मनीषा शर्मा। राजस्थान कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सोमवार को कांग्रेस प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में एक बार फिर यह विवाद तब सामने आया जब बैनर पर राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट की फोटो न होने पर उनके समर्थकों ने नाराजगी जताई। बैठक का उद्देश्य संगठन को मजबूत करना और भाजपा पर प्रहार के लिए आगामी रणनीतियों पर चर्चा करना था। लेकिन यह बैठक पायलट समर्थकों द्वारा उठाए गए इस मुद्दे की वजह से विवादों में आ गई।
बैठक का मुख्य उद्देश्य
जयपुर में हुई इस बैठक का उद्देश्य पार्टी संगठन को मजबूत करना और राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को टक्कर देने के लिए कार्ययोजना बनाना था। बैठक में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता मौजूद थे। बैठक के दौरान जब पायलट समर्थक नेताओं ने यह मुद्दा उठाया कि बैनर पर सचिन पायलट का फोटो क्यों नहीं है, तो यह मामला गर्मा गया। पायलट समर्थकों ने इसे जानबूझकर किया गया कृत्य बताया और इसकी कड़ी आलोचना की।
सचिन पायलट समर्थकों की नाराजगी
बैठक के दौरान सबसे पहले कांग्रेस प्रदेश सचिव नरपत मेघवाल और विभा माथुर ने इस मुद्दे को उठाया। दोनों नेताओं ने बैठक के दौरान सवाल किया कि जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के फोटो बैनर पर हैं, तो राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट का फोटो क्यों गायब है। नरपत मेघवाल ने कहा, “यह पार्टी को गलत संदेश देता है। जब हम सभी नेता एकजुट होकर पार्टी को मजबूत करने की बात करते हैं, तो एक महत्वपूर्ण नेता की फोटो न होना सही नहीं है।” विभा माथुर ने भी इस पर कड़ी आपत्ति जताई और पूछा कि गहलोत की फोटो किस प्रोटोकॉल के तहत लगाई गई है, जबकि पायलट का नाम तक नहीं है।
डोटासरा का प्रोटोकॉल का हवाला
पायलट समर्थकों के सवालों का जवाब देते हुए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि बैनर पर फोटो लगाने का प्रोटोकॉल आल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) द्वारा तय किया जाता है। उन्होंने कहा, “प्रदेश पदाधिकारियों के बैनर पर फोटो किसके होंगे, यह एआईसीसी के प्रोटोकॉल से तय होता है। इसमें किसी की व्यक्तिगत भूमिका नहीं है।” हालांकि, पायलट समर्थक इस तर्क से सहमत नहीं हुए। विभा माथुर ने पलटकर कहा कि जब मौजूदा प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है, तो अशोक गहलोत का फोटो कैसे लगा है। यह सवाल विवाद को और बढ़ा गया।
“बीजेपी का काम मत कीजिए” – डोटासरा
डोटासरा ने पायलट समर्थकों को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, “हम सभी नेता एकजुट हैं। कांग्रेस के किसी नेता का विरोध करना या आपसी मतभेद दिखाना बीजेपी का काम आसान बनाना है। यह पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।” उन्होंने आगे कहा, “सचिन पायलट राष्ट्रीय महासचिव हैं। वे राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। उनके खिलाफ किसी तरह की दुर्भावना नहीं है।”
बैनर पर किन नेताओं के फोटो थे?
बैठक के बैनर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और गोविंद सिंह डोटासरा के बड़े फोटो लगाए गए थे। साथ ही सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, केसी वेणुगोपाल, प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के भी फोटो थे। इस बैनर में राजस्थान से केवल तीन नेताओं – डोटासरा, गहलोत और जूली – के फोटो थे। यह तथ्य भी पायलट समर्थकों के गुस्से का कारण बना।
बैठक के बाद डोटासरा का बयान
बैठक के बाद जब डोटासरा से इस विवाद के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे मामूली मुद्दा बताते हुए कहा कि यदि किसी कार्यकर्ता या पदाधिकारी के मन में कोई बात है, तो उसे कहने का अधिकार है। उन्होंने कहा, “यह कोई बड़ी बात नहीं है। पार्टी में सभी की आवाज का सम्मान है।”
सचिन पायलट का नाम क्यों महत्वपूर्ण है?
सचिन पायलट कांग्रेस के उन चेहरों में से एक हैं, जो राजस्थान में पार्टी के लिए मजबूत जनाधार रखते हैं। वे न केवल युवा नेताओं के प्रेरणास्रोत हैं, बल्कि उनके पास अच्छी संगठनात्मक पकड़ भी है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, पायलट और अशोक गहलोत के बीच मतभेद खुलकर सामने आए हैं। पायलट समर्थकों का मानना है कि गहलोत गुट उन्हें दरकिनार करने की कोशिश करता है।
क्या यह कांग्रेस में गुटबाजी का संकेत है?
इस विवाद ने राजस्थान कांग्रेस में लंबे समय से चल रही गुटबाजी को फिर से उजागर कर दिया है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच नेतृत्व को लेकर विवाद किसी से छिपा नहीं है। पार्टी भले ही इन मतभेदों को बाहर न दिखाने की कोशिश करती हो, लेकिन ऐसे विवाद पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े करते हैं।
क्या है भविष्य का रास्ता?
कांग्रेस को राजस्थान में अगले विधानसभा चुनावों से पहले एकजुटता दिखाने की जरूरत है। गुटबाजी और आंतरिक मतभेद पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं। पायलट और गहलोत जैसे दिग्गज नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करना पार्टी नेतृत्व की प्राथमिकता होनी चाहिए।