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राजस्थान में उर्दू माध्यम स्कूलों के बंद होने पर विरोध

राजस्थान में उर्दू माध्यम स्कूलों के बंद होने पर विरोध

शोभना शर्मा, अजमेर । राजस्थान की भजनलाल शर्मा सरकार द्वारा जीरो एडमिशन और कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद या मर्ज करने के फैसले के बाद प्रदेश में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। इस फैसले के तहत प्रदेश भर में लगभग 450 स्कूलों को बंद या पास के अन्य स्कूलों में मर्ज कर दिया गया है। विशेष रूप से उर्दू माध्यम स्कूलों को हिंदी और अंग्रेजी माध्यम में मर्ज करने को लेकर जोधपुर और अजमेर जैसे शहरों में विरोध की लहर उठ रही है।

उर्दू माध्यम स्कूलों को मर्ज करने पर विरोध

राजस्थान सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत उर्दू माध्यम के स्कूलों को हिंदी या अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में समायोजित करने का निर्णय लिया गया है। अजमेर जिले के अंदर कोट क्षेत्र में दो प्रमुख उर्दू माध्यम स्कूलों को हिंदी माध्यम स्कूलों में मर्ज कर दिया गया है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से अल्पसंख्यक आबादी का है, जहां लंबे समय से उर्दू माध्यम में शिक्षा दी जा रही थी। स्थानीय नेताओं और अभिभावकों ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। कांग्रेस नेता महेंद्र सिंह रलावता और अल्पसंख्यक विभाग के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए इस फैसले को नियम विरुद्ध बताया है।

सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभावों पर चिंता

उर्दू माध्यम स्कूल न केवल शिक्षा का माध्यम हैं, बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को भी संरक्षित करते हैं। स्थानीय निवासियों का मानना है कि इन स्कूलों को मर्ज करने का फैसला उनकी सांस्कृतिक जड़ों को खत्म कर देगा।

स्थानीय अभिभावकों का विरोध:

अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि सरकार का यह निर्णय उनके बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। 300 से अधिक छात्र-छात्राएं वर्तमान में इन स्कूलों में उर्दू माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अजमेर की छात्रा बुशरा बानो ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वह बचपन से उर्दू माध्यम में पढ़ाई कर रही हैं और अब सामान्य भाषा में परीक्षा देने के विचार से असमंजस में हैं।

शिक्षकों और अभ्यर्थियों पर प्रभाव

राजकीय प्राथमिक उर्दू बालिका विद्यालय की शिक्षिका शबाना खान का कहना है कि इस नीति से न केवल छात्रों बल्कि उर्दू विषय में प्रशिक्षित शिक्षकों और B.Ed डिग्री धारकों के करियर पर भी खतरा मंडरा रहा है। शिक्षकों को अब हिंदी और अंग्रेजी माध्यम में शिक्षण के लिए प्रशिक्षित होने की आवश्यकता होगी, जो उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

1941 से संचालित उर्दू स्कूल

अजमेर के अंदर कोट क्षेत्र में स्थित उर्दू माध्यम स्कूल 1941 से संचालित हैं। इन स्कूलों ने स्वतंत्रता संग्राम से पहले भी अल्पसंख्यक समुदाय को शिक्षा प्रदान की है। इन स्कूलों को मर्ज कर देने से न केवल ऐतिहासिक विरासत पर असर पड़ेगा, बल्कि इनकी उपयोगिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

प्रदर्शन और आंदोलन का बढ़ता दायरा

जोधपुर में उर्दू स्कूल बंदी के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों ने उग्र प्रदर्शन किया, जहां बालिकाओं ने पुलिस की जीप पर चढ़कर अपना विरोध दर्ज कराया। अब यह विरोध अजमेर में भी फैल गया है। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के महासचिव एस एम अकबर ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने इस निर्णय को वापस नहीं लिया तो व्यापक स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।

सरकार के फैसले पर पुनर्विचार की मांग

स्थानीय निवासियों, शिक्षकों और छात्रों की मांग है कि सरकार उर्दू माध्यम स्कूलों को मर्ज करने के निर्णय पर पुनर्विचार करे। यह केवल एक शैक्षणिक मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और भाषाई अधिकार का सवाल है। यदि यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो यह राज्य में लंबे समय तक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव डाल सकता है।

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