। बार का कोई भी सदस्य इस समारोह में भाग नहीं लिया और वकीलों ने अपने लिए अलग से स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया।
समस्या समाधान के प्रयास और गतिरोध का असर:
मुख्य न्यायाधीश और बार एसोसिएशन के बीच चल रहे इस विवाद को सुलझाने के लिए कई सीनियर अधिवक्ताओं ने अपने स्तर पर प्रयास भी किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। सीनियर अधिवक्ता इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि वकीलों की मांगों पर विचार किया जाए और उन्हें संतुष्ट किया जाए ताकि न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसका असर वकीलों के काम और उनके विश्वास पर भी पड़ रहा है। इस विवाद ने जयपुर हाईकोर्ट में न्याय प्रक्रिया और कार्यप्रणाली पर ध्यान केंद्रित कर दिया है।
वकील समुदाय का मानना है कि उच्च न्यायालय की रोस्टर प्रणाली, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, और शिकायत निवारण समिति जैसे मुद्दों पर शीघ्र समाधान की आवश्यकता है। यदि समस्याओं का समाधान नहीं होता है, तो भविष्य में वकील समुदाय द्वारा और कठोर कदम उठाए जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।