मनीषा शर्मा। राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर इस बार का 813वां सालाना उर्स समारोह अपने आप में एक अनूठा संगम बन गया है। देशभर से आने वाले जायरीन के स्वागत के लिए कायड़ विश्राम स्थली को एक छोटे गांव के रूप में बदल दिया गया है। यह स्थल इस समय विविधता में एकता का अद्भुत प्रतीक बन गया है।
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर हर साल लाखों जायरीन अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं। इस साल उर्स के दौरान कायड़ में विशेष इंतजाम किए गए हैं ताकि हर जायरीन को ठहरने और भोजन की सुविधा मिले। यहां बनाए गए डोरमेट्री, वुजू खाना, गुस्ल खाना और शौचालय जैसी सुविधाएं जायरीनों को एक घर जैसा अनुभव देती हैं।
कायड़ का माहौल: एक मिनी भारत
कायड़ विश्राम स्थली में इन दिनों भारत की विविधता की झलक साफ नजर आती है। यहां देश के हर कोने से आए लोग एकत्रित हैं। दक्षिण भारत से आए जायरीन सफेद लुंगी और कुर्ते में अपनी पारंपरिक वेशभूषा में दिख रहे हैं। वहीं, बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल से आए जायरीन धोती-कुर्ता पहने हुए हैं। राजस्थान के देहातों से आए लोग सिर पर सफेद पगड़ी बांधे और धोती-कुर्ता पहने अपने विशिष्ट अंदाज में नजर आते हैं।
महिलाओं के पहनावे में भी क्षेत्रीय विशेषताएं झलक रही हैं। बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश की महिलाएं पारंपरिक साड़ियों में हैं, जबकि मध्य प्रदेश, दिल्ली, कश्मीर और गुजरात से आई महिलाएं सलवार-कुर्ते में दिखाई दे रही हैं।
यहां के बाजारों में लगी दुकानों पर भी जायरीन की भीड़ देखने लायक है। खाने-पीने के स्टॉल से लेकर परंपरागत वस्त्र, सजावटी सामान और धार्मिक प्रतीक बेचे जा रहे हैं। हर राज्य की खासियत यहां की दुकानों पर नजर आती है, जिससे जायरीन का अनुभव और भी खास हो जाता है।
सुरक्षा और प्रशासन की चौकसी
जायरीनों की भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। कायड़ विश्राम स्थली में पुलिस बल और प्रशासनिक अधिकारी हर पल तैनात हैं। वाहनों के लिए अलग पार्किंग स्थल बनाए गए हैं ताकि भीड़भाड़ से बचा जा सके।
प्रशासन ने जायरीन के लिए साफ-सफाई और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा है। वुजू और गुस्ल की जगहें, साफ शौचालय और बड़े शामियाने जायरीन को किसी भी असुविधा से बचाते हैं। इसके साथ ही, मेडिकल सेवाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं ताकि किसी भी आपात स्थिति में तुरंत सहायता मिल सके।
उर्स का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है। यहां हर धर्म, हर जाति और हर क्षेत्र के लोग एक साथ जुटते हैं। सबका मकसद एक ही होता है—ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट करना।
जायरीनों के बीच भले ही भाषा, पहनावे और खानपान में विविधता हो, लेकिन उनकी भावनाएं एकजुट हैं। यह उर्स केवल अजमेर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए आस्था और सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बन गया है।
विशेष अनुभव: जायरीन की जुबानी
यहां आए कई जायरीन ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। बिहार से आए एक परिवार ने कहा कि कायड़ में ठहरने की सुविधा बेहतरीन है। “हमने सोचा नहीं था कि इतनी अच्छी व्यवस्था मिलेगी। यहां हर चीज बहुत व्यवस्थित है,” उन्होंने कहा।
दक्षिण भारत से आए एक समूह ने बताया कि भाषा की भिन्नता के बावजूद यहां सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। “यहां हमें अलग-अलग संस्कृतियों को करीब से जानने का मौका मिला। यह अनुभव अविस्मरणीय है,” उन्होंने साझा किया।
आस्था का केंद्र: ख्वाजा गरीब नवाज
ख्वाजा गरीब नवाज का दरगाह इस समय लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। उनके प्रति श्रद्धा हर जायरीन के चेहरे पर साफ झलकती है। यह उर्स केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि समाज में शांति, सौहार्द और भाईचारे का संदेश भी देता है।