मनीषा शर्मा,अजमेर। ऐतिहासिक दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार के रूप में जानी जाती है, एक नए विवाद का केंद्र बन गई है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने हाल ही में दावा किया कि दरगाह के नीचे संकट मोचन महादेव का मंदिर मौजूद है। उनके इस दावे पर अजमेर सिविल कोर्ट ने सुनवाई करने की स्वीकृति दे दी है। इसके बाद से पूरे देश में इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
यह विवाद केवल धार्मिक दायरे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि तेजी से राजनीतिक रंग भी ले चुका है। राजनीतिक बयानबाजी के दौर में अब पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा ने भी इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। इल्तिजा ने इस विवाद को भारतीय राजनीति में बढ़ती ध्रुवीकरण की प्रक्रिया से जोड़ते हुए कहा कि “यह मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढने की बात नहीं है, बल्कि वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है।”
इल्तिजा का बयान: मुसलमानों को तंग करने की कोशिश
जम्मू-कश्मीर में एक कार्यक्रम के दौरान इल्तिजा ने कहा कि इस तरह के मुद्दे लाकर समाज को विभाजित करने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि “यह दिखाने की कोशिश है कि मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर किया जा रहा है।” उन्होंने इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए खतरनाक करार दिया। इल्तिजा ने कहा, “यहां जो लोग मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने की बात कर रहे हैं, वे वास्तव में वोट बैंक तलाश रहे हैं। यह समाज के लिए खतरनाक है क्योंकि यह केवल धार्मिक भावना भड़काने का काम करता है। हमें ऐसे विभाजनकारी एजेंटों से सावधान रहना चाहिए।”
विष्णु गुप्ता का दावा और अदालत की प्रतिक्रिया
विष्णु गुप्ता का दावा है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के नीचे संकट मोचन महादेव का मंदिर है, जिसे कथित तौर पर मुगल शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया था। उन्होंने इस दावे को लेकर अदालत में याचिका दायर की, जिसे अजमेर सिविल कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। अदालत का यह कदम विवाद को और अधिक बढ़ावा देने वाला साबित हुआ। गुप्ता ने कहा कि “हमें अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को पुनर्स्थापित करना चाहिए।” उनका यह बयान हिंदू सेना के कई अन्य नेताओं ने भी दोहराया। हालांकि, यह मुद्दा केवल धार्मिक दावे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति की आशंका जताई जा रही है।
राजनीतिक बयानबाजी का दौर
इस मामले पर कांग्रेस नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे समाज को बांटने की साजिश करार दिया। गहलोत ने कहा, “अजमेर दरगाह एकता और भाईचारे का प्रतीक है। इसे इस तरह विवादों में घसीटना निंदनीय है।” सचिन पायलट ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा कि “धार्मिक स्थलों पर राजनीति करना समाज को कमजोर करता है।” वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस मामले को हिंदू धार्मिक भावनाओं से जोड़ते हुए कहा कि “यदि वहां मंदिर था, तो उसकी पहचान होनी चाहिए।”
मस्जिदों और मंदिरों के विवाद पर उठते सवाल
भारत में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ी है, जहां मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे किए गए हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद के बाद से यह प्रवृत्ति और तेज हो गई है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी ऐसे ही विवाद चल रहे हैं।
ध्रुवीकरण और समाज पर प्रभाव
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के मुद्दे समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। जहां एक ओर कुछ राजनीतिक दल इसे धर्म और संस्कृति की रक्षा का मुद्दा बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे जनता का ध्यान भटकाने और विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा करार देता है।
इल्तिजा का अपील
इल्तिजा ने कहा कि “हमें विकास की बात करनी चाहिए, न कि धार्मिक स्थलों को तोड़ने या विवादित बनाने की। कश्मीर में हम कहते हैं कि रेलवे लाइन बनाएंगे, लेकिन यहां मस्जिदों को निशाना बनाया जाता है। यह समाज के हर तबके के लिए नुकसानदेह है।”
समाज के लिए संदेश
इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि धार्मिक स्थलों को लेकर ऐसे विवाद क्या सच में हमारे समाज को आगे ले जा रहे हैं या केवल वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बनते जा रहे हैं। अजमेर दरगाह के इस मामले में अदालत का निर्णय और राजनीतिक दलों का रुख आने वाले समय में यह तय करेगा कि यह मुद्दा कहां तक जाएगा।