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राजस्थान में ‘आवारा’ नहीं बल्कि ‘निराश्रित’ कहे जाएंगे गौवंश

राजस्थान में ‘आवारा’ नहीं बल्कि ‘निराश्रित’ कहे जाएंगे गौवंश

मनीषा शर्मा। राजस्थान की भजनलाल सरकार ने प्रदेश में गौवंश के प्रति सम्मानजनक शब्दावली का प्रयोग करने का निर्देश जारी किया है। गोपालन विभाग द्वारा सभी सरकारी और अनुदानित संस्थाओं में गौवंश के लिए “आवारा” शब्द का उपयोग बंद करने और उसकी जगह “निराश्रित” व “बेसहारा” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। इस आदेश में प्रदेश सरकार के सभी राजकीय दस्तावेज़ों, आदेशों, परिपत्रों और रिपोर्टों में इस बदलाव को लागू करने पर बल दिया गया है।

गोपालन विभाग के शासन सचिव समित शर्मा ने स्पष्ट किया कि गौवंश को “आवारा” कहना हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के विपरीत है। यह केवल असंवेदनशीलता को दर्शाता है, जबकि हमारे समाज के लिए गौवंश महत्वपूर्ण धरोहर हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर गौवंश आर्थिक और सामाजिक कारणों से बेसहारा हो जाते हैं और सड़कों पर स्वतंत्र विचरण करते देखे जाते हैं। इसके बावजूद उनके लिए “आवारा” शब्द का उपयोग उचित नहीं है, क्योंकि यह उन्हें एक नकारात्मक छवि प्रदान करता है।

शासन सचिव का मानना है कि नए शब्दावली के प्रयोग से समाज में गौवंश के प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति का दृष्टिकोण विकसित होगा। गोपालन विभाग के इस कदम के बाद अब सरकारी और निजी संस्थाएं भी “निराश्रित गौवंश” जैसे शब्दों का प्रयोग कर सकती हैं। इससे प्रदेश में गौवंश की स्थिति को सुधारने में मदद मिल सकती है।

राजस्थान में नगर निगम और नगर पालिकाओं द्वारा गौवंश के लिए “आवारा” शब्द का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा था। अब इस नए दिशा-निर्देश के बाद उम्मीद है कि प्रदेश में गौवंश के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आएगा और उनके कल्याण के लिए नई योजनाएं बनाई जाएंगी। गोपालन विभाग का मानना है कि इस शब्दावली के बदलाव से गौवंश के कल्याण के लिए सकारात्मक संदेश जाएगा।

समाज में निराश्रित गौवंश के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उन्हें सम्मान देने की दिशा में यह एक अहम कदम माना जा रहा है। राजस्थान सरकार का यह प्रयास दिखाता है कि वह गौवंश के सम्मान और उनकी रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।

अब यह देखना होगा कि सरकार द्वारा जारी किए गए इस दिशा-निर्देश के बाद प्रशासन और समाज किस तरह से इन निर्देशों का पालन करता है।

 

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