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जानिए हरविलास शरद को, जिनकी किताब बनी दरगाह विवाद का आधार

जानिए हरविलास शरद को, जिनकी किताब बनी दरगाह विवाद का आधार

शोभना शर्मा, अजमेर।  हाल ही मे हुए दरगाह शिव मंदिर मे हिन्दू पक्ष द्वारा हरविलास शारदा  की किताब का हवाला दिया गया है। आज हम आपको हरविलास शारदा  के बारे मे बताते हैं। हरविलास शारदा का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे समाज सुधारक और शिक्षाविद के रूप में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है, जिन्होंने न केवल बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को चुनौती दी, बल्कि भारतीय समाज को जागरूक और प्रगतिशील बनाने में भी अपनी भूमिका निभाई। उनका जीवन संघर्ष और समाज के उत्थान के प्रति उनकी निष्ठा, आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

हरविलास शारदा का जन्म 3 जून 1867 को राजस्थान के अजमेर शहर में एक माहेश्वरी परिवार में हुआ था। उनके पिता हर नारायण शारदा एक वेदांती और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनके परिवार का धार्मिक और बौद्धिक माहौल उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाला साबित हुआ।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

हरविलास शारदा ने 1883 में अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और आगरा कॉलेज (तब कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में दाखिला लिया। 1888 में उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। अपनी शिक्षा के दौरान, उन्होंने अंग्रेजी, दर्शनशास्त्र, और फारसी जैसे विषयों में गहरी रुचि दिखाई। हालांकि, उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय जाने की उनकी योजना उनके पिता की गंभीर बीमारी और बाद में उनकी मृत्यु के कारण स्थगित हो गई। इस कठिन समय में, उन्होंने न केवल परिवार की जिम्मेदारी संभाली बल्कि अपने करियर को भी नई दिशा दी।

व्यावसायिक जीवन और न्यायिक सेवा

शारदा ने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में एक शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में, उन्होंने अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में काम करना शुरू किया। 1894 में, वे अजमेर के नगर आयुक्त बने। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने “अजमेर विनियमन पुस्तक” का संशोधन किया, जो प्रांत के कानूनों और नियमों का संकलन था। 1902 में, उन्हें जैसलमेर के शासक के संरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। अपने न्यायिक कार्यकाल के दौरान, उन्होंने विभिन्न पदों पर काम किया, जैसे कि अतिरिक्त सहायक आयुक्त, उप-न्यायाधीश, और लघु कारण न्यायालय के न्यायाधीश।

 समाज सुधार और ‘शारदा एक्ट’

बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के लिए हरविलास शारदा ने महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने 1925 में केंद्रीय विधान सभा में ‘शारदा बिल’ पेश किया, जिसे सितंबर 1929 में पास किया गया। यह कानून 1 अप्रैल 1930 से पूरे भारत में लागू हुआ। इस कानून ने बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाया और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कियों के लिए 14 वर्ष तय की। ‘शारदा एक्ट’ उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। इस बिल के कारण भारतीय समाज में जागरूकता और बाल विवाह के खिलाफ अभियान को गति मिली।

राजनीतिक जीवन

हरविलास शारदा ने 1924 में केंद्रीय विधानसभा के सदस्य के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1930 और 1932 में, वे पुनः निर्वाचित हुए। वे भारतीय समाज के हित में कई विधेयक लेकर आए, जिनमें से कुछ पास हुए और कुछ को विरोध का सामना करना पड़ा। उनकी प्रमुख विधायी उपलब्धियों में शामिल हैं:

  • बाल विवाह निरोधक अधिनियम
  • अजमेर-मेरवाड़ा न्यायालय शुल्क संशोधन अधिनियम
  • हिंदू विधवाओं को संपत्ति का अधिकार देने के लिए विधेयक

सामाजिक और शैक्षिक योगदान

शारदा का सामाजिक सुधार के क्षेत्र में योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित ‘परोपकारिणी सभा’ के सचिव के रूप में काम किया और अजमेर में डीएवी स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन और भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अजमेर में दयानंद सरस्वती की स्मृति में कई कार्यक्रम आयोजित किए और उनके विचारों को समाज में फैलाने का कार्य किया।

लेखन कार्य और साहित्यिक योगदान

हरविलास शारदा ने अपने जीवन में कई पुस्तकों और लेखों का सृजन किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिंदू सुपीरियॉरिटी’ है, जिसमें उन्होंने हिंदू धर्म और उसकी महानता को विस्तृत रूप से वर्णित किया है।

पुरस्कार और सम्मान

हरविलास शारदा को उनके सामाजिक और न्यायिक कार्यों के लिए ‘राय बहादुर’ और ‘दीवान बहादुर’ की उपाधियों से सम्मानित किया गया।

मृत्यु और विरासत

हरविलास शारदा का निधन 20 जनवरी 1952 को हुआ। उनके योगदान ने भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता के लिए नई राहें खोलीं।

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