मनीषा शर्मा, अजमेर। अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद, काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद , मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद के बाद अब अजमेर मे ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह में मंदिर होने का दावा किया गया। इस के साथ ही 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट एक बार फिर चर्चा मे आ गया है। आइए आपको बताते हैं की आखिर ये 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है।
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट: एक संवैधानिक पहल
भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act, 1991) एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने और धार्मिक विवादों को रोकने के लिए पारित किया गया था।प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है?
यह अधिनियम सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति (15 अगस्त 1947 के आधार पर) बनाए रखने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि किसी भी पूजा स्थल के मूल स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता।
अधिनियम के मुख्य उद्देश्य
- धार्मिक स्थलों का संरक्षण।
- सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की रक्षा।
- धार्मिक आधार पर विवादों और हिंसा को रोकना।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की प्रावधान और धाराएं
धारा 2
15 अगस्त 1947 को जो स्थिति थी, उसी के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति को संरक्षित किया जाएगा। यदि कोई विवाद चल रहा हो, तो उसे रोक दिया जाएगा।
धारा 3
किसी भी पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में परिवर्तित करना अवैध होगा।
धारा 4
- धारा 4(1): सभी धार्मिक स्थलों का मूल स्वरूप बनाए रखना अनिवार्य है।
- धारा 4(2): अधिनियम के लागू होने से पहले के मामलों को छोड़कर, किसी भी नए विवाद या मुकदमेबाजी की अनुमति नहीं होगी।
धारा 5
अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है।
धारा 6
इस अधिनियम का उल्लंघन करने पर तीन साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।
1991 का पूजा अधिनियम क्यों बनाया गया?
इतिहास और पृष्ठभूमि
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम पर, सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया था।
- सांप्रदायिक तनाव: लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा और कारसेवकों पर गोलीबारी से सांप्रदायिक तनाव चरम पर था।
- संसद में बहस: तत्कालीन गृहमंत्री एस. बी. चव्हाण ने कहा कि पूजा स्थलों को लेकर विवाद देश की एकता को खतरे में डाल सकते हैं।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का संवैधानिक महत्व
संविधान के अनुच्छेद 14 और 15
अधिनियम धार्मिक स्थलों को समान सुरक्षा प्रदान करता है। यह किसी भी धर्म या समुदाय के साथ भेदभाव नहीं करता।
अनुच्छेद 25 और 26
यह अधिनियम धार्मिक स्वतंत्रता और पूजा-अर्चना के अधिकार को संरक्षित करता है।
अनुच्छेद 51ए
यह नागरिकों को सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
अधिनियम के अपवाद
- अयोध्या विवाद
अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद इस कानून के दायरे से बाहर है। - पुरातात्विक स्थल और स्मारक
1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अधिनियम के तहत संरक्षित स्थलों पर यह कानून लागू नहीं होता।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर विवाद और आलोचना
1. हिंदू संगठनों का विरोध
- कुछ संगठनों का कहना है कि यह कानून 15 अगस्त 1947 की तारीख पर धार्मिक स्थलों को “फ्रीज” करके ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने से रोकता है।
- उनका दावा है कि यह हिंदुओं, जैनों, सिखों और बौद्धों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
2. अनुच्छेद 14 और 25 के उल्लंघन का आरोप
याचिकाओं में कहा गया है कि यह अधिनियम समानता और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
3. सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका
इस कानून की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट और 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट
अयोध्या निर्णय (2019)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम भारत की धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों का प्रतीक है।
मौलिक कर्तव्यों का पालन
अदालत ने कहा कि यह अधिनियम नागरिकों को उनके मौलिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
धार्मिक स्थल और सांप्रदायिक सौहार्द
भारत जैसे विविधता वाले देश में पूजा स्थलों का संरक्षण सामाजिक शांति के लिए आवश्यक है।
- धार्मिक विविधता का सम्मान: भारत में सभी धर्मों के पूजा स्थलों को समान महत्व दिया गया है।
- सांप्रदायिक एकता: अधिनियम सांप्रदायिक तनाव को कम करने में सहायक है।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का वर्तमान परिदृश्य
- अजमेर दरगाह विवाद
हाल ही में अजमेर दरगाह में मंदिर होने का दावा किया गया, जो इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत चुनौतीपूर्ण है। - काशी और मथुरा विवाद
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद भी इस अधिनियम के तहत चर्चा में रहे हैं।
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। हालांकि, इसके प्रावधान और अपवादों को लेकर विवाद जारी हैं।
यह अधिनियम एक ऐसा प्रयास है जो अतीत की गलतियों को सुधारने के बजाय भविष्य की दिशा में एक शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है।