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रूपनगढ़ का खूनी संघर्ष: सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर दो गुटों में भिड़ंत

रूपनगढ़ का खूनी संघर्ष: सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर दो गुटों में भिड़ंत

मनीषा शर्मा। अजमेर जिले के रूपनगढ़ में 22 सितंबर 2023 को दो गुटों के बीच हुए खूनी संघर्ष ने पूरे इलाके को हिला दिया। सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर हुए इस विवाद में बदमाशों ने अंधाधुंध फायरिंग की, गाड़ियों से लोगों को कुचलने की कोशिश की और एक युवक की गोली लगने से मौत हो गई। बदमाशों की गाड़ियों पर स्थानीय लोगों ने हमला कर दिया और एक जेसीबी में आग लगा दी।

इस घटना का असल कारण जमीन पर कब्जे की कोशिश थी, जिसमें स्थानीय माफिया, जेल में बंद अपराधी, और राजनीतिक दबाव शामिल थे। ग्राउंड रिपोर्टिंग में खुलासा हुआ है कि 5 करोड़ रुपए से अधिक कीमत की सरकारी जमीन पर 12 लोग कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों में रूपनगढ़ पंचायत के सरपंच इकबाल छीपा और बलवाराम चौधरी जैसे आपराधिक तत्व शामिल थे, जो पहले से हत्या के मामलों में जेल में बंद हैं।

जेल से रची गई साजिश

रूपनगढ़ में इस विवाद की जड़ें काफी गहरी हैं। घटना से एक दिन पहले, जेल में बंद बलवाराम चौधरी ने अपने भांजे दिनेश चौधरी को उन लोगों को धमकाने के लिए भेजा जो सरकारी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे। बलवाराम का नाम पहले भी कई आपराधिक मामलों में सामने आ चुका है, और इस बार भी उसने जेल से अपने गैंग को इस घटना को अंजाम देने के लिए निर्देशित किया।

दिनेश चौधरी और उसके साथियों ने अगले दिन मौके पर पहुंचकर BRC गैंग के लोगों के साथ मिलकर हमला किया। उन्होंने यहां पहले से इकट्ठा हुए कब्जाधारियों और मजदूरों पर गोलियां चलाईं। इस दौरान एक मजदूर शकील लंगा की गोली लगने से मौत हो गई और ठेकेदार नारायण कुमावत घायल हो गए।

सरपंच का दावा झूठा

स्थानीय सरपंच इकबाल छीपा ने पहले दावा किया था कि जिस जमीन को लेकर यह विवाद हुआ, वह पहले से ही कब्जे में थी और पंचायत ने पट्टे देने की प्रक्रिया शुरू की थी। हालांकि, भास्कर की पड़ताल में यह दावा झूठा निकला। इस जमीन पर कोई पुराना कब्जा नहीं था और यह जगह खाली पड़ी हुई थी, जिसे कब्जेधारियों ने साफ-सफाई करके निर्माण करने की कोशिश की थी।

जमीन का असल सच

इस जमीन पर कब्जा करने के प्रयास की असली कहानी कुछ और ही है। पंचायत द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, कई सालों से यहां कब्जाधारी मौजूद थे, जिनकी पट्टे के लिए आवेदन प्रक्रिया चल रही थी। हालाँकि, भास्कर की इन्वेस्टिगेशन में पाया गया कि यह सरकारी जमीन है और यहां किसी का कोई पुराना कब्जा नहीं था। जिस जमीन पर विवाद हुआ, वहां पहले से बबूल के पेड़ उगे हुए थे, जिन्हें दो दिन पहले ही काटा गया था।

पंचायत के तीन वार्ड पंचों की जांच कमेटी भी इस बात की पुष्टि करती है कि जमीन पर पहले से कोई कब्जा नहीं था। वार्ड पंच गोविन्द गिंवारिया ने बताया कि यह जगह जैन छात्रावास के पास की है और इसे खाली करने के बाद कब्जा किया जा रहा था।

राजनीतिक और माफिया कनेक्शन

इस पूरे घटनाक्रम में राजनीतिक और माफिया कनेक्शन की भी भूमिका सामने आई है। बलवाराम चौधरी, जो पहले से ही हत्या के मामले में जेल में बंद है, बार-बार पैरोल पर बाहर आता रहा है। उसकी गैंग विवादित जमीनों पर कब्जा करने और छुड़ाने का काम लंबे समय से करती आ रही है। बलवाराम के भांजे दिनेश चौधरी ने अन्य शूटरों को अलवर और अन्य शहरों से बुलाकर इस घटना को अंजाम दिया।

सरपंच इकबाल छीपा और अन्य स्थानीय अधिकारियों पर भी यह आरोप है कि उन्होंने बेशकीमती जमीनों को अवैध तरीके से बेचा है। पंचायत समिति सदस्य के पति सुमेर सिंह ने आरोप लगाया है कि सरपंच ने सिर्फ 12 नहीं, बल्कि 30 दुकानों के पट्टे देने की योजना बनाई थी।

पुलिस की कार्रवाई और फरार आरोपी

अजमेर रेंज और अजमेर पुलिस ने इस फायरिंग मामले में शामिल चार आरोपियों पर इनाम घोषित किया है। इनमें दिनेश चौधरी, हनुमान, नरेश और पुखराज शामिल हैं। अजमेर के IG ओम प्रकाश ने दिनेश और हनुमान पर 50-50 हजार रुपए का इनाम रखा है, जबकि SP देवेंद्र बिश्नोई ने दिनेश, हनुमान, नरेश और पुखराज पर 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित किया है।

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