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मंदिर तोड़कर बनी मस्जिदें: मदन दिलावर का बयान और विवाद

मंदिर तोड़कर बनी मस्जिदें: मदन दिलावर का बयान और विवाद

मनीषा शर्मा, अजमेर।  हाल ही में, राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने एक बयान दिया, जिसने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने अजमेर की प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के संदर्भ में कहा कि अगर वहां खुदाई की जाए, तो मंदिर के अवशेष मिलने की पूरी संभावना है। उनका यह बयान भारत में मंदिरों और मस्जिदों से जुड़े ऐतिहासिक विवादों को फिर से चर्चा में ले आया है।

मदन दिलावर का बयान और उसके मायने

भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में आयोजित एक बैठक के दौरान मीडिया से बातचीत में दिलावर ने कहा कि इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है और फैसला अदालत ही करेगी। दिलावर के अनुसार, अब तक जो अनुभव और शोध सामने आए हैं, वे बताते हैं कि भारत में कई मस्जिदें और दरगाहें मंदिरों के स्थान पर बनाई गई थीं। उनके इस बयान का सीधा संबंध अजमेर दरगाह को लेकर चल रहे विवाद से है। यह विवाद तब उभरा जब हिंदू सेना के नेता विष्णु गुप्ता ने अदालत में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि दरगाह के नीचे शिवलिंग मौजूद है।

अजमेर दरगाह विवाद का इतिहास

अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत और दुनिया भर के लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। इसे सूफी परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। लेकिन हाल ही में हिंदू संगठनों ने इसे एक प्राचीन हिंदू मंदिर बताते हुए इसका ऐतिहासिक महत्व बदलने का दावा किया है। हिंदू सेना के नेता विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह के नीचे एक शिवलिंग मौजूद है। इस दावे के आधार पर उन्होंने अजमेर की अदालत में याचिका दायर की। अदालत ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, दरगाह कमेटी, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित है।

खुदाई की मांग और संभावनाएं

मदन दिलावर के बयान में उल्लेखित खुदाई की संभावना को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। उनका कहना है कि अगर कोर्ट खुदाई का आदेश देती है, तो इस बात की संभावना है कि वहां मंदिर के अवशेष मिल सकते हैं। उनका यह दावा ऐतिहासिक शोध और हालिया घटनाओं पर आधारित है, जैसे वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वेक्षण। हालांकि, खुदाई के परिणामों को लेकर सभी पक्षों में असहमति है। दरगाह प्रबंधन समिति और कई मुस्लिम संगठन इन दावों को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि दरगाह एक पवित्र स्थल है और इसे किसी विवाद में घसीटना अनुचित है।

राजनीति और समाज पर प्रभाव

अजमेर दरगाह विवाद ने धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से एक नई बहस को जन्म दिया है। भारतीय जनता पार्टी और इसके नेताओं के बयान इस मुद्दे को धार्मिक राजनीति से जोड़ते हुए देखे जा रहे हैं। वहीं, विपक्षी दलों ने इसे सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास बताया है। मदन दिलावर का बयान एक बड़े राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जो 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश करता है।

कानूनी प्रक्रिया और आगे की राह

इस विवाद के कानूनी पहलुओं पर नजर डालें, तो कोर्ट की भूमिका निर्णायक होगी। अगर अदालत खुदाई का आदेश देती है, तो इसका असर न केवल अजमेर दरगाह पर पड़ेगा, बल्कि देश भर के अन्य धार्मिक स्थलों पर भी इसका असर देखा जा सकता है। अगर कोर्ट इस मामले में खुदाई का आदेश देता है, तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की भूमिका अहम होगी। ASI को पहले भी ऐसे विवादास्पद मामलों में सर्वेक्षण और रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है।

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