मनीषा शर्मा। जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने विचारों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने प्रवचन में उन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए स्पष्ट कहा कि कश्मीर को देश से अलग नहीं किया जा सकता। उनका संदेश न केवल धार्मिक दृष्टि से प्रेरित था बल्कि देश के वर्तमान मुद्दों और समाजिक एकता पर आधारित था। उन्होंने कश्मीर से धारा 370 हटाने का समर्थन किया और इसे भारत की एकता के लिए आवश्यक बताया।
कश्मीर भारत का सिरमौर: रामभद्राचार्य का दृष्टिकोण
रामभद्राचार्य ने कश्मीर को भारत का ‘सिरमौर’ बताया और कहा कि कश्मीर भारत माता का मुकुट मणि है। उन्होंने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के धारा 370 की पुनः बहाली के बयान का विरोध करते हुए इसे अनावश्यक बताया। उनके अनुसार, धारा 370 केवल कश्मीर की प्रगति को बाधित करती थी और इसके हटने के बाद ही देश के नागरिक कश्मीर में अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं। उनके अनुसार, कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद देश का हर नागरिक कश्मीर में जमीन खरीद सकता है और वहां विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिल रहा है।
धारा 370 की पुनः बहाली पर प्रतिक्रिया
रामभद्राचार्य ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा कश्मीर में धारा 370 की पुनः बहाली की मांग पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इसे अव्यावहारिक बताया। उन्होंने कहा कि धारा 370 बहाल करने की बात करने वाले लोग संविधान और कश्मीर की प्रासंगिकता को नहीं समझते। उनके अनुसार, कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, और इसका भारत के अन्य हिस्सों से अलग होना स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनका स्पष्ट मानना है कि कश्मीर भारत के साथ एकीकृत रहना चाहिए और इसके प्रति कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
बच्चों के नामकरण पर विशेष संदेश
अपने प्रवचनों में रामभद्राचार्य ने बच्चों के नामकरण के महत्व पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि बच्चों का नाम सोच-समझकर रखना चाहिए ताकि उस नाम के गुण बच्चों में भी आएं। उन्होंने बताया कि उनकी मां ने उन्हें गिरिधर लाल नाम दिया था जिसका अर्थ है ‘पर्वत को उठाने वाला’। रामभद्राचार्य का मानना है कि नाम के पीछे की भावना व्यक्ति के गुणों और व्यक्तित्व पर गहरा असर डालती है। उन्होंने इसे बच्चों के नामकरण से जोड़ा और कहा कि सही नामकरण बच्चों को समाज में विशेष स्थान प्रदान करता है।
राम जन्मभूमि पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य की ऐतिहासिक भूमिका
रामभद्राचार्य ने श्रीराम जन्मभूमि मामले में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद-पुराणों से उदाहरण देकर गवाही दी थी। उन्होंने ऋगवेद की जैमिनीय संहिता से प्रमाण प्रस्तुत किए थे, जिससे न्यायाधीश भी प्रभावित हुए। उनका वक्तव्य राम जन्मभूमि फैसले का रुख मोड़ने में सहायक सिद्ध हुआ। इस मामले में उनकी विद्वता को देखकर सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी उनकी प्रशंसा की थी, जो यह दिखाता है कि धार्मिक ग्रंथों के प्रति उनकी समझ और सम्मान कितनी गहरी है।
दिव्यांगता पर विजय की प्रेरणादायक कहानी
रामभद्राचार्य की दिव्यांगता पर विजय की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। मात्र दो महीने की उम्र में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी, इसके बावजूद उन्होंने 22 भाषाएं सीखी हैं और अब तक 80 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। यह उल्लेखनीय है कि वे न तो पढ़ सकते हैं, न लिख सकते हैं, और न ही ब्रेल लिपि का उपयोग करते हैं। केवल सुन कर सीखना और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाना उनकी खासियत है। उनकी दिव्यांगता को हराकर वे एक प्रभावशाली संन्यासी और शिक्षक बने हैं।
चित्रकूट का तुलसी पीठ और विकलांग विश्वविद्यालय
रामभद्राचार्य चित्रकूट में स्थापित तुलसी पीठ के संस्थापक हैं और उन्होंने दिव्यांगों के लिए भारत का पहला विकलांग विश्वविद्यालय भी स्थापित किया है। यह विश्वविद्यालय दिव्यांगों को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सशक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है। तुलसी पीठ के माध्यम से वे समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
भारत की एकता और सुरक्षा के प्रति संकल्प
रामभद्राचार्य ने अपने त्रिदंड का संकल्प लेकर कहा कि भारत की सुरक्षा में कोई बाधा आने पर वे खुद खड़े होंगे। उनका मानना है कि जब तक देश में ऐसे संत और शिक्षक मौजूद हैं, भारत की ओर कुदृष्टि डालने वालों की सजा निश्चित है। वे भारत की एकता को किसी भी प्रकार की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से बचाने का संकल्प लेते हैं। उनका प्रवचन न केवल धर्म, बल्कि समाज और देश की सुरक्षा के प्रति उनकी गहरी चिंता को भी दर्शाता है।