मनीषा शर्मा। राजस्थान में आयुर्वेद विभाग के सचिव को हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में अवमानना नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उन चिकित्सकों के रिटायरमेंट से संबंधित है, जिन्हें 62 वर्ष की आयु से पहले रिटायर किया गया था। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि सचिव अवमानना की कार्रवाई से बचना चाहते हैं, तो उन्हें अदालत के आदेशों का पालन करना होगा। अन्यथा, उन्हें 18 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होकर यह बताना होगा कि उन्होंने आदेशों का पालन क्यों नहीं किया।
हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास शामिल हैं, ने यह आदेश विजेन्द्र सिंह गुर्जर की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। याचिकाकर्ता के वकील तनवीर अहमद ने अदालत में बताया कि राज्य सरकार ने एलोपैथी चिकित्सकों के रिटायरमेंट की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी थी, लेकिन आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए यह आयु 60 वर्ष ही रखी गई।
इस भेदभाव के खिलाफ आयुर्वेद चिकित्सक हाईकोर्ट पहुंचे, जहां अदालत ने जुलाई 2022 में फैसला सुनाते हुए कहा कि मोड ऑफ ट्रीटमेंट के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके बाद, सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी जनवरी 2024 में हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
हालांकि, आयुर्वेद विभाग ने इस आदेश का पालन नहीं किया और जून 2023 में याचिकाकर्ता को रिटायर कर दिया। इसके बाद, गुर्जर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने पुनः नौकरी पर लौटने की मांग की। हाईकोर्ट ने 18 अक्टूबर 2024 को उनके पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि उन्हें फिर से नौकरी पर लिया जाए।
लेकिन, आयुर्वेद विभाग ने इस अदालती आदेश का पालन नहीं किया, जिसके चलते गुर्जर ने अवमानना याचिका दायर की। अब, हाईकोर्ट ने सचिव को नोटिस जारी कर उन्हें आदेशों का पालन करने का निर्देश दिया है।
यह मामला न केवल आयुर्वेद विभाग के भीतर के नियमों और नीतियों को लेकर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे सरकारी विभागों में नियमों का पालन न करने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
अवमानना नोटिस का यह मामला आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय उनके अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर है।
इस प्रकार, यह मामला न केवल आयुर्वेद विभाग के सचिव के लिए एक चुनौती है, बल्कि यह सभी सरकारी विभागों के लिए एक चेतावनी भी है कि उन्हें अदालत के आदेशों का पालन करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो उन्हें गंभीर कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।