मनीषा शर्मा। जयपुर(Jaipur) के विद्याधर नगर स्टेडियम में चल रही 9 दिवसीय श्रीराम कथा के दूसरे दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) ने घोषणा की कि कश्मीर की वापसी के लिए वे सवा करोड़ आहुतियाँ हनुमानजी को समर्पित करेंगे। उन्होंने जयपुरवासियों से अपील की कि इस अभियान में सहयोग दें ताकि वे अपना लक्ष्य पूरा कर सकें। राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागड़े (Governor Haribhau Bagde)भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे और उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य का आशीर्वाद प्राप्त किया।
वेद शिक्षा का समर्थन
अपने संबोधन में रामभद्राचार्य ने राजस्थान सरकार की 6 से 12वीं कक्षा तक वेद शिक्षा देने की योजना की सराहना की। उन्होंने सरकार को आश्वासन दिया कि भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए वे अपने ज्ञान से सहयोग देने को तत्पर हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें डेढ़ लाख से अधिक वेद मंत्र कंठस्थ हैं और वे ऑनलाइन शिक्षा भी प्रदान करने को तैयार हैं।
राजस्थान में कमल और हरि की पूजा का आह्वान
जगद्गुरु ने अपने संबोधन में कहा कि राजस्थान में अब कमल का फूल खिला है, जिससे हरि की पूजा होती है। इस तरह उन्होंने वर्तमान सरकार का समर्थन करने और सनातन संस्कृति के महत्व को बनाए रखने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का अस्तित्व हमेशा से कायम रहा है, और कोई भी इसे समाप्त नहीं कर सकता। राज्यपाल बागड़े ने भी अपने संबोधन में भारतीय संस्कृति की ताकत का गुणगान किया।
राम जन्मभूमि के फैसले में रामभद्राचार्य की भूमिका
रामभद्राचार्य ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में राम जन्मभूमि मामले में गवाही दी थी, जिसमें उन्होंने वेदों और पुराणों के उद्धरण देकर राम जन्मभूमि के पक्ष को मजबूती दी। जैमिनीय संहिता के उदाहरण के माध्यम से उन्होंने अदालत में श्रीराम जन्मभूमि के स्थान को साबित किया। उनकी इस गवाही से अदालत का निर्णय बदलने में अहम योगदान मिला था। न्यायालय के जज ने भी उनकी सनातन ज्ञान की प्रशंसा की और कहा कि यह एक चमत्कार है कि एक नेत्रहीन व्यक्ति वेदों का इतना गहन ज्ञान रखता है।
जन्मजात दृष्टिहीनता के बावजूद अद्वितीय ज्ञान और योगदान
सिर्फ दो माह की आयु में अपनी दृष्टि खो देने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने 22 भाषाओं में महारत हासिल की है और लगभग 80 से अधिक ग्रंथों की रचना की है। वे न पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं, फिर भी सुनकर सीखने की अद्वितीय क्षमता के कारण उन्होंने अनगिनत रचनाएँ की हैं। वे अपनी रचनाएँ सुनाकर लिखवाते हैं और ब्रेल का भी उपयोग नहीं करते। उनका जीवन इस बात का प्रेरणा स्रोत है कि कठिनाई के बावजूद भी किस तरह सफलता हासिल की जा सकती है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य: चित्रकूट का गौरव
चित्रकूट के निवासी जगद्गुरु रामभद्राचार्य, जिनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है, रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और 1988 से इस पद पर आसीन हैं। चित्रकूट में उनके द्वारा स्थापित ‘जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय’ दिव्यांग जनों के लिए एक आशा की किरण है। वे तुलसी पीठ के संस्थापक भी हैं और तुलसीदास के विशेषज्ञ माने जाते हैं। भारत सरकार ने 2015 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया।
राम कथा में प्रवेश पास समाप्त, पहले आओ पहले पाओ की नीति
विद्याधर नगर स्टेडियम में हो रही श्रीराम कथा में अब प्रवेश पास की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। कथा में भाग लेने के इच्छुक लोग पहले आओ पहले पाओ के आधार पर अपनी जगह सुनिश्चित कर सकते हैं। आयोजकों का मानना है कि इस व्यवस्था से अधिक लोगों को कथा में शामिल होने का अवसर मिलेगा और वातावरण भी समृद्ध बनेगा।
आध्यात्मिकता के प्रतीक
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने जीवन और ज्ञान से समाज में आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित किया है। उनके योगदान और त्याग ने उन्हें भारत का गौरव बनाया है।