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डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, जानें इसके कारण

डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, जानें इसके कारण

मनीषा शर्मा।   डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया हाल ही में रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 11 पैसे की गिरावट देखने को मिली और रुपया 84.09 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह अब तक का सबसे निचला स्तर है, जो भारत की अर्थव्यवस्था और आयात के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। इस गिरावट से पहले 8 अगस्त 2024 को रुपया 83.99 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। इस खबर में हम रुपये की गिरावट के प्रमुख कारणों, इसके अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और भविष्य के संभावित परिदृश्य पर चर्चा करेंगे।

रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, भारतीय रुपये में इस गिरावट के कई कारण हैं। इनमें से प्रमुख वजहें निम्नलिखित हैं:

  1. क्रूड ऑइल की कीमतों में बढ़ोतरी: वैश्विक बाजार में क्रूड ऑइल की कीमतों में हाल ही में बढ़ोतरी हुई है, जिससे भारत जैसे बड़े तेल आयातक देशों के लिए मुद्रा पर दबाव बढ़ा है। आयात महंगा हो जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की निकासी अधिक होती है और रुपये पर असर पड़ता है।
  2. विदेशी निवेशकों की बिकवाली: भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशक भारी बिकवाली कर रहे हैं, जिसके चलते रुपये पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। विदेशी निवेशकों द्वारा शेयरों की बिक्री से मुद्रा की मांग कम होती है और डॉलर की मांग बढ़ती है, जिससे रुपया कमजोर होता है।
  3. मध्य पूर्व में संघर्ष: इजराइल और लेबनान के साथ हालिया संघर्ष की खबरें भी रुपये पर नकारात्मक असर डाल रही हैं। इन खबरों से ग्लोबल मार्केट में अस्थिरता बढ़ी है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी है और रुपया कमजोर हुआ है।

रुपये का इंट्रा-डे प्रदर्शन

इंट्रा-डे में भी भारतीय रुपया कमजोर होकर 84.11 के निचले स्तर तक पहुंचा, जो डॉलर के मुकाबले अब तक का सबसे निचला स्तर है। शुक्रवार को रुपया 83.98 के स्तर पर खुला, जोकि धीरे-धीरे गिरता हुआ 84.11 के स्तर तक चला गया। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपये में इस गिरावट का दौर जारी रह सकता है और आने वाले दिनों में यह 84.25 तक पहुंच सकता है।

रुपये में गिरावट का असर: इंपोर्ट और खर्च बढ़ेगा

रुपये की गिरावट का भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  1. इंपोर्ट महंगा होगा: रुपये के कमजोर होने से भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा हो जाता है। खासकर तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य आवश्यक वस्तुएं महंगी होती हैं, जो मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती हैं। इससे आम जनता पर भी महंगाई का असर पड़ता है।
  2. विदेश में पढ़ाई और यात्रा होगी महंगी: डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से विदेश में पढ़ाई और यात्रा के खर्चे भी बढ़ जाते हैं। अब भारतीय छात्रों को एक डॉलर के लिए लगभग 84 रुपए देने पड़ रहे हैं, जिससे उनकी फीस और रहने का खर्च बढ़ गया है।
  3. भारतीय कंपनियों पर असर: जिन कंपनियों का कारोबार या कच्चा माल आयात पर निर्भर है, उनके लिए लागत बढ़ जाती है। इससे मुनाफा कम होता है और उत्पादों की कीमतों में भी बढ़ोतरी होती है।

करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?

किसी भी मुद्रा की कीमत उसके देश की आर्थिक स्थिति, फॉरेन रिजर्व, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट और विदेशी निवेशकों की गतिविधियों पर निर्भर करती है। डॉलर की तुलना में किसी अन्य करेंसी की वैल्यू घटने को करेंसी डेप्रिशिएशन कहते हैं। रुपये के मूल्य में गिरावट तब होती है, जब बाजार में डॉलर की मांग अधिक होती है और रुपये की कम।

भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर की कमी होने पर रुपये का मूल्य घटता है, जबकि डॉलर के भंडार में बढ़ोतरी होने पर रुपया मजबूत होता है। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जहां करेंसी का मूल्य बाजार के अनुसार तय होता है।

आने वाले दिनों में रुपये की स्थिति कैसी रहेगी?

विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में गिरावट का दौर फिलहाल जारी रह सकता है, विशेष रूप से तब तक जब तक ग्लोबल मार्केट में अस्थिरता बनी रहती है। भारतीय रिजर्व बैंक भी इस स्थिति पर नजर बनाए हुए है और संभवतः रुपये की गिरावट को रोकने के लिए फॉरेन रिजर्व का उपयोग कर सकता है।

डॉलर के मुकाबले रुपये का रिकॉर्ड निम्न स्तर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती है। क्रूड ऑइल की बढ़ती कीमतें, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और ग्लोबल राजनीतिक अस्थिरता के कारण रुपये पर दबाव बढ़ा है। इससे इंपोर्ट महंगा हुआ है और विदेश यात्रा और पढ़ाई भी महंगी हो गई है।

 

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