कोटाब्लॉग्स

कोटा कोचिंग: अर्श से फर्श तक की यात्रा और भविष्य की चुनौतियां

कोटा कोचिंग: अर्श से फर्श तक की यात्रा और भविष्य की चुनौतियां

शोभना शर्मा।  कोटा, जो कभी भारत में शिक्षा का गढ़ माना जाता था, आज एक ऐसी स्थिति में पहुंच चुका है जहां उसका नाम अनुशासनहीनता और भोगवादी संस्कृति के लिए लिया जा रहा है। यह बदलाव एक दिन में नहीं आया, बल्कि वर्षों के भीतर पनपी घोर व्यावसायिकता और अवांछित स्वतंत्रता ने इसे अर्श से फर्श पर ला दिया है।

कोटा कोचिंग का सुनहरा अतीत

90 के दशक में कोटा में शुरू हुई कोचिंग पद्धति ने देशभर के छात्रों को आकर्षित किया। साल 2000 तक कोटा में भारत के कोने-कोने से विद्यार्थी अपनी जगह बना चुके थे। यह शहर शैक्षणिक सफलता का प्रतीक बन गया और यहां के कोचिंग संस्थानों ने छात्रों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने का कार्य बखूबी किया। लेकिन जैसे-जैसे दौलत और शोहरत ने पैर पसारे, शिक्षा के क्षेत्र में व्यवसायिकता ने अपनी जड़ें जमा लीं।

व्यावसायिकता और कोचिंग का बदलता स्वरूप

शिक्षा का व्यवसायीकरण कोटा कोचिंग का वह दौर लेकर आया जिसमें कोचिंग संस्थानों ने कॉल सेंटर, एसोसिएट मार्केटिंग और रिजल्ट मैनेजिंग डिपार्टमेंट जैसे व्यावसायिक विभाग स्थापित किए। छात्रों को कोटा लाने के लिए “टैलेंट सर्च एग्जाम” और स्कॉलरशिप का सहारा लिया गया। इसका उद्देश्य छात्रों को उनकी शैक्षणिक क्षमता के आधार पर चयनित करना नहीं, बल्कि हर हाल में प्रवेश पाना था। धीरे-धीरे एफिलिएट मार्केटिंग ने इस प्रक्रिया को और भी विकृत कर दिया, जहां स्थानीय एजेंट्स को वित्तीय प्रोत्साहन देकर छात्रों का नामांकन कराया जाने लगा।

शिक्षा से भोग तक का बदलाव

जैसे-जैसे कुपात्र विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी, कोटा कोचिंग संस्थानों ने भी अपनी रणनीतियों में बदलाव किया। रैंकर्स और बैंकर्स की दोहरी प्रणाली का विकास हुआ। जहां रैंकर्स को परंपरागत शैक्षणिक पद्धति से पढ़ाया गया, वहीं बैंकर्स को विशेष सुविधाएं दी गईं। इन सुविधाओं ने छात्रों को योगी से भोगी बना दिया। हॉस्टल्स में पढ़ाई के माहौल की जगह एसी, गीजर, और मनोरंजन की सुविधाओं ने ले ली।

अनुशासनहीनता और असफलता का बढ़ता दौर

सुविधाभोगी प्रवृत्ति ने कक्षा-कक्षों में अनुशासनहीनता को जन्म दिया। छात्र अब व्हाइटबोर्ड से नोट्स लिखने की जगह फोटो खींचते और शिक्षकों के निर्देशों को अनदेखा करते हैं। मनोरंजन और मौज-मस्ती की बढ़ती प्रवृत्ति ने कोटा को शिक्षा के बजाय असफलता का केंद्र बना दिया।

कोटा की बदनामी और असामाजिक गतिविधियां

कई छात्रों ने कोटा की आजादी का दुरुपयोग अपने असामाजिक उद्देश्यों के लिए किया। इन गतिविधियों ने न केवल कोटा की प्रतिष्ठा को गिराया बल्कि यहां के शैक्षणिक माहौल को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया। इसने कोचिंग संस्थानों के परीक्षा परिणामों पर भी गहरा असर डाला।

कोचिंग संस्थानों की जिम्मेदारी और भविष्य की राह

कोटा को अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। कोचिंग संस्थानों को शैक्षणिक अनुशासन को पुनर्स्थापित करना होगा और कुपात्र विद्यार्थियों के प्रवेश पर रोक लगानी होगी। शुद्ध शैक्षणिक माहौल ही कोटा को फिर से शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है।

post bottom ad

Discover more from MTTV INDIA

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading