शोभना शर्मा। राजस्थान में शिक्षक पात्रता परीक्षा (REET) को लेकर एक नया विवाद सामने आया है, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। डूंगरपुर जिले के पुनाली परीक्षा केंद्र पर परीक्षा के दौरान एक अभ्यर्थी का जनेऊ उतरवाने का मामला तूल पकड़ चुका है। परीक्षा केंद्र के अधिकारियों ने इसे सरकारी गाइडलाइनों के तहत अनिवार्य बताया, जबकि दिशा-निर्देशों में ऐसा कोई स्पष्ट नियम नहीं था। इस मुद्दे पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने नाराजगी जताई और सवाल उठाया कि क्या जनेऊ पहनने से नकल हो सकती है? उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कार्रवाई अनुचित है और धार्मिक आस्था से जुड़ी चीजों पर प्रतिबंध लगाना गलत है। वहीं, अब इस विवाद पर सांसद राजकुमार रोत का भी बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर सरकार को दोषी ठहराया है।
सांसद राजकुमार रोत ने सरकार को बताया जिम्मेदार
सांसद राजकुमार रोत ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस मामले में अक्ल कर्मचारियों को नहीं, बल्कि सरकार को लगानी चाहिए। उन्होंने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि परीक्षा को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी नहीं किए गए थे। इसके बजाय, सरकार ने उन कर्मचारियों पर कार्रवाई की, जो अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने समाज विशेष के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करके अपनी मानसिकता जाहिर कर दी है। उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा आदेश की पालना करने वाले प्रधानाचार्य और कॉन्स्टेबल को निलंबित करना न्यायसंगत नहीं है।
“आदेश की पालना करना गुनाह कैसे?” – सांसद रोत
राजकुमार रोत ने सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए कहा, “REET परीक्षा के दौरान सरकारी आदेश का पालन करने वाले प्रधानाचार्य और कांस्टेबल को निलंबित करना कहां का न्याय है? क्या कानून की कलम जाति और धर्म देखकर चलेगी? अगर ऐसा है तो क्या यही ‘अमृतकाल’ है?” उन्होंने मांग की कि इन कार्मिकों को तत्काल बहाल किया जाए और सरकार स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करे ताकि भविष्य में इस तरह की भ्रम की स्थिति न बने।
“जनेऊ विवाद को जानबूझकर तूल दिया जा रहा”
राजकुमार रोत ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि राजस्थान में बीजेपी जानबूझकर जनेऊ विवाद को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा कि परीक्षा के लिए जारी गाइडलाइन और जिला स्तर पर हुई ट्रेनिंग के अनुसार सभी अभ्यर्थियों के गले, हाथ और पैर में बंधे धार्मिक धागे और आभूषण उतरवाए गए थे—फिर केवल जनेऊ को ही मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? उन्होंने दावा किया कि सरकार ने कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश नहीं दिए थे, फिर भी केवल समाज विशेष के कार्मिकों को टारगेट करके निलंबित किया गया। भारत आदिवासी पार्टी इस तरह की राजनीति की कड़ी निंदा करती है।
“धार्मिक भावनाओं का सम्मान करें सरकार”
सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि उनकी ब्राम्हण समाज की आस्था को ठेस पहुंचाने की कोई मंशा नहीं है, लेकिन सरकार को यह समझना चाहिए कि अन्य सभी समुदायों की धार्मिक भावनाओं का भी सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार परीक्षा में पारदर्शिता चाहती है, तो उसे पहले से ही गाइडलाइन स्पष्ट करनी चाहिए। परीक्षा के दौरान इस तरह के विवाद खड़े करना उचित नहीं है और इससे सिर्फ राजनीतिक माहौल गरमाया जाता है।
सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल
गाइडलाइनों में स्पष्टता का अभाव – सरकार ने परीक्षा से पहले कोई स्पष्ट निर्देश जारी नहीं किए थे, जिससे भ्रम की स्थिति बनी।
कर्मचारियों पर अनुचित कार्रवाई – परीक्षा केंद्रों पर गाइडलाइनों का पालन करने वाले कर्मचारियों को निलंबित करना अन्यायपूर्ण है।
धार्मिक आस्था को लेकर राजनीति – बीजेपी और अन्य राजनीतिक दल इसे राजनीतिक रंग देकर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
सभी धर्मों के लिए समान व्यवहार जरूरी – सरकार को सभी समुदायों की भावनाओं का समान रूप से सम्मान करना चाहिए।