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मुसलमान राजनीति में आ सकते हैं, तो साधु क्यों नहीं: सरस्वती

मुसलमान राजनीति में आ सकते हैं, तो साधु क्यों नहीं: सरस्वती

शोभना शर्मा। राजस्थान के सीकर से पूर्व सांसद और भाजपा नेता सुमेदानंद सरस्वती ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के हालिया बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। खड़गे ने मुंबई में हुए “संविधान बचाओ सम्मेलन” में कहा था कि साधु-संतों को राजनीति से दूर रहना चाहिए और उनके अनुसार यदि कोई गेरूआ वस्त्र पहनता है तो उसे राजनीति से बाहर हो जाना चाहिए। इसके जवाब में सुमेदानंद सरस्वती ने खड़गे को इतिहास पढ़ने की सलाह दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संतों की भूमिका का उल्लेख किया।

आजादी की लड़ाई में संतों का योगदान

पूर्व सांसद सुमेदानंद सरस्वती ने कहा कि खड़गे को इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के संघर्ष में कई संतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उदाहरण के तौर पर, स्वामी श्रद्धानंद जैसे महान संतों का नाम लिया, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उन्होंने यह तर्क दिया कि संतों को राजनीति में सक्रिय होने से रोकना उनके ऐतिहासिक योगदान को नजरअंदाज करना होगा।

खड़गे के बयान पर प्रतिक्रिया: “मुसलमान दाढ़ी रखकर आते हैं तो आपत्ति नहीं होती”

खड़गे के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में सुमेदानंद सरस्वती ने कांग्रेस पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “जब मुसलमान दाढ़ी रखकर राजनीति में आते हैं तो किसी को आपत्ति नहीं होती, लेकिन भाजपा में साधु-संत सक्रिय होते हैं तो कांग्रेस को तकलीफ होने लगती है।” उनका यह बयान राजनीति में धार्मिक प्रतीकों के महत्व और उपयोग पर एक नई बहस को जन्म देता है।

संतों का राजनीतिक योगदान और कांग्रेस का इतिहास

सुमेदानंद सरस्वती ने याद दिलाया कि कांग्रेस भी अतीत में कई संतों को राजनीति में लेकर आई थी। उनके अनुसार, आज कांग्रेस में संतों का सम्मान नहीं बचा है, जिसके कारण अब कोई संत कांग्रेस में शामिल होने के लिए उत्साहित नहीं होता। उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने भी कई साधु-संतों को राजनीति में उतारा था, लेकिन अब वहां उन्हें सम्मान नहीं मिलता। यही कारण है कि अब संत कांग्रेस में जाने से कतराते हैं।”

खड़गे के बयान के राजनीतिक मायने

मुंबई के “संविधान बचाओ सम्मेलन” में मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने बयान में साधु-संतों के राजनीतिक रोल पर सवाल उठाया था। उन्होंने यह टिप्पणी भाजपा के कुछ नेताओं पर तंज कसते हुए की थी, जो कि साधु के वेश में राजनीति कर रहे हैं और मुख्यमंत्री जैसे बड़े पदों पर हैं। खड़गे ने कहा कि ऐसे लोगों को अगर राजनीति करनी है, तो सामान्य कपड़े पहनने चाहिए, या फिर गेरूआ वस्त्रों के साथ राजनीति से दूर रहना चाहिए। खड़गे के इस बयान ने भाजपा के समर्थकों और संत समाज में नाराजगी पैदा कर दी है।

संतों के राजनीति में सक्रिय होने पर भाजपा का समर्थन

भारतीय जनता पार्टी का दृष्टिकोण यह है कि संत और साधु समाज का एक हिस्सा हैं, और उन्हें राजनीति में आने से रोकना किसी के अधिकार में नहीं है। भाजपा का मानना है कि संत समाज देश के प्रति अपनी सेवाएं दे सकता है, चाहे वह राजनीति के माध्यम से हो या सामाजिक कार्यों के द्वारा। सुमेदानंद सरस्वती ने इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कांग्रेस का यह बयान संतों की भूमिका को सीमित करने का प्रयास है, जो कि निंदनीय है।

इतिहास में संतों की भूमिका का महत्व

भारत के इतिहास में संतों का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम में योगदान हो या समाज सुधार की दिशा में उनके प्रयास हों, संतों ने हमेशा समाज को दिशा दी है। स्वामी श्रद्धानंद, विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों ने भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने और स्वतंत्रता की अलख जगाने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में संतों को राजनीति में आने से रोकना उनके योगदान को दरकिनार करना होगा। सुमेदानंद सरस्वती का कहना है कि खड़गे को इतिहास पढ़कर संतों के इस योगदान को समझना चाहिए।

संत समाज का बदलता दृष्टिकोण और वर्तमान राजनीति

आज की राजनीति में संत समाज का दृष्टिकोण भी बदला है। जहां पहले संत समाज धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित था, वहीं आज कई संत सामाजिक मुद्दों, राजनीति और समाजसेवा में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। सुमेदानंद सरस्वती जैसे संत इसी नई सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका मानना है कि राजनीति के माध्यम से वे समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, और यदि संत समाज राजनीति में आता है तो यह समाज के लिए एक शुभ संकेत है।

कांग्रेस की संत समाज के प्रति बदलती मानसिकता

कांग्रेस का संत समाज के प्रति दृष्टिकोण भी समय के साथ बदलता रहा है। पहले कांग्रेस में संतों का सम्मान होता था और उन्हें राजनीति में स्थान मिलता था, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के भीतर संतों का सम्मान घटता नजर आ रहा है। इसका मुख्य कारण है कि कांग्रेस ने संत समाज को राजनीति से दूर रखने की कोशिश की है, जिसके कारण अब संत समाज कांग्रेस से दूर होता जा रहा है।

भाजपा में संतों का स्थान और सामाजिक कार्य

भाजपा ने हमेशा से संत समाज को राजनीति में स्थान दिया है। भाजपा का मानना है कि संत समाज समाज के कल्याण के लिए कार्य करता है और यदि वह राजनीति के माध्यम से समाज की सेवा करना चाहता है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। सुमेदानंद सरस्वती और अन्य भाजपा नेताओं का मानना है कि संत समाज की भागीदारी राजनीति में समाज के लिए एक सकारात्मक कदम है और इससे समाज में एक आदर्श दृष्टिकोण विकसित होता है।

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