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पुष्कर झील का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

पुष्कर झील का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

मनीषा शर्मा। पुष्कर झील, राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित एक पवित्र और ऐतिहासिक जल निकाय है, जिसे ‘तीर्थराज’ के नाम से जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस झील का निर्माण ब्रह्मा जी के कमल से गिरी एक पंखुड़ी से हुआ था। यह झील 52 घाटों और 300 से अधिक मंदिरों से घिरी हुई है, जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाते हैं। इस लेख में हम पुष्कर झील के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व, इतिहास, और इसके आसपास के आकर्षणों के बारे में चर्चा करेंगे।

पुष्कर झील का धार्मिक महत्व: पुष्कर झील हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस झील में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, यहाँ विशेष स्नान का महत्व है, और इस दिन लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करने आते हैं। झील के किनारे स्थित 52 घाटों में से ब्रह्मा घाट, वराह घाट, और गऊ घाट प्रमुख हैं, जहाँ श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं।

पुष्कर झील का इतिहास: पुष्कर झील का इतिहास 12वीं शताब्दी में एक कृत्रिम जलाशय के रूप में शुरू हुआ, जब लूनी नदी पर एक बांध का निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह ने झील के किनारे पर गुरु ग्रंथ साहिब का पवित्र भाषण दिया था। विभिन्न राजपूत शासकों, जैसे कि आमेर, बूंदी, बीकानेर और जैसलमेर के राजाओं ने झील और उसके आसपास के मंदिरों के महत्व को बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।

ब्रह्मा मंदिर और पुष्कर झील: पुष्कर झील के किनारे स्थित ब्रह्मा मंदिर दुनिया का एकमात्र मंदिर है जो भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है, और यह माना जाता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने पुष्कर झील की स्थापना की थी। इस मंदिर का निर्माण लगभग 2000 साल पहले हुआ था, हालांकि वर्तमान मंदिर की वास्तुकला 14वीं शताब्दी की है।

पुष्कर मेला: पुष्कर झील के किनारे हर साल आयोजित होने वाला पुष्कर मेला एशिया का सबसे बड़ा ऊँट मेला है। यह मेला कार्तिक महीने (अक्टूबर-नवंबर) में होता है और यह न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। मेले में देश-विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, ऊँटों की दौड़, और अन्य गतिविधियों में भाग लेते हैं।

पुष्कर झील के प्रमुख घाट: झील के चारों ओर 52 घाट स्थित हैं, जिनमें से 10 घाट ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण हैं। ये घाट हैं वराह घाट, दाधीच घाट, सप्तऋषि घाट, ग्वालियर घाट, कोटा घाट, गऊ घाट, याग घाट, जयपुर घाट, करणी घाट, और गणगौर घाट। इन घाटों पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, और यहां स्नान करने का विशेष महत्व है।

प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण: पुष्कर झील के चारों ओर की प्राकृतिक सौंदर्यता इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाती है। अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरी इस झील का वातावरण शांत और सुंदर है, और यहाँ पर कई प्रकार के जलचर और पक्षी भी देखने को मिलते हैं। झील का पानी मौसमी वर्षा पर निर्भर करता है, और यहां का वातावरण विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के समय अत्यधिक आकर्षक होता है।

संरक्षण और वर्तमान स्थिति: हाल के वर्षों में झील के जल स्तर में कमी और प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने झील के संरक्षण के लिए कई उपाय किए हैं, जिनमें झील की सफाई और जल स्तर को बनाए रखने के प्रयास शामिल हैं। इन प्रयासों के माध्यम से झील के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।

पुष्कर झील न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राजस्थान की संस्कृति और इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा भी है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए यह स्थान शांति, भक्ति, और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। पुष्कर झील के धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त करके आप इस पवित्र स्थल के महत्व को और गहराई से समझ सकते हैं।

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