मनीषा शर्मा। भारत ने अपनी सुरक्षा और सैन्य निगरानी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। अगले पांच वर्षों में, भारत द्वारा कुल 52 जासूसी सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएंगे, जिनका उद्देश्य चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखना है। इन सैटेलाइट्स की सहायता से भारतीय सेना को सीमाओं पर निगरानी में महत्वपूर्ण सहयोग मिलेगा, जिससे संभावित खतरों को समय रहते पहचानना और कार्रवाई करना आसान होगा।
CCS की मंजूरी और SBS-3 प्रोग्राम:
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसरो के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने 7 अक्टूबर को स्पेस बेस्ड सर्विलांस (SBS-3) प्रोग्राम के तीसरे फेज को मंजूरी दी है। यह प्रोग्राम भारत के स्पेस सर्विलांस मिशन का तीसरा चरण है। इसके तहत जो 52 सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे, वे सभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित होंगे और 36,000 किमी की ऊंचाई पर एक दूसरे से कम्यूनिकेट करने में सक्षम होंगे।
ये AI आधारित सैटेलाइट्स एक दूसरे को सिग्नल भेजने, मैसेज और तस्वीरें साझा करने में अत्यधिक सक्षम होंगे। यह न केवल सुरक्षा बलों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, बल्कि इससे भारत की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता में भी बढ़ोतरी होगी। इसके जरिए विभिन्न संवेदनशील क्षेत्रों पर चौबीस घंटे निगरानी रखने की व्यवस्था संभव हो सकेगी।
मिशन का खर्च और सैटेलाइट निर्माण का बंटवारा:
इस प्रोग्राम के तहत लॉन्च किए जाने वाले 52 सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग में करीब 27,000 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। इस मिशन में इसरो द्वारा कुल 21 सैटेलाइट्स का निर्माण किया जाएगा, जबकि शेष 31 सैटेलाइट्स का निर्माण प्राइवेट कंपनियों द्वारा किया जाएगा। इस तरह, मिशन में सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच तालमेल बिठाने का प्रयास किया गया है, जो भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सैटेलाइट्स की निगरानी क्षमता और कार्यप्रणाली:
इन सैटेलाइट्स की खासियत यह होगी कि ये न केवल 36,000 किमी की ऊंचाई पर जियोसिंक्रोनस इक्वेटोरियल ऑर्बिट (GEO) में रहकर निगरानी करेंगे, बल्कि जरूरत पड़ने पर निचली कक्षाओं (400-600 किमी की ऊंचाई) में स्थित सैटेलाइट्स को भी कम्यूनिकेट कर संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी दे सकेंगे। यह संचार प्रणाली सुरक्षा एजेंसियों को संदिग्ध क्षेत्रों में और अधिक गहराई से जांच करने का निर्देश दे सकेगी।
SBS मिशन का इतिहास:
भारत में स्पेस बेस्ड सर्विलांस (SBS) मिशन की शुरुआत वर्ष 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। इसके तहत SBS-1 प्रोग्राम के अंतर्गत 2001 में चार सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए, जिनमें प्रमुख सैटेलाइट रिसैट था। इसके बाद SBS-2 प्रोग्राम में 2013 में 6 सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए। इन प्रोग्राम्स का उद्देश्य भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को बेहतर निगरानी और खुफिया जानकारी प्रदान करना था। इस प्रोग्राम के नए चरण के तहत, अब अधिक उन्नत तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है, जिससे निगरानी का दायरा और क्षमता दोनों में सुधार होगा।
भारतीय सेना के लिए समर्पित सैटेलाइट्स:
इसरो ने समय-समय पर भारतीय सेना की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग शाखाओं के लिए समर्पित सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं:
- नेवी के लिए GSAT-7 (रुक्मिणी): 2013 में, इसरो ने इंडियन नेवी के लिए GSAT-7 सैटेलाइट लॉन्च की थी, जिसे रुक्मिणी भी कहा जाता है। यह सैटेलाइट नेवी के लिए समुद्री संचार में सहायता करती है और पानी में स्थिति जानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- एयरफोर्स के लिए GSAT-7A (एंग्री बर्ड): 2018 में इसरो ने एयरफोर्स के लिए GSAT-7A या एंग्री बर्ड सैटेलाइट लॉन्च की, जो वायुसेना को संचार और जमीनी निगरानी में महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करती है।
- आर्मी के लिए GSAT-7C: भारतीय सेना के लिए GSAT-7C सैटेलाइट को 2023 में मंजूरी दी गई, जिसे 2026 तक लॉन्च किया जा सकता है। इससे भारतीय सेना को संचार और खुफिया जानकारी जुटाने में सहायता मिलेगी।
भारत का आगामी शुक्र मिशन:
भारत न केवल पृथ्वी के प्रति सतर्क है, बल्कि अन्य ग्रहों के बारे में भी अपनी जानकारी को विस्तार दे रहा है। भारत का पहला शुक्र मिशन मार्च 2028 में लॉन्च किया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार ने 19 सितंबर 2023 को मंजूरी दी। यह मिशन चार साल का होगा और शुक्र ग्रह से पृथ्वी तक संबंधित आंकड़े जुटाएगा। शुक्र ग्रह को पृथ्वी का जुड़वां ग्रह भी कहा जाता है। यह मिशन भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा, जिससे अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को नई उपलब्धियां प्राप्त होंगी।
भारत की स्पेस और सुरक्षा क्षमता में बढ़ोतरी:
भारत का यह 52 सैटेलाइट्स वाला जासूसी मिशन देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह भारत की बढ़ती स्पेस टेक्नोलॉजी, सुरक्षा क्षमता और स्वदेशी सैटेलाइट निर्माण की शक्ति को दर्शाता है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह मिशन आने वाले वर्षों में मजबूत और विश्वसनीय खुफिया जानकारी प्राप्त करने में सहायता करेगा, जो सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत बनाएगा।