शोभना शर्मा। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 अपने विचारशील संवादों और साहित्यिक चर्चाओं के लिए हमेशा सुर्खियों में रहता है। इस बार भी फेस्टिवल में कई मशहूर साहित्यकार, समाजसेवी और कलाकारों ने भाग लिया। इसी कड़ी में प्रसिद्ध गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने ‘ज्ञान सीपियां’ सेशन में मातृभाषा के महत्व को लेकर अपनी बात रखी।
इस सेशन में उनके साथ जानी-मानी समाजसेवी सुधा मूर्ति और अभिनेता अतुल तिवारी भी मौजूद थे। बातचीत के दौरान जावेद अख्तर ने कहा कि आजकल माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन इससे वे अपनी मातृभाषा से कटते जा रहे हैं। उन्होंने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि यह प्रवृत्ति भाषा और संस्कृति के लिए ठीक नहीं है।
“अंग्रेजी जरूरी, लेकिन मातृभाषा भी उतनी ही अहम” – जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने स्पष्ट किया कि वे अंग्रेजी भाषा की उपयोगिता और उसकी जरूरत से इनकार नहीं कर रहे हैं। आज के दौर में अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा है, जो विज्ञान, तकनीक और संचार में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन, अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा से पूरी तरह कट जाता है, तो यह नुकसानदायक हो सकता है।
उन्होंने कहा, “हमारी भाषा हमारी पहचान होती है। अगर हम अपनी मातृभाषा को भूल जाएंगे, तो हम अपने विचारों और संस्कृति से भी कट जाएंगे।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती, बल्कि यह विचारों को व्यक्त करने का जरिया होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में सोचता और बोलता है, तो वह अपनी बात अधिक स्पष्ट रूप से रख सकता है।
कहावतें और दोहे – हमारी सांस्कृतिक विरासत
सेशन के दौरान जावेद अख्तर ने कहावतों और दोहों के महत्व पर भी बात की। उन्होंने कहा कि कहावतें और दोहे किसी भी भाषा का गूढ़ ज्ञान होते हैं। हमारी परंपराओं में दोहों का विशेष स्थान रहा है, जो वर्षों से लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में प्रासंगिक बने हुए हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कई दोहे 500 साल पुराने हैं, लेकिन जब आप उन्हें सुनेंगे, तो लगेगा कि वे हाल ही में लिखे गए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि भाषा और ज्ञान समय के साथ बदलते नहीं, बल्कि विकसित होते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कहावतों और दोहों का इस्तेमाल आम भाषा में करना चाहिए ताकि नई पीढ़ी भी इनसे परिचित हो सके।
“हमारी भाषा में जो कहावतें हैं, वे ‘पर्ल्स ऑफ विज़डम’ (ज्ञान के मोती) हैं। अगर हम उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करेंगे, तो हमारी भाषा और संस्कृति और भी समृद्ध होगी।”
दोहा: लेखन की एक महत्वपूर्ण विधा
जावेद अख्तर ने दोहों को लेखन की एक महत्वपूर्ण शैली बताते हुए कहा कि इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी केवल लेखकों की नहीं, बल्कि आम जनता की भी है। अगर लोग दोहे लिखेंगे, पढ़ेंगे और साझा करेंगे, तो यह शैली आगे बढ़ेगी और ज्यादा लोगों तक पहुंचेगी।
उन्होंने अपने मित्र विक्रम मेहरा का उल्लेख करते हुए बताया कि ‘ज्ञान सीपियां’ लिखने का विचार भी उन्हें ही आया था। विक्रम मेहरा एक बेहद रचनात्मक व्यक्ति हैं, और उनकी इस सोच ने दोहों को फिर से जीवंत करने में मदद की है।
मातृभाषा को संरक्षित रखने की जरूरत
सेशन के दौरान जावेद अख्तर ने मातृभाषा की स्थिति को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि आजकल बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाने का इतना दबाव है कि वे अपनी मातृभाषा में लिखना और बोलना भूलते जा रहे हैं।
“अगर कोई बच्चा हिंदी, उर्दू, बंगाली, तमिल या मराठी में सोचने और लिखने में सक्षम नहीं है, तो यह उसकी अभिव्यक्ति क्षमता को सीमित कर देगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ियां अपनी मातृभाषा से जुड़ी रहें।”
उन्होंने माता-पिता से अपील की कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के साथ-साथ उनकी मातृभाषा में भी बात करें और उन्हें लिखने-पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
भविष्य के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
इस चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण सुझाव भी सामने आए कि कैसे मातृभाषा को बढ़ावा दिया जा सकता है:
स्कूलों में द्विभाषी शिक्षा – अंग्रेजी के साथ-साथ मातृभाषा में भी पढ़ाई कराई जाए।
पारिवारिक संवाद – घर में बच्चों से मातृभाषा में बात की जाए ताकि वे सहजता से इसे अपना सकें।
स्थानीय साहित्य को बढ़ावा – लोक साहित्य, दोहे, कविताएं और कहावतों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा और प्रचारित किया जाए।
डिजिटल माध्यमों का उपयोग – सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मातृभाषा में अधिक कंटेंट बनाया जाए।