शोभना शर्मा, अजमेर। राजस्थान की एक अदालत ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को मंदिर घोषित करने की याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर इस याचिका में मांग की गई थी कि अजमेर की प्रसिद्ध दरगाह को भगवान श्री संकटमोचन महादेव का मंदिर घोषित किया जाए। याचिकाकर्ता का दावा था कि यह दरगाह एक पुराने शिव मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है। अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। इस निर्णय के बाद दरगाह के संरक्षण और धार्मिक महत्व पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है।
विष्णु गुप्ता का दावा और मांगें
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक शिव मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है और इसे हिंदू धार्मिक स्थल घोषित किया जाना चाहिए। गुप्ता के वकील शशिरंजन ने बताया कि उन्होंने इस मामले में दो साल तक शोध किया है और दावा किया कि दरगाह का निर्माण उस मंदिर के अवशेषों पर हुआ है जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि दरगाह के संचालन से जुड़े अधिनियम को रद्द किया जाए, ताकि हिंदुओं को वहां पूजा का अधिकार मिले। साथ ही, गुप्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से उस जगह का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने की भी मांग की थी।
दरगाह की तरफ से प्रतिक्रिया
अजमेर शरीफ दरगाह के संरक्षकों ने इस याचिका को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करार दिया है। दरगाह दीवान के पुत्र नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि इस तरह के दावे का मकसद केवल लोगों के बीच नफरत फैलाना और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दरगाह सदियों से सांप्रदायिक सद्भाव और आपसी भाईचारे का प्रतीक रही है और ऐसे प्रयास केवल देश के सांप्रदायिक सौहार्द को कमजोर करने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं।
कोर्ट के फैसले के बाद अगली प्रक्रिया
याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता के वकील ने बताया कि अब वे इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए संबंधित कोर्ट में ट्रांसफर की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, ताकि इस मामले को एक उचित न्यायालय में सुना जा सके। वकील शशिरंजन ने इस दिशा में कदम उठाने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है।
अजमेर दरगाह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
अजमेर दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जिन्हें गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है। 12वीं सदी के इस सूफी संत ने अजमेर को अपनी धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाया और यहां अपने अनुयायियों के साथ समय बिताया। ख्वाजा साहब का उद्देश्य था कि हर व्यक्ति को धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता की सेवा करनी चाहिए। उनकी दरगाह पर न केवल मुस्लिम श्रद्धालु, बल्कि हिंदू श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में आते हैं।
दरगाह का निर्माण और मुगल शासकों का योगदान
ऐसा माना जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सम्मान में मुगल बादशाह हुमायूं ने इस दरगाह का निर्माण करवाया था। इसे भारत के सबसे पवित्र सूफी स्थलों में से एक माना जाता है। ख्वाजा साहब की शिक्षाओं के अनुसार, दरगाह सभी धर्मों, जातियों, और आस्थाओं के लोगों के लिए खुली है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करते हैं।
दरगाह पर दक्षिणपंथी ताकतों की नजर?
दरगाह के बारे में कहा जा रहा है कि कुछ दक्षिणपंथी ताकतें इसे एक विवादित स्थल बनाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रही हैं। इस दरगाह के सचिव, सैयद सरवर चिश्ती, ने इसे सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने का प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि दरगाह हमेशा से ही भारत के सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक रही है और यह सभी आस्थाओं के लोगों के लिए खुली है।
कोर्ट के फैसले के बाद दरगाह की आस्था बरकरार
अदालत द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद दरगाह के अनुयायियों और श्रद्धालुओं में राहत का माहौल है। दरगाह के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास अटूट है, और इसे किसी विवाद में घसीटना अनावश्यक है। अजमेर की यह दरगाह हमेशा से सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक रही है और उम्मीद की जाती है कि इस अदालती निर्णय के बाद सभी लोग इसका सम्मान करेंगे।