मनीषा शर्मा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को अलवर में आयोजित नगर एकत्रीकरण कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को संबोधित किया। इस मौके पर उन्होंने देश और समाज की कई महत्वपूर्ण चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देश में जो कुछ अच्छा होता है, उसका श्रेय हिंदू समाज को मिलता है, और अगर कुछ बुरा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी भी हिंदू समाज पर आती है। हिंदू समाज ही इस देश का कर्ताधर्ता है। इसलिए, समाज को अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए कार्य करना चाहिए।
हिंदू धर्म का मतलब विश्व धर्म
डॉ. मोहन भागवत ने हिंदू धर्म की परिभाषा देते हुए कहा कि जिसे हम हिंदू धर्म कहते हैं, वह वास्तव में मानव धर्म है। यह एक ऐसा धर्म है जो न केवल भारत के कल्याण के लिए बल्कि पूरे विश्व के कल्याण की कामना करता है। उन्होंने हिंदू धर्म के मूल्यों पर जोर देते हुए कहा कि यह धर्म सबको स्वीकार करता है, सबके प्रति सद्भावना रखता है और पराक्रमी पूर्वजों की विरासत का सम्मान करता है। उन्होंने कहा कि हिंदू का मतलब होता है सबसे उदार मानव, जो विद्या का उपयोग विवाद पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान देने के लिए करता है।
छुआछूत को मिटाने की अपील
डॉ. भागवत ने छुआछूत और ऊंच-नीच के भाव को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ने अपने धर्म के कुछ हिस्सों को भूलकर स्वार्थ के अधीन होकर छुआछूत और ऊंच-नीच का भेदभाव बढ़ा लिया है, जिसे अब खत्म करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ जहां प्रभावी है, वहां मंदिर, पानी और श्मशान सभी हिंदुओं के लिए खुले होते हैं। इसके पीछे संघ का उद्देश्य सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है।
नई पीढ़ी के संस्कारों पर चिंता
RSS प्रमुख ने नई पीढ़ी के संस्कारों के पतन पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि परिवार के संस्कारों पर खतरा मंडरा रहा है और मीडिया के दुरुपयोग से नई पीढ़ी तेजी से अपने संस्कार भूल रही है। उन्होंने कहा कि इस समस्या का समाधान पारिवारिक एकता और पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने में है। भागवत ने सुझाव दिया कि सप्ताह में कम से कम एक बार परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर भजन-पूजन करना चाहिए और घर का भोजन साथ में करना चाहिए। इससे न केवल परिवार के भीतर आपसी जुड़ाव बढ़ेगा, बल्कि पारिवारिक संस्कार भी सुदृढ़ होंगे।
संघ के 100 साल
डॉ. भागवत ने यह भी बताया कि अगले साल संघ के कार्य को 100 साल पूरे हो रहे हैं। उन्होंने संघ की कार्य पद्धति और उसके पीछे की विचारधारा को स्पष्ट किया। उन्होंने स्वयंसेवकों को इस बात का आह्वान किया कि संघ का उद्देश्य केवल कार्य करना नहीं है, बल्कि समाज और देश को समर्थ और सशक्त बनाना है। इसके लिए हमें हमेशा अपनी कृति के पीछे के विचार को ध्यान में रखना चाहिए।
स्वदेशी पर जोर
डॉ. भागवत ने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें स्वदेशी से लेकर स्व गौरव तक के सभी पहलुओं को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। भागवत ने कहा कि समाज सेवा के कार्यों को हमें अपने कर्तव्य के रूप में देखना चाहिए, न कि उपकार के रूप में। हमें अपने देश की वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए और अगर जीवन के लिए आवश्यक वस्तु बाहर से लेनी पड़े, तो अपनी शर्तों पर लेना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
अलवर नगर एकत्रीकरण कार्यक्रम के बाद डॉ. मोहन भागवत ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी लोगों को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि हमें छोटी-छोटी बातों से पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत करनी चाहिए, जैसे पानी बचाना, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना, पौधे लगाना आदि। उन्होंने लोगों को अपने घरों में हरियाली बनाए रखने और अधिक से अधिक पेड़ लगाने का आह्वान किया। इस अवसर पर भागवत ने मातृ स्मृति वन में पौधारोपण भी किया।
संघ का बढ़ता प्रभाव
डॉ. भागवत ने इस कार्यक्रम में यह भी कहा कि संघ को अब लोग पहचानने लगे हैं। पहले जब संघ को कोई नहीं जानता था, तब लोगों में इसे लेकर संदेह था, लेकिन अब संघ को मान्यता प्राप्त हो गई है। उन्होंने कहा कि संघ के विरोधी भी मन से संघ की विचारधारा को मानते हैं, भले ही वे होठों से इसका विरोध करते हों। इसीलिए अब संघ का उद्देश्य हिंदू धर्म, संस्कृति और समाज का संरक्षण और राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए काम करना है।
सामाजिक अनुशासन और समरसता
संघ प्रमुख ने नागरिक अनुशासन और सामाजिक समरसता पर भी जोर दिया। उन्होंने स्वयंसेवकों से आग्रह किया कि वे समाज में अनुशासन और समरसता लाने के लिए अपने जीवन में इन गुणों को अपनाएं। जब स्वयंसेवक इन आदर्शों को अपने जीवन में उतारेंगे, तो समाज भी इसका अनुसरण करेगा। उन्होंने कहा कि संघ का काम समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए है और इसके लिए संघ के स्वयंसेवकों को लगातार प्रयत्नशील रहना होगा।