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हरतालिका तीज: जानें व्रत का महत्व, कथा और इसके पीछे की रोचक कहानी

हरतालिका तीज: जानें व्रत का महत्व, कथा और इसके पीछे की रोचक कहानी

शोभना शर्मा। हरतालिका तीज हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे खासतौर पर उत्तर भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम, समर्पण और मिलन का प्रतीक है। सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए यह व्रत करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इसे करती हैं। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत उच्च है, जो महिलाओं के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

हरतालिका तीज 2024 कब है?

हरतालिका तीज का व्रत हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 में हरतालिका तीज 6 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हुए इसे किया जाता है।

हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है?

हरतालिका तीज का व्रत पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन की समृद्धि के लिए किया जाता है। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने बिना जल ग्रहण किए यह कठिन व्रत रखा और भोलेनाथ की आराधना की। उनकी श्रद्धा और समर्पण से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें पति रूप में स्वीकार किया। इस दिन महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव के इस दिव्य मिलन की याद में व्रत रखती हैं।

यह व्रत सुहागिनों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे करने से पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है। अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

हरतालिका तीज का नाम और इसकी उत्पत्ति

हरतालिका तीज नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘हर’ और ‘तालिका’। ‘हर’ का अर्थ है ‘हरना’ या ‘अपहरण करना’, जबकि ‘तालिका’ का अर्थ है ‘सखी-सहेलियां’। इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार, माता पार्वती की सखियों ने उनका अपहरण किया था ताकि वह अपने पिता के घर से दूर रहकर भगवान शिव की तपस्या कर सकें। इसलिए इस पर्व का नाम ‘हरतालिका’ पड़ा।

हरतालिका तीज की पौराणिक कथा

हरतालिका तीज की कथा अत्यंत प्राचीन और पौराणिक है। देवी पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाने की इच्छा रखती थीं, लेकिन उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था। पार्वती जी इस विवाह से असंतुष्ट थीं क्योंकि उनका मन भगवान शिव में था।

उनकी सखियों ने यह देखा और उन्हें उनके पिता के घर से अपहरण कर एक घने जंगल में ले गईं। वहां पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने बिना भोजन और जल ग्रहण किए यह कठोर व्रत किया और भोलेनाथ की आराधना की। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। तभी से यह व्रत माता पार्वती के प्रेम और समर्पण का प्रतीक बन गया।

व्रत की विधि और पूजा का महत्व

हरतालिका तीज व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जल रहती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं रात भर जागकर भगवान शिव और माता पार्वती की कथा सुनती हैं। पूजा में खासतौर पर शिवलिंग, माता पार्वती की प्रतिमा और फल-फूलों का प्रयोग होता है। शिव-पार्वती की पूजा करते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इस दिन पूजा का महत्व बहुत अधिक होता है और माना जाता है कि व्रत रखने वाली स्त्रियों को वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।

हरतालिका तीज व्रत के फायदे

इस व्रत को करने से महिलाओं को वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है। अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। जो महिलाएं इसे पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ करती हैं, उन्हें जीवन में कई प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है और उनके सभी कार्य सफल होते हैं।

हरतालिका तीज और करवा चौथ में अंतर

हरतालिका तीज और करवा चौथ दोनों ही व्रत पति की लंबी आयु और कुशलता के लिए किए जाते हैं, लेकिन दोनों व्रतों में कुछ प्रमुख अंतर हैं। हरतालिका तीज निर्जल व्रत होता है, जिसमें महिलाएं दिन भर कुछ नहीं खातीं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करती हैं। जबकि करवा चौथ में महिलाएं दिन में कुछ खा सकती हैं, लेकिन चंद्र दर्शन के बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं। हरतालिका तीज का व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, जबकि करवा चौथ पूरे भारत में प्रचलित है।

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