मनीषा शर्मा। राजस्थान के सलूंबर विधानसभा उपचुनाव में गड़बड़ी के आरोपों ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उपचुनाव में अंतिम दौर की मतगणना में गड़बड़ी कर बीजेपी प्रत्याशी को विजयी घोषित किया गया। उन्होंने इस घटना को लोकतंत्र की हत्या करार दिया और इसके खिलाफ आंदोलन व कानूनी लड़ाई का ऐलान किया।
गड़बड़ियों का आरोप:
राजकुमार रोत के अनुसार, उनके प्रत्याशी जितेश कटारा काउंटिंग के शुरुआती दौर में बढ़त बनाए हुए थे। 13वें और 14वें राउंड के बाद अचानक मतगणना में देरी शुरू हो गई। निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर डेटा को संशोधित कर बार-बार अपडेट किया गया। यह प्रक्रिया संदेह पैदा करती है। उन्होंने दावा किया कि अंतिम दो राउंड में निर्दलीय प्रत्याशियों के वोट बीजेपी प्रत्याशी के खाते में जोड़ दिए गए।मतगणना केंद्र में अव्यवस्था:
रोत ने यह भी आरोप लगाया कि मतगणना केंद्र में बीजेपी के पदाधिकारी भीड़ के साथ पहुंचे, जिससे मतगणना प्रक्रिया प्रभावित हुई। भारतीय आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी के साथ धक्का-मुक्की की गई और उनकी रिकाउंटिंग की मांग को नजरअंदाज कर दिया गया।दौसा की तुलना में सलूंबर पर सवाल:
राजकुमार रोत ने सवाल उठाया कि जब दौसा उपचुनाव में बीजेपी की हार के चलते रिकाउंटिंग कराई गई, तो सलूंबर में इसे क्यों रोका गया। सलूंबर में जीत का अंतर महज 1,000 वोट था, जबकि दौसा में यह 2,000 से ज्यादा था। उन्होंने इसे अलोकतांत्रिक फैसला बताते हुए इसे सत्ताधारी पार्टी की चाल कहा।लोकतांत्रिक लड़ाई का ऐलान:
सांसद रोत ने साफ किया कि उनकी पार्टी इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगी। आंदोलन के साथ-साथ कोर्ट में भी लड़ाई लड़ी जाएगी। उन्होंने जनता से अपील की कि वे इस संघर्ष में उनका साथ दें। उनका कहना है कि सलूंबर की जनता के मतों का अपमान हुआ है, जिसे सुधारने के लिए वे हर संभव कदम उठाएंगे।समर्थन की अपील:
वीडियो संदेश में रोत ने कहा कि सलूंबर की जनता ने जिस तरह से मतदान किया, उसके खिलाफ गड़बड़ी कर जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई। उन्होंने कहा, “हम लोकतंत्र को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और जनता का समर्थन हमारे संघर्ष को मजबूती देगा।” सलूंबर उपचुनाव में मतगणना से जुड़े विवाद ने भारतीय राजनीति में चुनावी पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। राजकुमार रोत और उनकी पार्टी का यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखने की कोशिश है। आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आंदोलन और कोर्ट का फैसला इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।