शोभना शर्मा। कभी सोचा है कि फिल्मों में जब टीचर चश्मा लगाकर नोटबुक में कुछ लिख रहे होते हैं और बच्चे की आवाज सुनकर चश्मे के ऊपर से देखते हैं, तो ऐसा क्यों होता है? इसका कारण प्रेसबिओपिया नामक आंखों की समस्या है। यह समस्या उम्र बढ़ने पर पास की नजर कमजोर होने के कारण होती है।
प्रेसबिओपिया क्या है?
प्रेसबिओपिया उम्र से जुड़ी नजर कमजोर होने की समस्या है, जिसमें आंखों का लेंस अपनी इलास्टिसिटी खो देता है। हमारी आंखें एक नेचुरल कैमरे की तरह काम करती हैं। जब हम कोई दूर या पास की चीज देखते हैं, तो हमारी आंखों का लेंस ऑटोफोकस करके चीजों को स्पष्ट दिखाता है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ, इस लेंस की इलास्टिसिटी कम हो जाती है, जिससे पास की चीजों को देखने में दिक्कत होने लगती है। आमतौर पर यह समस्या 40 साल की उम्र के बाद शुरू होती है और करीब से देखने, पढ़ने या लिखने में परेशानी उत्पन्न करती है।
दुनिया में प्रेसबिओपिया के आंकड़े
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश हुई एक स्टडी के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 180 करोड़ लोग प्रेसबिओपिया से प्रभावित हैं। यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, और भारत में भी इसका व्यापक प्रभाव देखा जा रहा है। डेटा ब्रिज मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में दुनिया भर में प्रेसबिओपिया के करेक्शन (जांच, लेंस, और दवाओं) पर करीब 944.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च हुए थे। इसमें अनुमान लगाया गया है कि 2029 तक यह खर्च बढ़कर 1384 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो जाएगा, क्योंकि प्रेसबिओपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
प्रेसबिओपिया के लक्षण
प्रेसबिओपिया के लक्षण अक्सर 40 वर्ष की उम्र के आसपास दिखने लगते हैं। इसमें व्यक्ति को पास की चीजें देखने या पढ़ने में कठिनाई महसूस होती है। इसके कुछ प्रमुख लक्षण हैं:
पढ़ने के लिए किताब या मोबाइल को दूर रखना
धुंधली नजर
सिरदर्द या आंखों में थकान
कंप्यूटर या अन्य नज़दीक के काम करने में दिक्कत
प्रेसबिओपिया के रिस्क फैक्टर्स
मुख्य तौर पर प्रेसबिओपिया उम्र बढ़ने से संबंधित है, लेकिन कुछ रिस्क फैक्टर्स इसे 40 साल से पहले भी ट्रिगर कर सकते हैं। इसे प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया कहा जाता है। इसके प्रमुख रिस्क फैक्टर्स निम्नलिखित हैं:
खराब लाइफस्टाइल: बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम और सही पोषण की कमी।
मेडिकल कंडीशंस: डायबिटीज, दिल की बीमारियां, और एनीमिया।
दवाएं: डिप्रेशन, एलर्जी, और मानसिक विकारों के लिए ली जाने वाली दवाएं।
प्रेसबिओपिया का इलाज
हालांकि प्रेसबिओपिया का कोई परमानेंट इलाज नहीं है, फिर भी कुछ उपायों से इस स्थिति में सुधार किया जा सकता है। ये उपाय व्यक्ति की सेहत, लाइफस्टाइल, और उसकी जरूरतों पर निर्भर करते हैं। इसमें शामिल हैं:
चश्मा: पास की नजर को ठीक करने के लिए सही पावर का चश्मा।
कॉन्टेक्ट लेंस: नॉन-चश्माधारी विकल्पों के लिए।
आई ड्रॉप्स: हाल के वर्षों में भारत में आई ड्रॉप्स (जैसे प्रेस्वू) का उपयोग भी बढ़ा है।
सर्जरी: सर्जिकल प्रक्रियाएं जैसे लेजर सर्जरी भी उपलब्ध हैं।
प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया से बचने के उपाय
प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अच्छी लाइफस्टाइल को फॉलो करना। इसमें शामिल हैं:
स्वस्थ भोजन: गाजर, पालक, टमाटर, संतरे और हरी सब्जियों जैसे पोषण से भरपूर फूड्स का सेवन। ये फूड्स विटामिन A, विटामिन C, विटामिन E, और ल्यूटिन से भरपूर होते हैं, जो आंखों की सेहत के लिए जरूरी हैं।
सनग्लासेज: धूप में निकलते समय अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव के लिए सनग्लासेज पहनना।
आंखों की नियमित जांच: समय-समय पर डॉक्टर से आंखों की जांच करवाना।
स्क्रीन टाइम को सीमित करें: अत्यधिक कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन देखने से बचें।
प्रेसबिओपिया एक सामान्य उम्र संबंधी समस्या है, जिससे हर कोई 40 की उम्र के बाद प्रभावित हो सकता है। हालांकि, इसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन सही जीवनशैली, पोषण, और आंखों की नियमित जांच से प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया से बचा जा सकता है। नजर की कमजोरी के लिए चश्मा, कॉन्टेक्ट लेंस, सर्जरी, या आई ड्रॉप्स जैसे कई विकल्प उपलब्ध हैं, जो इस समस्या को कम कर सकते हैं।