मनीषा शर्मा। केंद्र सरकार ने शिक्षा में एक बड़ा बदलाव करते हुए 5वीं और 8वीं क्लास के छात्रों के लिए ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है। अब जो छात्र इन कक्षाओं में फेल होंगे, उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नए नोटिफिकेशन के मुताबिक, फेल होने वाले छात्रों को दोबारा परीक्षा देने का मौका मिलेगा। अगर वे दोबारा भी पास नहीं हो पाए तो उन्हें उसी कक्षा में दोबारा पढ़ना होगा। यह फैसला शिक्षा के स्तर को सुधारने और बच्चों में पढ़ाई के प्रति गंभीरता लाने के उद्देश्य से लिया गया है।
क्या है नो डिटेंशन पॉलिसी?
नो डिटेंशन पॉलिसी, 2009 में लागू किए गए राइट टू एजुकेशन एक्ट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि बच्चों को शिक्षा के लिए एक अनुकूल माहौल दिया जाए, ताकि वे स्कूल आना जारी रखें। इस पॉलिसी के तहत 8वीं क्लास तक किसी भी छात्र को फेल नहीं किया जाता था।
इस नीति के पीछे विचार यह था कि फेल होने से बच्चों का आत्मसम्मान ठेस पहुंचता है और वे शर्मिंदगी महसूस करते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई में रुचि कम हो सकती है। यह भी माना गया कि फेल होने के डर से बच्चे स्कूल छोड़ सकते हैं।
पॉलिसी खत्म करने का कारण
हालांकि नो डिटेंशन पॉलिसी का उद्देश्य बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहित करना था, लेकिन इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए।
1. शिक्षा के स्तर में गिरावट
कई रिपोर्ट्स में यह पाया गया कि इस पॉलिसी के कारण छात्रों का पढ़ाई के प्रति रुझान कम हो गया। 2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के मुताबिक, 5वीं क्लास के केवल 48% छात्र ही 2वीं क्लास का सिलेबस पढ़ने में सक्षम थे। 8वीं क्लास के छात्रों में से केवल 43.2% ही साधारण गणितीय भाग कर पाते थे।
2. मूल्यांकन प्रणाली की कमी
नो डिटेंशन पॉलिसी के तहत शिक्षकों के पास छात्रों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के पर्याप्त साधन नहीं थे। ज्यादातर मामलों में छात्रों का मूल्यांकन ही नहीं किया गया।
3. छात्रों में लापरवाही
फेल होने का डर न होने के कारण छात्रों में पढ़ाई के प्रति लापरवाही बढ़ गई। इसका असर उनकी बेसिक शिक्षा पर पड़ा।
4. राज्यों की आपत्ति
कई राज्यों ने पॉलिसी के नकारात्मक प्रभावों को लेकर चिंता जताई। उनका कहना था कि इस पॉलिसी के कारण प्राथमिक शिक्षा का स्तर गिर रहा है।
नो डिटेंशन पॉलिसी को हटाने की सिफारिशें
नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने की सिफारिश 2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (CABE) ने की थी। CABE ने कहा कि यह पॉलिसी शिक्षा के स्तर को सुधारने के बजाय बिगाड़ रही है। इसके अलावा, TSR सुब्रमण्यम कमेटी और वासुदेव देवनानी कमेटी ने भी इस पॉलिसी को खत्म करने की सिफारिश की थी।
नई पॉलिसी के प्रावधान
सरकार की नई नीति के तहत:
5वीं और 8वीं क्लास में छात्रों का नियमित मूल्यांकन होगा।
फेल होने वाले छात्रों को दो महीने के अंदर दोबारा परीक्षा देने का मौका मिलेगा।
अगर छात्र दोबारा भी पास नहीं हो पाते, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा।
फेल छात्रों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा, बल्कि उन्हें उसी कक्षा में दोबारा पढ़ाया जाएगा।
16 राज्यों में पहले ही लागू है यह पॉलिसी
केंद्र सरकार की नई नीति केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित 3,000 से ज्यादा स्कूलों पर लागू होगी। हालांकि, 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली और पुडुचेरी) में नो डिटेंशन पॉलिसी पहले ही खत्म हो चुकी है।
पॉलिसी में बदलाव की प्रक्रिया
इस बदलाव की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब लोकसभा में राइट टू एजुकेशन एक्ट को संशोधित करने के लिए एक बिल पेश किया गया। इस बिल में 5वीं और 8वीं क्लास के छात्रों के लिए नियमित परीक्षा की बात की गई थी। 2019 में यह बिल राज्यसभा में पास हुआ। इसके बाद राज्यों को यह अधिकार दिया गया कि वे नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर सकते हैं या इसे लागू रख सकते हैं।
पॉलिसी के प्रभाव
1. शिक्षा का स्तर सुधरेगा
पॉलिसी हटाने से छात्रों में पढ़ाई के प्रति गंभीरता बढ़ेगी। नियमित परीक्षा और फेल होने का डर उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करेगा।
2. टीचर्स की भूमिका बढ़ेगी
शिक्षकों को छात्रों का मूल्यांकन करने और उन्हें सुधारने की जिम्मेदारी दी जाएगी। इससे टीचर्स की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।
3. स्कूल ड्रॉपआउट कम होगा
फेल होने के बावजूद छात्रों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। इससे ड्रॉपआउट रेट कम करने में मदद मिलेगी।
4. शिक्षा नीति में पारदर्शिता
नई नीति से शिक्षा में पारदर्शिता आएगी। छात्रों की प्रगति का नियमित मूल्यांकन होगा, जिससे शिक्षा का स्तर सुधरेगा।