latest-newsअलवरउदयपुरजयपुरझुंझुनूदौसाराजनीतिराजस्थानसीकर

संसद में गूंजा आदिवासी बच्चों को बेचने का मुद्दा: राजकुमार रोत का बयान

संसद में गूंजा आदिवासी बच्चों को बेचने का मुद्दा: राजकुमार रोत का बयान

मनीषा शर्मा। लोकसभा के ताजे सत्र में एक ऐसा मुद्दा उठाया गया जिसने पूरे देश की नज़र आदिवासी इलाकों की ओर मोड़ दी। सांसद राजकुमार रोत, जो बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के प्रतिनिधि हैं, ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान एक दर्दनाक हकीकत सामने लाई। उन्होंने कहा कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विकास के नाम पर आदिवासी समुदाय को विस्थापित कर दिया जा रहा है, जिसके चलते गरीब आदिवासी परिवार मजबूर हो गए हैं। इस स्थिति में, जब 20-25 साल पहले आदिवासी परिवार अपनी जरूरतों के लिए जमीन या जेवरात गिरवी रखकर कुछ राहत पाते थे, आज वे इतने कष्ट में हैं कि अपने नाबालिग बच्चों और बहन-बेटियों को गिरवी रखने को मजबूर हो गए हैं।

राजकुमार रोत ने स्पष्ट किया कि कैसे विकास की घोषणाओं और सरकार की योजनाओं ने आदिवासी इलाकों के वास्तविक विकास के बजाय उन्हें और अधिक हाशिए पर कर दिया है। उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में विकास के नाम पर की जा रही योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रह जाती हैं, जबकि जमीन पर इनका कोई असर नहीं दिखता। इस कारण, आदिवासी समुदाय की मौलिक समस्याएँ—जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और शिक्षा का अभाव—बेहद बढ़ जाती हैं। इन परिस्थितियों में, जब परिवार अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए किसी भी साधन का सहारा लेने को मजबूर हो जाते हैं, तो वे अपने बच्चों को गिरवी रखकर उधार लेने का विकल्प चुन लेते हैं।

सांसद रोत ने लोकसभा में बताते हुए कहा कि आज के दौर में सैकड़ों आदिवासी बच्चों को गिरवी रखा हुआ है। उन्होंने कहा, “हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन ये आंकड़े सिर्फ आंकड़ा नहीं हैं। इनमे सैकड़ों बच्चों की मासूमियत छिपी है, जिन्हें गरीब परिवारों की मजबूरी में एक बार फिर से उपयोगी बना लिया जा रहा है।” उनके अनुसार, यह स्थिति आत्मनिर्भर भारत के आदर्शों के बिलकुल विपरीत है। बड़े बुजुर्ग कहते थे कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए, लेकिन आज आदिवासी, दलित और पिछड़ा वर्ग अपने बच्चों के जरिए दूसरों पर निर्भर होते जा रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, सांसद ने आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर भी गहरा आक्रोश जताया। उन्होंने बताया कि डूंगरपुर से एक ऐसा केस सामने आया था, जहां एक आदिवासी व्यक्ति बीमारी के इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज गया था। उसे एक महीने बाद की तारीख दी गई, लेकिन उस दौरान उसका अंतिम संस्कार हो चुका था। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति भी आदिवासी इलाकों में बेहद चिंताजनक है। अस्पतालों की हालत खराब है और आवश्यक सुविधाएं लोगों तक समय पर नहीं पहुँच पातीं। ऐसे में, जब जीवन और मृत्यु के बीच का फासला इतना बढ़ जाता है, तो आदिवासी समुदाय और भी अधिक पीड़ा में जीता है।

राजकुमार रोत ने लोकसभा में यह भी कहा कि ऐसे मामलों में सरकार की नीतियां और योजनाएं केवल कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं। “डबल इंजन की सरकार है, लेकिन इन पहाड़ों के अंदर की स्थितियां कुछ और ही कहती हैं,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि इन इलाकों में सरकारी योजनाएं अक्सर जमीन पर नहीं उतर पातीं और आदिवासी लोगों तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती। परिणामस्वरूप, परिवार अपने छोटे बच्चों को गिरवी रखकर उधार लेने का सहारा ले लेते हैं, जिससे भविष्य में उनके बच्चों का शैक्षिक और सामाजिक विकास बाधित होता है।

post bottom ad

Discover more from MTTV INDIA

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading