शोभना शर्मा, अजमेर। राजस्थान के केकड़ी शहर में दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर निकाली जाने वाली घास भैरू की सवारी के दौरान ‘अंगारों की दीवाली’ नामक परंपरा ने इस वर्ष भी भयावह रूप ले लिया। प्रशासन की तमाम कोशिशों और अतिरिक्त सुरक्षा बल की तैनाती के बावजूद युवाओं ने खतरनाक पटाखों का खुलेआम प्रयोग किया, जिससे 70 से अधिक लोग झुलस गए। इनमें से एक युवक को गंभीर हालत में अजमेर रेफर किया गया है। इस परंपरा के नाम पर असामाजिक तत्वों द्वारा की जाने वाली पटाखेबाजी से आम जनता में भय और अव्यवस्था फैल गई।
घास भैरू की सवारी और पटाखों का खेल
केकड़ी में गोवर्धन पूजा के दिन शाम को घास भैरू की सवारी निकाली जाती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें बैलों की सहायता से घास भैरू के रूप में पत्थर की एक प्रतिमा को नगर के मुख्य मार्गों से होते हुए गणेश मंदिर तक ले जाया जाता है। इस सवारी के दौरान, असामाजिक तत्वों ने एक-दूसरे पर गंगा-जमुना, सीता-गीता, और सूतली बम जैसे खतरनाक पटाखे फेंके। इस बार सवारी गणेश मंदिर से शाम लगभग साढ़े 8 बजे शुरू हुई और विभिन्न चौकों से होकर गुजरी। पूरे मार्ग पर युवाओं ने रात देर तक पटाखों का आतंक मचाए रखा।
पुलिस प्रशासन की कोशिशें विफल
घटना की गंभीरता को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने इस वर्ष अतिरिक्त जाब्ता तैनात किया था। एएसपी रामचंद्र सिंह, डीएसपी हर्षित शर्मा, और थाना प्रभारी कुसुम लता स्वयं पुलिस बल के साथ इस परंपरा को नियंत्रित करने के लिए मौजूद रहे, परंतु युवाओं के जोश और उद्दंडता के आगे उनकी सारी कोशिशें विफल हो गईं। पुलिस की मौजूदगी में भी युवाओं ने खुलेआम पटाखे फेंके। दोपहर 1 बजे से शुरू हुआ यह खेल देर रात तक चलता रहा। कई बार युवाओं ने पुलिस के ऊपर भी जलते हुए पटाखे फेंके, जिससे पुलिस को खुद को बचाने और भीड़ को नियंत्रित करने में परेशानी का सामना करना पड़ा।
परंपरा के नाम पर असामाजिक तत्वों का आतंक
यह परंपरा वर्षों से केकड़ी के निवासियों द्वारा निभाई जाती रही है। कहा जाता है कि इस सवारी के माध्यम से रोग-दोष का निवारण होता है और क्षेत्र में खुशहाली बनी रहती है। लेकिन हाल के वर्षों में कुछ असामाजिक तत्वों ने इस परंपरा की आड़ में लोगों में डर और अव्यवस्था पैदा करने के लिए पटाखों का दुरुपयोग शुरू कर दिया है। पहले यह केवल प्रतीकात्मक रूप में होती थी, लेकिन अब खतरनाक बम और पटाखों के प्रयोग ने इसे एक खतरे का रूप दे दिया है। इससे कई निर्दोष लोग घायल हो रहे हैं और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुँच रहा है।
आगजनी और संपत्ति का नुकसान
पटाखों के आतंक के कारण इस बार कई जगह आगजनी की घटनाएं भी हुईं। तेली मोहल्ला स्थित एक किराना दुकान, ब्यावर रोड पर रखे चारे, और बैंक ऑफ बड़ौदा के जनरेटर में आग लग गई। इतना ही नहीं, जयपुर रोड पर एक अल्टो कार भी पटाखों की चिंगारी की चपेट में आकर जलकर राख हो गई, जबकि एक स्कूटी को भी आग लग गई। स्थानीय प्रशासन को आग बुझाने के लिए दमकल की सहायता लेनी पड़ी। इस तरह की घटनाओं से लोगों के जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है।
पुलिस का रुख और सामुदायिक प्रतिक्रिया
स्थानीय प्रशासन ने इस खतरनाक परंपरा को रोकने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन पुलिस बल की उपस्थिति के बावजूद इसे नियंत्रित करना मुश्किल साबित हुआ। पुलिस मूकदर्शक बनी रही और असामाजिक तत्वों ने उनका सामना करते हुए अपना पटाखों का खेल जारी रखा। पुलिस प्रशासन की नाकामी के चलते स्थानीय लोगों में रोष है, और उनका मानना है कि इस तरह की परंपराओं पर सख्त नियम बनाए जाने चाहिए। समुदाय का एक हिस्सा मानता है कि परंपराओं का सम्मान करते हुए उन्हें सुरक्षित रूप से मनाने की आवश्यकता है।
सरकार और प्रशासन के सामने चुनौतियां
केकड़ी की यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि इस तरह की परंपराओं को कैसे संयमित किया जाए ताकि यह समाज के लिए खतरा न बने। यह स्पष्ट है कि परंपराओं का सम्मान करते हुए उन्हें नियंत्रित करना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। अब समय आ गया है कि प्रशासन इन परंपराओं को सुरक्षित और अनुशासित रूप में मनाने के लिए कठोर कदम उठाए।