राजस्थान के झालावाड़ जिले में चंद्रभागा पशु मेला पूरे उत्साह और परंपराओं के साथ चल रहा है। यह मेला राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र की शान है और हर साल झालरापाटन में आयोजित किया जाता है। इस मेले का नाम चंद्रभागा नदी के नाम पर पड़ा है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान है। मेले में दूर-दूर से पशुपालक अपने पशुओं को लाते हैं, जिनमें गाय, भैंस, ऊंट, और खासतौर पर घोड़े शामिल हैं। इस बार घोड़ों की प्रतियोगिता विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जिसमें देश के कोने-कोने से आए घोड़ों ने हिस्सा लिया।
घोड़ों की प्रतियोगिता: कोटा का घोड़ा बना विजेता
चंद्रभागा पशु मेले में आयोजित घोड़ों की प्रतियोगिता ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। इस प्रतियोगिता में घोड़ों को उनकी नस्ल, कद-काठी, उम्र, और दौड़ने की क्षमता के आधार पर परखा गया।
इस बार प्रतियोगिता में कोटा जिले के बड़गांव निवासी एक घोड़े ने विजेता का ताज अपने नाम किया। इस घोड़े को उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मेडल और पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रतियोगिता में दूसरा और तीसरा स्थान प्राप्त करने वाले घोड़ों को भी पुरस्कार दिए गए।
निर्णायक मंडल की पारदर्शिता और नियम
घोड़ों की प्रतियोगिता के दौरान कुछ घोड़ा पालकों ने निर्णय प्रक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया। उनका कहना था कि जब किसी घोड़े को रिजेक्ट किया जाता है, तो उसकी कमियां बताई जानी चाहिएं।
निर्णायक मंडल के सदस्यों ने कहा कि पूरी प्रक्रिया पूर्ण पारदर्शिता के साथ होती है। घोड़ों का मूल्यांकन 8 से 10 मानदंडों के आधार पर किया जाता है, जिनमें नस्ल, आकार, चाल, और कद-काठी शामिल हैं।
दूर-दूर से पहुंचे घोड़े और उनके शौक़ीन
चंद्रभागा मेले में घोड़ों की खरीद-फरोख्त भी होती है। लेकिन प्रतियोगिता के लिए कई लोग सिर्फ अपने घोड़े का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से आते हैं। यहां ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो सिर्फ शौक के लिए घोड़े पालते हैं और उनके रखरखाव पर भारी खर्च करते हैं।
घोड़ों के चयन की प्रक्रिया और सुझाव
निर्णायक मंडल ने यह भी बताया कि घोड़ों का मूल्यांकन बेहद सटीक और निष्पक्ष तरीके से होता है। हालांकि, मेले में मौजूद घोड़ा पालकों ने यह सुझाव दिया कि चयन प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जाए और रिजेक्ट होने वाले घोड़ों की कमियां स्पष्ट रूप से बताई जाएं।
चंद्रभागा मेले की अन्य गतिविधियां
मेले में घोड़ों के अलावा अन्य पशुओं का भी बड़ा बाजार लगता है। यहां गाय, भैंस, और ऊंटों की खरीद-फरोख्त होती है। पशु प्रतियोगिताओं के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान भी मेले का प्रमुख हिस्सा हैं। चंद्रभागा नदी के किनारे होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भी बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं।
पुष्कर मेले के बाद चंद्रभागा मेला चर्चा में
पुष्कर पशु मेले की भव्यता के बाद अब चंद्रभागा मेला चर्चा में है। पुष्कर मेले में जहां 23 करोड़ के भैंसे और 11 करोड़ के घोड़े ने सुर्खियां बटोरीं, वहीं चंद्रभागा मेला अपनी परंपराओं और प्रतिस्पर्धाओं के लिए प्रसिद्ध है।
मेले की महत्ता और भविष्य
चंद्रभागा पशु मेला केवल पशुपालकों के लिए ही नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी जाना जाता है। यह मेला हाड़ौती क्षेत्र की समृद्धि और परंपराओं का प्रतीक है। हर साल यहां हजारों लोग मेले की रौनक देखने आते हैं।